रितेश मेहता – रतलाम
करीब सवा साल पहले मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को लेकर हुए रोमांचक घटनाक्रम के बाद भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी नई पार्टी में रणनीतिक कौशल से साबित कर दिया कि लोग उन्हें यूंही नहीं पुकारते महाराज महाराज श्रीमंत महाराज।
बुधवार को मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया को नागरिक उड्डयन विभाग में कैबिनेट मंत्री का जिम्मा मिला। इसके साथ ही उनके लिए अपने ड्रीम सरकारी बंगले 27 सफदरजंग रोड के लिए भी रास्ते साफ होते नजर आ रहे हैं। आज का दिन सिंधिया के लिए राजनीतिक और भावनात्मक रूप से शुभ संकेत लेकर आया है। एक तो जीवन में पहली बार केंद्र में कैबिनेट मंत्री का पद मिला और उनके पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के राजनीतिक सफर के गवाह रहे सरकारी बंगले 27 सफदरजंग रोड भी अब खाली होने वाला है ।
क्योंकि मोदी मंत्रिमंडल से डॉ रमेश पोखरियाल “निशंक” की विदाई हो चुकी है। खुद ज्योतिरादित्य के जीवन का अधिकांश समय इस सरकारी बंगले में गुजरा था और उनका इस बंगले से भावनात्मक जुड़ाव का आलम यह था कि चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री बन जाने के बावजूद बंगले की नेम प्लेट पर स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ही अंकित था। अभी दो वर्ष पहले मोदी- टू में उक्त बंगला “निशंक” के नाम आवंटित हुआ था ।
अब बात आती है,सिंधिया के राजनीतिक कौशल की पिछले सवा साल की। सिंधिया ने कमलनाथ के यह कहने पर कि ” सिंधिया को सड़क पर उतरना है, तो उतर जाए” पर बात इतनी तूल पकड़ गई कि ज्योतिरादित्य ने अपनी राजनीतिक दिशा ही मोड ली सिंधिया ने जिस धैर्य और संयम से अपनी नई राजनीतिक पारी को संवारा उससे आज दबी जुबान के कांग्रेसी भी कायल है, क्योंकि 18 साल के राजनीतिक केरियर को छोड़ नए सिरे से नई पार्टी में समाहित हो यह सब इतना आसान नहीं था।
इस बात की चर्चा कांग्रेसी हलकों में है कि……. महाराज ने अपनी साउंड लीडरशिप की बानगी पेश की है । सिंधिया ने पहले अपने समर्थक विधायकों के इस्तीफे कराकर उन्हें उपचुनाव में फिर से न सिर्फ जीता कर लाए बल्कि सभी को मंत्री भी बनवाया और महत्वपूर्ण विभाग भी दिलवाया साथ ही अपने अन्य तमाम समर्थकों को प्रदेश भाजपा संगठन में भी महत्वपूर्ण पदों पर काबिज करवाने में सफल रहे ।
इसके बाद आज खुद मध्य प्रदेश के भाजपा की सरकार बनवाने के पारितोषिक के तौर पर केंद्रीय मंत्री का पद से नवाजे गए।
सवा साल पहले कमलनाथ की सरकार गिराने के बाद तमाम कांग्रेसियों को यही आशंका थी कि कांग्रेसी कल्चर में रचे बसे सिंधिया और उनके समर्थक भाजपा खासकर संघ की विचारधारा में रच बस नहीं पाएंगे। लेकिन महाराज के सवा साल के भाजपाई करण के दौर पर नजर डालें तो चाहे बात नागपुर में संघ मुख्यालय पर हाजिरी बजाने भोपाल में समिधा का दौरा और मेरे जीवन काल में महाराज को पहली बार रतलाम की सड़कों पर सेव बनते देखने का दृश्य हो या छोटे से छोटे भाजपा कार्यकर्ता के साथ घुल मिल जाने का निरंतर प्रयास हो कुल मिलाकर प्रथम दृष्टया केसरिया सिंधिया का सवा साल का राजनीतिक ग्राफ 18 साल के कांग्रेसी नेता की तुलना में ज्यादा फलदाई साबित हो रहा है ।
कांग्रेसी इस बात को लेकर प्रफुल्लित हो सकते हैं कि उनके यहां से मुख्यमंत्री पद का दावेदार हमेशा के लिए विदा हो गया। लेकिन वास्तविक धरातल मध्य प्रदेश में कांग्रेस का जीर्णोद्धार और पुनरोद्धार राज्यसभा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की मेहनत और व्यक्तिगत रुचि पर निर्भर है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर चलो-चलो चलो-चलो.. और तमाम पार्टी के पदों को अपने अंदर समाहित कर बैठे कमलनाथ के चेहरे पर 2023 में कांग्रेस की नैया पार लगाने की संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है, क्योंकि संघ अपने चारागाह को किसी भी कीमत पर खोना नहीं देगा ।
हालाकि सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए मुख्यमंत्री पद के जितने करीब नजर आ रहे थे ,आज भाजपा में फिलहाल कोसो दूर दिखाई दे रहे है। लेकिन यह भी सत्य है कि मौजूदा स्थिति में “शिव -ज्योती” एक्प्रेस जिस रफ्तार से चल रही है।उसे नाजुक अर्थव्यवस्था के दौर में ना संघ ना मोदी ब्रेक देने की कोशिश करेंगे।
वैसे आज के विस्तार में प्रह्लाद पटेल के पर कतरे जाने को उनकी प्रदेश के नेताओ के साथ चाय की चुस्कियों के खमीयाजे के तौर पर देखा जा रहा है।