प्रभु की आराधना करने से जनम जन्म के पाप खत्म हो जाते है – पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा.

रतलाम, 5 जुलाई 2025। जिनवाणी वाणी के माध्यम से सुदेव सुगुरु सुधर्म के स्वरूप का ज्ञान होता है , श्रद्धा होती है । कई लोगों को सुनकर श्रद्धा होती है तो कई लोग श्रद्धा है इसलिए उसे सुनते हैं। प्रभु की वाणी सुनने के बाद भी यदि हम नहीं जागे तो एक नहीं अनंत भव की हार हो जाएगी। मात्र एक भव आराधना की तो अनंत भव की जीत होगी। बस आप भावपूर्वक प्रभु की आराधना करें, उससे जन्म-जन्म के पाप भी खत्म हो जाएंगे।
उक्त उदगार धर्मदास गणनायक प्रवर्तक श्री जिनेंद्रमुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती पूज्य श्री अतिशयमुनिजी म.सा. ने श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल नौलाईपुरा स्थानक पर फरमाए। आपने कहा कि मनुष्य गति बहुत दुर्लभ है, प्रभु की वाणी सुनने से आपके मन में खेद होता है या नहीं। आराधना के माध्यम से मन की शुद्धि होती है। चिंतन करें – जब तक हम धर्म से नहीं जुड़े थे उस समय की क्रिया और धर्म से जुड़ने के बाद में क्रिया में क्या अंतर आया? पहले पापक्रिया करने में आनंद आता था , लेकिन अब खेद होता है। प्रभु की वाणी सुनना अच्छा है लेकिन सुनने के बाद जब तक चिंतन नहीं करेंगे , तब तक हमारा विकास होने वाला नहीं है। खेलने, कूदने, खाने, पीने सहित विभिन्न शौक पूरे किए उससे तृप्ति हुई क्या? एक बार अतीत में झाक कर देखो। आपने भूतकाल में कई पाप क्रिया की होगी। चिंतन करना यदि उस पाप क्रिया से बाँधे अशुभ कर्म वर्तमान भव में उदय में आ जाए तो क्या आप उसे भुगतने के लिए तैयार हैं? आपकी मानसिकता संभलने के लिए बनी है क्या? इसलिए सबसे सरल मार्ग यह है कि नई पाप क्रिया बंध करके पूर्व के कर्म उदय होने से पहले ही उनको समाप्त कर दो। पापी से पापी जीव को जिनवाणी तार सकती है। बस उस पर श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए। मानव भव मिला है, इसमें प्रभु की आराधना कर लो। उसकी योग्यता आपके पास है। थोड़ा चिंतन कीजिए। कदम आगे बढ़ाएंगे तो कहां से कहां पहुंच जाएंगे। स्वयं की शुद्धि करना बहुत सरल है, बस उस पर श्रद्धा होनी चाहिए।
श्री सुहासमुनिजी म.सा. ने व्याख्यान में फरमाया कि भगवान ने जो फरमाया है, उस पर श्रद्धा रखकर उसका पालन करना चाहिए। मोक्ष की प्राप्ति के लिए सम्यक ज्ञान का होना आवश्यक है। इसके लिए साधक को साधना करना चाहिए। गलती से भी किसी जीव की विराधना न हो इसलिए साधु चार हाथ आगे की भूमि को देखकर चलते हैं। यदि आपने जीव की रक्षा की तो समझिए कि स्वयं पर उपकार किया। यदि आपने संयम को लेकर लक्ष्य बनाया है तो उसके लिए बार-बार अभ्यास करना होगा। जीवन में जब भी कुछ बोले तो बहुत सोच कर, समझ कर बोले। बिना विचार करें कुछ नहीं बोलना चाहिए।
धर्मसभा में कई श्रावक -श्राविकाओं ने विविध तप के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। संचालन अणु मित्र मंडल के पूर्व सचिव सौरभ कोठारी ने किया । श्री धर्मदास जैन श्री संघ के अध्यक्ष रजनीकांत झामर व महामंत्री विनय लोढ़ा ने बताया कि प्रत्येक रविवार को होने वाली रविवारीय सामूहिक आराधना प्रवर्तक जिनेंद्रमुनिजी व मुनिमंडल एवं साध्वी पुण्यशीलाजी तथा साध्वी मंडल के सानिध्य में प्रातः 8:45 से 9:15 बजे तक श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल नौलाईपुरा स्थानक पर होगी। सामूहिक आराधना के पश्चात प्रातः 9.15 बजे से 10:15 बजे तक व्याख्यान होंगे। यहां प्रवर्तक श्रीजी, मुनिमंडल व साध्वी मंडल के दर्शनार्थ दर्शनार्थियों का आवागमन सतत जारी है।