डॉक्टरी के अतिरिक्त अन्य व्यवसाय का विचार करें – प्रो. देवेन्द्र कुमार शर्मा

इस वर्ष की नीट परीक्षा हुई। नीट परीक्षा ही वर्तमान में मेडिकल में प्रवेश का एकमात्र माध्यम है। कई परीक्षा केन्द्रों पर अव्यवस्था के समाचार आये। अव्यवस्था के कारण कई विद्यार्थी पेपर ठीक से नहीं कर सके। परीक्षा केन्द्र से रोते हुए बाहर आये। गत वर्ष नीट परीक्षा में भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा। इस वर्ष हुए भ्रष्टाचार की खबर भी आ गई। बिहार में अभ्यर्थी के स्थान पर एक एमबीबीएस डॉक्टर ने परीक्षा दी। बिहार हमेशा परीक्षाओं में अपराधीकरण का प्रमुख केन्द्र रहा है। मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले को भुला नहीं जा सकता। इसमें कुछ जानें भी गई थी। ऐसे अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के चलते ईमानदार विद्यार्थियों के लिए प्रवेश की गुंजाईश बहुत कम रह जाती है। मेडिकल में प्रवेश का प्रयास ही नहीं करना चाहिए। वर्तमान में उपलब्ध अन्य विकल्प की ओर ध्यान देना चाहिए। केन्द्र सरकार ने जिस अच्छे उद्देश्य से नीट परीक्षा की व्यवस्था की थी उसमें नीट असफल रहा है। वास्तव में विचार करें तो देश में चारित्रिक संकट व्याप्त है। भ्रष्टाचार करने वाले और कराने वाले सदा सक्रिय रहते हैं। मेडिकल में प्रवेश के लिये विद्यार्थियों को अनगिनत पापड़ बेलने पड़ते हैं। सब जानते हैं प्रवेश आसान नहीं। अब तो आरक्षित श्रेणी में भी बहुत प्रतिस्पर्धा हो गई है। सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों के लिये सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं। इसलिये अब समय आ गया कि डॉक्टर बनने के सपने को छोड़ा जाए और अन्य विकल्प पर भी विचार किया जाए। डॉक्टर बनने के प्रयास में कई युवाओं के जीवन बर्बाद हो चुके हैं और माता-पिता निराश हुए हैं।
मेडिकल प्रवेश के लिये कोचिंग बहुत ही लाभकारी व्यवसाय हो चुका है। देश में प्रतिवर्ष लाखों विद्यार्थी मेडिकल की कोचिंग लेते हैं लेकिन इन से लाभान्वित होने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत ही कम होती है। कुछ आरक्षण वाले प्रवेश पा जाते हैं किन्तु सामान्य श्रेणी के विद्यार्थियों का ईश्वर ही मालिक। कई विद्यार्थी एक से अधिक बार प्रवेश परीक्षा देते हैं। इसमें उनका काफी समय और धन बर्बाद होता है। डॉक्टर बनने की युवाओं की इच्छा का लाभ कोचिंग वाले उठा रहे हैं और अपार धन कमा रहे हैं। कई कोचिंग में विद्यार्थियों पर इतना दबाव डाला जाता है कि कुछ इस मानसिक तनाव को सहन नहीं कर पाते और आत्महत्या कर लेते हैं। इसके लिये माता-पिता भी उत्तरदायी हैं, वे भी अपने बच्चों पर बेहिसाब दबाव बनाते हैं। अब समय आ गया है कि विचार करना चाहिए कि डॉक्टर बनने में जितना समय और धन लगता है उतना लगाना चाहिए कि नहीं?
सभी जानते हैं कि डॉक्टर बनने के पीछे अधिक से अधिक धन कमाने की इच्छा होती है। विचार करें कि एक सफल नोट छापने की मशीन बनने में डॉक्टर की कितनी उम्र खप जाती है। अब मेडिकल व्यवसाय में भी बहुत प्रतिस्पर्धा हो गई है। पीजी करते-करते तीस वर्ष की आयु हो जाना बहुत आम बात है। उससे अधिक भी हो जाती है। उसके बाद एक सफल नोट छापने की मशीन बनने तक कम से कम 10 वर्ष और चाहिए। तब तक आयु 40 वर्ष हो जाती है। फिर केवल नोट छापना ही जीवन का उद्देश्य रह जाता है। मनुष्य – मनुष्य नहीं रहता केवल मशीन बन जाता है। उसके लिये रिश्तेनाते मानवीय संवेदना का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
हमारी सामाजिक व्यवस्था भी दोषपूर्ण है। कहते हैं कभी समाज में गुणी व्यक्ति का बड़ा आदर होता था किन्तु अब समाज का दृष्टिकोण बदल गया है। धन ही योग्यता का पैमाना रह गया है। अब व्यक्ति के गुण-अवगुण का विचार कोई नहीं करता। अब तो धन का विचार होता है। धनवान है तो अच्छा है, सद्गुणी है और आदर का पात्र है। यह एक विक्रत मानसिकता है किन्तु अब सबकुछ इस विक्रत विचार से ही तय होता है। पैसे का पावर अद्भुत होता है। लक्ष्मीजी की आरती में भी कहा गया है कि यदि उनकी कृपा हो जाए तो “सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता”। हम धन का विरोध नहीं करते, धन आवश्यक है किन्तु धन को जीवन का एक मात्र उद्देश्य बनाना अनुचित है।
वर्तमान में ज्ञान के कई क्षेत्र विकसित हो गये हैं। इनमें से किसी को भी चुना जा सकता है। इंजीनियरिंग की भी कई शाखाएं विकसित हो गई हैं जिनमें अच्छा रोजगार उपलब्ध है। इलेक्ट्रॉनिक का क्षेत्र भी बहुत विशाल है। स्पेस और रक्षा क्षेत्र में भी उचित रोजगार उपलब्ध हो गये हैं। जिसमें रूचि हो वह व्यवसाय चुना जा सकता है। माता-पिता बच्चों को यही सिखायें, उन्हें धन कमाने की मशीन बनाने का प्रयास न करें। धन कमाएं, अधिक से अधिक कमाएं, किन्तु धन को जीवन का अंतिम उद्देश्य न बनायें। गलती यही हो रही है। धन एक अच्छा गुलाम है और बहुत बुरा मालिक। जब धन मालिक हो जाता है तो इंसान, इंसान नहीं रहता वह धन कमाने की मशीन बन जाता है। उसके पास मानवीय संवेदनाओं के लिये समय नहीं रहता। नाते-रिश्ते, अपने –पराये, सब निरर्थक, सब बेकार, धन ही सबकुछ। इसी विचार के कारण कई युवकों का जीवन बर्बाद हो रहा है। डॉक्टर बनने के प्रयास में कई जिंदगीयां बर्बाद हो चुकी हैं इसलिए दृष्टिकोण बदला जाना चाहिए। एक बार में हो जाएं तो अच्छा अन्यथा रास्ता बदल लेना चाहिए। इसमें माता-पिता को बच्चे की मदद करना चाहिए, किन्तु ऐसा होता नहीं। कई विद्यार्थियों को कई बार परीक्षा देते देखा है, सफल नहीं होने पर निराशा होती है। इसी कारण प्रतिवर्ष कुछ युवकों द्वारा आत्महत्या कर ली जाती है। इस अभिशाप से बचा जा सकता है। केवल माता-पिता को दृष्टिकोण बदलना चाहिए। सब अपना-अपना भाग्य लेकर आते हैं। ईश्वर पर विश्वास कीजिए।