संसार की नदिया है, शक्ति स्वरूपा जल, मनुष्य के सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक!

लेख -: धर्मेंद्र श्रीवास्तव

आओ करें पानी पर संवाद,

तभी रहेगा पृथ्वी पर अखिल ब्रह्मांड, में मानव समाज और इसकी आदि अनादि संस्कृति……….

हम सभी जानते हैं कि संसार में भूभाग लगभग 29 फीसद है,

और चारों और करीब 71 फीसद सामुद्रिक जल फैला हुआ है,

किंतु यह जल पीने योग्य नहीं है धरती पर पीने योग्य पानी वर्षा जल और संसार से होकर निकलने वाली नदियों से ही शुरू होता है और भूजल के माध्यम से हमें पीने योग्य पानी मिलता है अनियंत्रित जल के दोहन से जलवायु परिवर्तन से बदली हुई जीवनशैली और अनेक गलत तरीकों के कारण हमारे पेयजल भंडार तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं, इसके परिणाम स्वरूप भारत सहित विश्व के अनेक हिस्सों में एक बहुत बड़ी आबादी जीवित रहने के लिए पीने योग्य जल को तरस रही है अनुमान है कि इस संकट को रोकने के लिए यदि हम आज न जागे तो आने वाले 10 से 20 वर्षों में धरती पर जीवन असंभव हो जाएगा, तब सॉरी मनुष्यता की दृष्टि स्वाभाविक रूप से स्त्रियों की ओर जाती है,

जाएं क्यों नहीं क्योंकि पानी के लिए संघर्ष भी तो वही कर रही है, आज के परिपेक्ष में स्त्री हर असंभव कार्य को संभव करने की महान शक्ति रखती है फिर भारतीय मनीषा के संदर्भ में तो जल से स्त्री का सीधा साम्य है और संबंध प्रतिपादित करते हुए उसी को संकटमोचक के रूप में देखा गया है जल का की बचत स्वयं की बचत है,

आओ आज हम संगठित होकर विचार करें बात करें व्यवहार करें दैनंदिन जीवन में पानी को बचाने का प्रयास करें संसार में (20600 )

नदियों का वर्णन सत्य सनातन धर्म के धर्म ग्रंथ करते हैं,

इसका वर्णन संसार की सारी नदियां है,

नारी शक्ति अनादिकाल से नदिया है,

स्त्री सूचक है, इनका जल जीवनिय शक्ति प्रदान करने वाला है, जल  को पृथ्वी का अमृत कहा गया है,

पेयजल को नारी के रूप में ही सर्वत्र निहारा गया है,

तभी तो धरती पर कल कल कर प्रवाहित होने वाली नदियों को गंगा यमुना सरस्वती माही नर्मदा कावेरी गोदावरी सरयू आदि के नाम से संबोधित किया गया है, स्मृति में रहे सागर भले ही विराट धनराशि अपने में समाए हुए हैं, परंतु पुरुषत्व का प्रतीक होकर वह या तो अपेय है, या सरोवर कुंड झरना आदि के रूप में तुलनात्मक रूप से नदियों से छोटा है, जल स्रोतों के इन प्रतीकों से स्त्री के सामर्थ्य शक्ति और महिमा के चित्र ग्रहण किए जा सकते हैं, तभी तो कहा गया है कि शक्ति के बगैर शिव भी शव है,

शक्ति से संयुक्त होकर , कल्याण कारी शिव है,

इस अर्थ में स्त्री जल संरक्षण में अधिक सक्षम एवं सिद्ध हो सकती है सिंधुजा लक्ष्मी स्त्री ग्रह लक्ष्मी सत्य सनातन धर्म के धर्म ग्रंथ साक्षी है जल से ही पृथ्वी पर समृद्धि और वैभव संभव है।

जल संरक्षण करें क्योंकि बचत करना स्त्री का स्वभाव है…….

बचत करना स्त्रियों का ही स्वभाव है,

और विशेष गुण भी, पुरुष इस कार्य में चाह कर भी उससे कोसों दूर है,

स्त्रीया घर के सारे खर्च के बीच ही सही थोड़ी धनराशि बचाने की कला जानती है,

इनके इसी महत्वपूर्ण गुण को इन्हें जल के संदर्भ में भी अपनाने की आवश्यकता है,

अनुभव एवं तरीके इसमें अन्य महिलाओं को प्रेरित कर सकते हैं,

यह तरीके पानी के बहू उपयोग से लेकर सदुपयोग तक अनेक रूपों में कारगर सिद्ध हो सकते हैं,

विश्व और समाज में प्रत्येक महिला जब जल और स्वच्छता का नारा बुलंद करेगी तो जललक्ष्मी का अपेक्षित उजाला संपूर्ण ब्रह्मांड में फैल सकता है, सुंदरता का प्रतीक अप्सरा की उत्पत्ति भी पानी से ही बताई गई है,

पुरुषों की तुलना में महिलाओं में जल तत्व अधिक है,

तभी तो वह सुंदर होती है, स्वयं एवं संसार की रक्षा के लिए उनका अविलंब पानी को लेकर सक्रिय होना पानी के रक्षार्थ और अधिक सुखद परिणाम दे सकता है,

क्योंकि जल प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य प्रसाधन जो है,

जल माता है और स्त्री मातृशक्ति।