इंदौर ।भारत की “आजादी का अमृत महोत्सव” के अंतर्गत आईसीएआर-आई.आई.एस.आर तथा आत्मा परियोजना जिला इंदौर एवं एवं सोलिडरीडाड, भोपाल व आई.टी.सी.के संयुक्त तत्वावधान में “सोयाबीन की वर्तमान स्तिथि पर कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा” का आयोजन।
आजादी का अमृत महोत्सव” के अंतर्गत आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों की श्रुंखला में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान तथा आत्मा परियोजना कृषि विभाग, जिला इंदौर एवं सोलिडरीडाड, भोपाल व आई.टी.सी.के संयुक्त तत्वावधान में “सोयाबीन की वर्तमान स्तिथि पर कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा” विषय पर ऑनलाइन सत्र का आयोजन किया गया । इस सत्र में संस्थान के वैज्ञानिकों सहित सम्पूर्ण भारत वर्ष से 2000 से अधिक प्रगतिशील कृषकों ने ज़ूम एप के साथ-साथ संस्थान के यूट्यूब चैनल पर एक साथ प्रसारित इस परिचर्चा में भाग लिया ।
इस परिचर्चा के प्रारंभिक सत्र में संस्थान के डॉ बी.यु दुपारे, प्रधान वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) ने इस सत्र की भूमिका प्रस्तुत करते हुए विभिन्न समयावधि में की गयी बौवनी के कारण सामने आने वाले परिणामों के बारे में बात की । उन्होंने यह भी कहा कि तिन विभिन्न समयावधि में बोवनी होने के कारण इस वर्ष सोयाबीन फसल पर आक्रमण करनेवाले कीटों का प्रकोप एवं उनके जीवनचक्र बढ़ने की सम्भावना हो रही है, जिसके लिए कृषकों को सतर्क करने की नितांत आवश्यकता हैं । इस अवसर पर सोलिडरीदाड संस्था के डॉ सुरेश मोटवानी जी ने कहा कि वर्तमान में सोयाबीन की खेती में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए इस समय किसान को ऐसे सत्र की आवश्यकता है, साथ ही उनकी सभी समस्याओं के समाधान प्रदान करने की कोशिश इस सत्र के माध्यम से करने का आश्वासन दिया जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ की प्राप्ति हो । इसी कड़ी में आई.टी.सी.ली के सहयोगी प्रबंधक, (कृषि सेवाएं) श्री राकेश मोहन यादव जी ने संस्थान द्वारा की गयी पहल की सराहना करते हुए कहा की भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा प्रसारित सम-सामाहिक सलाह के माध्यम से देश का किसान अब आधुनिकरण की ओर बढ़ रहा है और अपने आप को वर्तमान समय से जुडा हुआ महसूस करता है साथ ही ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से बौवनी के पूर्व एवं पश्चात उपयोग में आने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों का लाभ प्राप्त कर सकारात्मक नतीजों का लाभ उठा पाता है । इसी श्रुंखला में अपनी ख़ास उपस्थिति देकर श्रीमती शैर्ली थॉमस, परियोजना निदेशक, आत्मा कृषि विभाग, इंदौर ने उनके द्वारा किये जा रहे दौरे के आधार पर वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए इस सत्र को सभी किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया ।
इस अवसर पर संस्थान के प्रभारी निदेशक, डॉ एस. डी. बिल्लोरे ने अपने उद्बोधन में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि इस वर्ष बौवनी लम्बे समय तक की गयी है, जिसके कारण विभिन्न समस्याओं का भी समाना करना पड़ सकता है, साथ ही कृषकगण बिना उचित जानकारी के दो रसायनों के उपयोग से बचे साथ ही अनुशंसित रसायनों का ही उपयोग करें । इस परिचर्चा में संस्थान के अन्य वैज्ञानिकों द्वारा भी किसानो को उचित जानकारियाँ प्रदान की गयी, जिसमे डॉ आर.के. वर्मा, वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) द्वारा खरपतवार प्रबंधन के लिए बुआई के 15-20 दिन बाद डाले जाने वाले खरपतवार नाशकों के बारे में चर्चा की गयी साथ ही उन्होंने इसके नियंत्रण हेतु, चौड़ी व सकरी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु इमेझेथापायर 1 ली/हे. एवं इमेझेथापायर+इमेजामाक्स 100 ग्रा/हे. को उपयोगी बताया । डॉ लोकेश कुमार मीणा, वैज्ञानिक (कीट विज्ञान) ने इस अवसर पर अपने संक्षिप्त संबोधन में सोयाबीन फसल की प्रारंभिक अवस्था में लगने वाले कीट जैसे, नीला भृंग, अलसी की इल्ली, पत्ती सुरंगक, ताना मक्खी के नियंत्रण हेतु क्लोरेनेट्रेनिलिप्रोल 150 मी.ली/हे. का छिड़काव करने की सलाह दी । इसी कड़ी में संस्थान के डॉ लक्ष्मण सिंह राजपूत, वैज्ञानिक (पादप रोग कार्यिकी) ने बताया की इस समय ज्यादा बारिश होने से पौधे की जड़ों में गरदनी सडन तथा राइजोक्तोनिया एरियल ब्लाईट जैसे रोग लग जाते हैं जिसके समाधान हेतु हेक्साकोनाज़ोल एवं प्रोपीकोनाज़ोल का प्रयोग करना चाहिए ।
इस कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा के अवसर पर विशेष रूप से उपस्र्थित प्रख्यात कीट वैज्ञानिक डॉ अमर नाथ शर्मा ने सोयाबीन के प्रमुख कीटों के प्रबंधन के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि इस वर्ष किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता हैं । उनके अनुसार यह अत्यंत उपयुक्त समय है जब किसान खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशकों का छिडकाव करते समय क्लोरइंट्रानिलिप्रोल नामक कीटनाशक का भी एक साथ मिलकर छिडकाव कर सकते हैं जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ अगले एक माह तक पत्ती खाने वाले कीटों के प्रकोप से फसल को सुरक्षित किया जा सके । इसके पश्चात ज़ूम प्लेटफार्म एवं संस्थान के youtube चैनल से जुड़े श्रोता एवं दर्शकों से सोयाबीन फसल पर पूछे गए विभिन प्रश्नों के तकनीकि एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानकारी देकर उनकी समस्यों का निराकरण किया गया। यह उल्लेखनीय हैं कि सोशल मीडिया चैनल जैसे टेलीग्राम, whatsapp, youtube एवं फेसबुक पेज के माध्यम से एक साथ प्रसारित इस ऑनलाइन कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा के आयोजन करने में भारतीय सोयाबीन अनुसन्धान संस्थान देश का प्रथम संस्थान है, जिसने इस वर्ष स्वयं किसानों के साथ ऑनलाइन चर्चा कर किसानों को सोयाबीन फसल में आने वाली अपेक्षित समस्याओं के निराकरण हेतु पहल की हैं । कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में डॉ सविता कोल्हे, (प्रधान वैज्ञानिक) एवं समंवयक द्वारा धन्यवाद ज्ञापित कर कार्यक्रम का समापन किया गया ।