मध्य प्रदेश दर्शन न्यूज़ पोर्टल,
धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
भारत सरकार की,
महती परियोजना,
जल जीवन मिशन,
संपूर्ण मध्यप्रदेश में स्वशासी संस्थाएं,
“आईएसए” के रूप में योजना से जुड़ कर कर रही श्रेष्ठ कार्य….
जल जीवन मिशन…….
इसके माध्यम से भारतवर्ष समस्त प्रदेशों में ग्राम ग्राम तक योजना के माध्यम से पहुंच रहा है, नलों के माध्यम से शुद्ध जल,
यह अमृततुल्य जल करेगा सुदूर ठेठ ग्रामीण क्षेत्र के घर-घर में नल के माध्यम से ग्रामीणों के गले तर,
कभी एक सपने से बढ़कर कुछ भी नहीं था,
ग्रामीणों के लिए कि उनके घरों तक भी पहुंचेगा शुद्ध पानी,
किंतु???
देश के यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय,
नरेंद्र दामोदरदास मोदी के भागीरथी प्रयासों से,
उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति से, उनके अटल संकल्प से,
साकार होने जा रहा है,
यह अकल्पनीय कार्य, पवित्र नदियों पर बने हुए बड़े-बड़े बांधों मे रोके गए अथाह जल भाग को ग्रामीण जनों तक पहुंचाने का यह दृढ़ संकल्प,
पूर्णता की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है,
जहां एक तरफ ग्रामीण महिला पुरुष किशोरी बालिकाओं को पानी के लिए प्रतिदिन 3 से 4 यात्राएं प्रतिदिन पैदल चलकर लगभग लगभग 3 से 4 किलोमीटर प्रतिदिन करनी होती थी,
जान को जोखिम में डालकर गिरते हुए, जलस्तर के कारण कुए, बावड़ी, लगभग सौ से डेढ़ सौ फीट तक नीचे जाकर गर्मी के दिनों में पीने के लिए पानी की जुगत बैठाना होती थी,
उससे अब राहत मिलने वाली है,
सर्वे के आंकड़े बताते हैं,
कि प्रतिवर्ष भारतवर्ष में वर्षा जनित प्रदूषित जल के सेवन से लगभग 80% बीमारियां होती है,
जिसमें मुख्य रुप से पीलिया, डायरिया, हैजा एवं अन्य प्रमुख बीमारियां केवल और केवल प्रदूषित जल के सेवन से होती है,
वही मध्य प्रदेश सहित, देश के कई प्रदेशों के ग्रामीण हिस्सों में फ्लोराइड युक्त पानी पीने से कई लोगों को महिला पुरुष बच्चों को शारीरिक व्याधियों को झेलना पड़ रहा था,
वहीं कृषि क्षेत्र में अत्यधिक कीटनाशकों के छिड़काव से प्रदूषित हुई मिट्टी जब वर्षा काल में पानी के संपर्क में आती है, तो इन जहरीले कीटनाशकों का प्रभाव मिट्टी के साथ मिलकर जल स्रोतों जैसे कुआ, तालाब, नदी,
नाले नहर, ट्यूबवेल आदि के जल में मिलकर नाइट्रेट नामक रसायन के रूप में पानी के साथ घुल मिल जाता है,
और उस प्रदूषित जल के सेवन से स्तनपान करने वाले बच्चों मैं इस प्रदूषित जल का असर अत्यधिक देखने में मिलता है,
ऐसे और कई प्रदूषण के प्रमाण समय-समय पर विभिन्न पानी की जांच के साथ पाए गए पैरामीटर मैं देखने को मिलता है,
जैसे की पीएच, क्लोराइड, फ्लोराइड, आयरन, हार्डनेस,
टरबीडीटी आदि,
रसायनों के पानी में कम ज्यादा होने से शरीर को अलग-अलग तरह से यह नुकसान पहुंचाते हैं,
जिसे लेकर संपूर्ण भारत वर्ष में भारत सरकार लगभग 4 वर्षों से सुदूर ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में स्वशासी संगठनों को,
(लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग)
और लगभग 1 वर्ष से….
(जल निगम)
के साथ एनजीओ को पंजीकृत कर कार्य कर रही है,
समय-समय पर स्वशासी संस्थानों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में,
आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्वयं सहायता समूह,
की महिलाओं को सरकार द्वारा प्रदत्त,
“वाटर टेस्टिंग”
कीट के माध्यम से प्रशिक्षण देकर,
प्रशिक्षित होकर यह महिलाएं,
सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में हैंडपंप, ट्यूबवेल, कुएं आदि,
के जल स्रोतों की वर्ष में दो से तीन बार,
गर्मी, वर्षा काल, एवं अन्य समय में पानी की 9:00 से 13:00 पैरामीटर पर जांचें की जा रही है,
इसके साथ-साथ निगरानी समिति के सदस्यों की नियुक्ति भी की जा रही है, (जल एवं स्वच्छता तदर्थ) समितियों के गठन के साथ-साथ इन्हें समय-समय पर जल संरक्षण, शुद्ध पेयजल,
का उपयोग अंशदान की राशि संग्रहण करना,
एवं जलकर की राशि का समय पर भुगतान करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है,
ग्रामीण जन समय-समय पर प्रशिक्षण लेकर,
प्रशिक्षित होकर अपने अपने क्षेत्र में जाकर जागरूकता के कार्य कर रहे हैं, इन प्रशिक्षण के अंतर्गत पंचायतों के सरपंच एवं पंच गणों के प्रशिक्षण कार्यक्रम, ग्रामीण सचिव एवं सहायक सचिवों के प्रशिक्षण कार्यक्रम,
जल निगम एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के माध्यम से क्षेत्र में आयोजित किए जा रहे हैं,
जिसमें मुख्य रुप से जिला स्तर के प्रशिक्षण कार्यक्रम,
ब्लॉक स्तर के प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं ग्रामीण स्तर के प्रशिक्षण कार्यक्रम है, इसमें मुख्य रूप से ग्रामीणों को प्रेरित किया जा रहा है, कि नल के माध्यम से मिलने वाला पानी ही सबसे शुद्ध और पीने योग्य है,
इस योजना का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि,
देश के ग्रामीण जो प्रतिवर्ष जल जनित बीमारी से ग्रसित होकर कमजोर एवं अशक्त होते हैं, और कई बार मृत्यु का ग्रास भी बन जाते हैं,
इन सभी से बचाव होगा एवं पूरा देश स्वस्थ होगा……