बौद्धिक सम्पदा ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी- धेर्मेन्द्र प्रधान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मूल धारणा अपने पौराणिक सनातनी भगवा ध्वज के रूप में केसरिया ध्वज को गुरु रूपी आत्मसात किया है । लेकिन जब सरकार मैं व्यवहारिक विषयों पर अपना पक्ष रखने की बात आती है तो उसके अनुशंगी संगठन सांसारिक व्यवस्थाओं को भी पूर्ण मान्यता देने से पीछे नहीं हटते । मसलन आम प्रचलन की भाषा में गुरु पूर्णिमा पर्व को संघ में भारतीय शिक्षा मंडल द्वारा व्यास पूजा महोत्सव के तौर पर मनाया जाता है ।समाचार ।। भारतीय शिक्षण मण्डल द्वारा आयोजित व्यास पूजा महोत्सव के अवसर पर केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि बौद्धिक सम्पदा ही हमारी सबसे बड़ी पूँजी है जिसके संवर्धन में भारतीय चिंतन एवं शिक्षण व्यवस्था की प्रमुख भूमिका रही है | आज भारत जब एक नये दौर में प्रवेश कर रहा है, नई शिक्षा नीति, विज्ञान, तकनीकी, रचनात्मक सोच, तार्किक निर्णय, और नवाचारों को प्रोत्साहित कर भारत को वैश्विक ज्ञान के केंद्र के रूप में स्थापित करने में मदद मिलेगी |

श्री प्रधान ने आगे कहा कि हमारे जीवन में गुरु की अहम भूमिका है | गुरु अपने ज्ञानपुंज से छात्र के व्यक्तित्व का निर्माण करने के साथ ही उसके चरित्र निर्माण में भी अहम भूमिका निभाता है | भारतीय शिक्षण व्यवस्था में सदियों से ही गुरु परम्परा विद्यमान रही है जिसने हमारी बौद्धिक सम्पदा को समृद्ध करने का कार्य किया है | भारतीय शिक्षा व्यवस्था न सिर्फ सामाजिक सरोकारों के प्रति संवेदनशील बनाती है अपितु चेतनाशील भी बनाती है जिससे हम अपने आस-पास के सामाजिक वातावरण, व्यक्ति, एवं परिवार से निरन्तर ही सीखते रहते हैं

तकनीकी के प्रसार के कारण हुए बदलाव को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि बदलते परिवेश में तकनीकी विस्तार ने नूतन आयाम प्रस्तुत किया है जिससे विचार प्रवाह भी प्रभावित हुआ है | तकनीकी के क्षेत्र में हो रहे प्रयोगों से नवाचारों का दायरा भी बढ़ा है जिससे वर्तमान चुनौती के समय भी शिक्षा के प्रसार का मार्ग प्रशस्त हुआ है | उन्होंने हमारे जीवन में प्रकृति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रकृति हमारी प्रथम गुरु है जो न सिर्फ जीवन दर्शन का बोध कराती है अपितु सृजनात्मक सन्देश का प्रसार भी करती है |

उन्होंने गुरु-शिष्य परम्परा के द्योतक ‘व्यास पूजा’ के आयोजन एवं शैक्षिणक विमर्श में योगदान के लिए भारतीय शिक्षण मण्डल की प्रशंसा भी की |

कार्यक्रम का संचालन कर रहे भारतीय शिक्षण मण्डल के अध्यक्ष सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि नदियाँ हमारे लिए भौगोलिक इकाई नहीं हैं, यह हमारे लिए सांस्कृतिक सम्पदा हैं जिनका हमारे अस्तित्व एवं सभ्यता के निर्माण में अहम योगदान परिलक्षित होता है | जोशी ने शिक्षा के क्षेत्र में मण्डल द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मण्डल शिक्षा में भारतीयता के लिए कृत-संकल्पित है, साथ ही भारतीय शिक्षा व्यवस्था में गुरुकुल परम्परा को स्थापित करने एवं शैक्षणिक संस्थाओं में गुरुओं की प्रतिष्ठा को मजबूत करने के लिए निरन्तर प्रयासरत है | इस दौरान उन्होंने आधुनिक समाज में भारतीयकरण के संकल्प को साकार करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सही क्रियान्यवन में भारतीय शिक्षण मण्डल के विभिन्न प्रकल्पों द्वारा संचालित कार्यक्रमों से सम्बन्धित जानकारी भी प्रस्तुत किया |

इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मण्डल के संगठन मन्त्री मुकुल कानिटकर ने ‘नदी को जानों’ अभियान की जानकारी प्रस्तुत की | उन्होंने कहा कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य छात्रों को नदियों के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनाना है जिससे जीवनदायिनी नदियों को बचाया जा सके | इस दिशा में सकारात्मक कार्य करने वाले को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किया जायेगा |