माँ की सीख -डॉ. रीना मालपानी

लघुकथा

कहते है कि माँ जीवन की प्रथम गुरु होती है, पर वही माँ जब जीवन में व्यवहारिक ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ऊंचाइयों पर भी पहुँचा दे, तब फिर जीवन में कुछ भी प्राप्त करने को शेष नहीं रह जाता, फिर संसार के छोटे-मोटे दु:ख आघात नहीं करते और दुनिया वालों की आलोचना, निंदा, विवेचना, समीक्षा सबकुछ नगण्य हो जाती है। आज रुद्र विदेश में अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर रहा है। वह पारिवारिक सुख से भी समृद्ध है और उसके जीवन में आध्यात्म का रस भी निहित है। रुद्र अपने बचपन की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए कहता है कि मैंने अपनी माँ की अन्तर्मन की शक्तियों को देखा है। वह सदैव मुझे भीतर से तटस्थ दिखाई देती है। अपनी निर्णय और सोच में अडिग, शायद भगवान के प्रति उनका अगाध विश्वास ही है जो उन्हें दुनिया वालों के नकारात्मक प्रभाव से दूर रखता है।

रुद्र बचपन से ही आत्मविश्वास से भरपूर था। वह लगातार छोटे-छोटे प्रयत्नों के द्वारा कार्य की पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा था। बचपन से ही सदैव कुछ नवीन और क्रियात्मक करना रुद्र को पसंद था, क्योंकि माँ ने बचपन से ही उसमें सकारात्मक सोच के बीज अंकुरित कर दिए थे। रुद्र में बहुत से विशिष्ट गुण थे। उसमें मंदिर जाना, दैनिक समाचार पत्रों को वाचन, अपना प्रिय खेल खैलना, नई चीज के बारे में जानकारी एकत्रित करना, व्यायाम करना, नई भाषाओं का अध्ययन एवं इसके अतिरिक्त घर वालों के छोटे-छोटे कार्यों में हाथ बटाना। साफ-सफाई के प्रति भी सजग रहना और रसोईगृह के क्रियाकलापों में भी माँ के साथ संलग्न रहना। माँ उसे लोगों के छोटे-मोटे कार्यों में भी सहयोगी रहने के लिए प्रेरित करती थी। माँ ने रुद्र को अच्छी कहानियाँ, अच्छे नीति वाक्य, अच्छे जीवन चरित्र को सुनाने में भी अपना कुछ समय व्यतीत किया था।

इन्हीं सभी आदतों के कारण रुद्र अपनी जीवन शैली से बहुत खुश था और अपना हर कार्य समय पर पूर्ण करने में सक्षम भी था। माँ ने उसे जीवन का मूलमंत्र सिखाया था कि कोई भी कार्य केवल सोचने मात्र से सम्पन्न नहीं होता उसके लिए कार्य को प्रारम्भ करना पड़ता है। यदि वह किसी कार्य का प्रारम्भ कर दे तो वह कार्य निश्चित ही समय के अनुरूप पूर्ण हो जाएगा। माँ ने यह भी सिखाया कि मन का हो तो हमारे लिए अच्छा है पर मन का न होना भी हमारे लिए ईश्वर का सोचा प्रारब्ध है और ईश्वर हमेशा हमारे लिए अच्छा ही सोचते है। आज रुद्र माँ के कथन पर अमल के अनुरूप जीवन में भी सफलता और अपने जीवन से संतुष्ट भी था। वह लगातार सफलता के सोपान की ओर धैर्यपूर्वक कदम बढ़ाता जा रहा था। माँ की कही हुई प्रत्येक बात को आत्मसात करके आज वह सफलता के उन्नत आकाश को छु रहा था।

इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि कुछ गुण यदि बचपन से ही बच्चों में डाल दिए जाए तो वह भविष्य की दिशा निर्धारण में भी सहयोगी सिद्ध हो सकते है। यदि आप बच्चों को जीवन जीने की कला सीखा दोगे तो वे किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानेंगे। जीवन में समय और परिस्थितियाँ भी जीवन जीने का मूलमंत्र सिखाती है। बस अपने बच्चों को समय अनुरूप निर्णय लेने में सक्षम बनाएँ।

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*