धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
मध्यप्रदेश प्रदर्शन न्यूज़ पोर्टल,
स्वामी विवेकानंद की 160 वी जयंती,
विशेष लेख……..
धन अर्जन करें किंतु चरित्र को भी बनाए रखें,
सहयोग अपेक्षित किंतु समझौता वादी ना हो,
मित्र कम हो किंतु उनका जीवन में अहम स्थान हो,
महिलाओं को स्वतंत्रता पूर्वक अपने निर्णय लेने दे,,
अंधविश्वास पतन का कारण,
धर्म मोक्ष मुक्ति और विश्वसनीयता का कारक,
शिक्षा ऐसी हो, जो चरित्र का निर्माण करें और देश धर्म संस्कृति,
स्वाभिमान की शिक्षा दें,
जीवन में कर्म का सिद्धांत सर्वोपरि हो,
ऐसे अनेक विचार स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों में थे, देश धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव अपनी प्रखर वाणी और मन मस्तिष्क में विवेक को धारण करने वाले ऐसे युवा थे स्वामी विवेकानंद, उन्होंने विदेश में अपनी विद्वता का डंका बजा कर केवल और केवल युवा अवस्था में ही समाधि को धारण कर लिया, मां कालिका के साक्षात दर्शन करने वाले कायस्थ कुल में जन्मे स्वामी विवेकानंद प्रखर बुद्धि के धनी थे, उन्होंने देश सहित संपूर्ण विश्व के युवाओं को सार्थकता के साथ आगे बढ़ने की शिक्षा दी आज का युवा यदि उनके सिद्धांतों पर चलकर आगे बढ़े तो अपने जीवन को चहुमुखी विकास की ओर ले जा सकता है, देश धर्म और संस्कृति उनके लिए सर्वोपरि रहा वह बहुजन हिताय प्रवृत्ति के अनुगामी थे सत्य का आचरण उनके जीवन का मूल् संकल्प था, अमेरिका जाने से पहले स्वामी विवेकानंद ने कई लोगों से समर्थन मांगा थियोसॉफिकल सोसायटी में कर्नल ने उनसे कहा कि अगर समर्थन पत्र चाहते हैं तो सोसायटी की सदस्यता लेनी होगी इस पर स्वामी जी ने कह दिया मैं आपके सिद्धांतों के विपरीत हूं, सदस्यता नहीं लूंगा उन्होंने सिद्धांतत: यह बताया कि यदि आपके सिद्धांतों के विपरीत कोई आपका सहयोग कर रहा है,
तो उसका सहयोग कदापि ना ले, चमत्कारों से दूरी बनाए, धूर्त और पाखंडी लोगों से कोसों दूर रहे, देश धर्म और संस्कृति हमारी मूल जड़ है,
इससे कभी भी दूर ना रहे, इनके बिना समृद्धि असंभव है…..