रतलाम।आज दिनांक 31 जुलाई 2025 को चातुर्मास में भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष दिवस स्टेशन रोड स्थित श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर पर मनाया गया। मुनि श्री 108 सद्भाव सागर जी मसा एवं मुनि श्री 105 छुल्लक परम योग सागर मसा. की उपस्थिति में कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें सुबह 6:00 बजे प्रभात फेरी स्टेशन रोड मंदिर से टीआईटी रोड होते हुए पुनः मंदिर पहुंची जिसमें पुरुष वर्ग सफेद ड्रेस और महिलाएं लाल पीली, केसरिया साड़ी पहने हुए थी तत्पश्चात जिनेंद्र भगवान के अभिषेक, शांति धारा, एवं नित्य नियम की पूजन के बाद श्री पारस विधान महामंडल की पूजन बाल ब्रह्मचारी पवन भैया जी के निर्देशन किया गया भगवान के मोक्ष कल्याणक दिवस पर निर्वाण लाडू चढ़ाए गए के लाभार्थी परिवार श्री भूपेंद्र अविरल मोठिया परिवार ने धर्म लाभ लेकर पुण्य अर्जित किया
इस मुनि श्री ने अपने आशिष वचन में कहा.की धर्म-अध्यात्म।
विशेष आलेख
त्याग से तप और तप से केवलज्ञान तक: भगवान पार्श्वनाथ के दस भवों की प्रेरणास्पद यात्रा”
> “विधान कर लेना, पूजन कर लेना सरल है; परंतु sas -बहू को पार कर लेना अत्यंत कठिन है।”
मुनि श्री ने कहा, “मन की स्थिति कमजोर नहीं होनी चाहिए, चाहे निर्णय लेने में समय लगे। आत्मज्ञान के चार आधार हैं— गुरु उपदेश, पुरुषार्थ, रानी अर्थात इंद्रिय संयम, और तत्व निर्माण की क्षमता। अगर इनका समुचित समन्वय हो, और भगवान को हृदय में स्थापित कर लिया जाए, तो मोक्ष यहीं संभव है।”
भगवान पार्श्वनाथ के दस भव: एक आध्यात्मिक दृष्टि
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ केवल धार्मिक श्रद्धा के विषय नहीं, अपितु आत्मा की विकास यात्रा के उज्ज्वल उदाहरण हैं। उनके दसों भव आत्म-साधना की पराकाष्ठा हैं—
1. धरणेन्द्र नागराज (नागलोक) – एक धर्मपरायण और करुणामयी नागराज के रूप में मोक्ष की तीव्र लालसा।
2. वज्रसेन राजा (भारतवर्ष) – न्यायप्रिय राजा, जिन्होंने शरणागत की रक्षा हेतु जीवन दांव पर लगाया।
3. महायोगी तपस्वी – गहन ध्यान और साधना से आत्मज्ञान की ऊँचाइयाँ छुईं।
4. समुद्रविजय चक्रवर्ती – विश्वविजेता होकर भी धर्मप्रचारक बने, अहंकार से दूर रहे।
5. धर्मनिष्ठ वणिक (सेठ)- व्यापार से अर्जित धन को धर्म-सेवा, अन्नदान और तीर्थ निर्माण में लगाया।
6. स्वर्गीय देव – देवता बनकर भी आत्मकल्याण हेतु जागरूक रहे।
7. कठोर तपस्वी मुनि – शरीर कष्ट सहते हुए भी आत्मशुद्धि की ओर गतिशील।
8. विश्वविजयी सम्राट -राज्य को त्याग वैराग्य को अपनाया और संन्यास धारण किया।
9. पुनः स्वर्गीय देव – देव योनि में जन्म लेकर तीर्थंकर बनने की पूर्ण तैयारी।
दसवां भव: तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जीवन
जन्म: वाराणसी में राजा अश्वसेन व रानी वामादेवी के पुत्र रूप में प्रादुर्भाव हुआ।
विवाह: यशोदा रानी से संपन्न हुआ।
दीक्षा: 30 वर्ष की आयु में, कार्तिक कृष्ण एकादशी को दीक्षा ग्रहण की।
केवलज्ञान: 84 दिन की कठोर तपस्या के उपरांत केवल ज्ञान प्राप्त हुआ।
धर्मदेशना: 70 वर्षों तक भारतवर्ष में धर्म प्रचार
मोक्ष: सम्मेद शिखर पर आत्मकल्याण की चरम अवस्था प्राप्त की।
दसवें भव की विशेषताएं
तपस्या में यंत्रणा: तांत्रिक मेघमाली द्वारा अग्निपरीक्षा, परंतु धरणेन्द्र और पद्मावती ने रक्षा की।
अहिंसा की प्रतिमा: अग्नि में जलते जीवों की रक्षा कर करुणा की मिसाल पेश की।84 दिनों में केवलज्ञान: यह प्रमाण है कि सम्यक तप, समर्पण और पूर्व जन्मों की साधना मिलकर ही पूर्णत्व तक पहुंचती है।
70 वर्षों की धर्मदेशना: हजारों-लाखों जीवों को मोक्षमार्ग पर लगाया। जीवन-संदेश:कर्म और पुनर्जन्म की यथार्थता।त्याग और तप के महत्व का बोध।अहिंसा और जीवदया का अनुपम संदेश।वैराग्य और आत्मसाक्षात्कार की प्रेरणा।मोक्ष ही आत्मा का अंतिम लक्ष्य है।
भगवान पार्श्वनाथ का जीवन केवल तीर्थंकर की गाथा नहीं, एक साधक की चेतना यात्रा है। उनके दसों भव यह सिखाते हैं कि चाहे राजा हो या नाग, देव हो या वणिक – अगर आत्मा में वैराग्य, तप और करुणा है, तो मोक्ष अवश्य संभव है।
मुनि श्री के आत्मानुभूतिपरक वचनों से गूंजा धर्मसभा का मंच
धर्मसभा में अपने जीवन के गूढ़ अनुभव साझा करते हुए मुनि श्री 108 सद्भाव सागर मसा ने बताया कि लौकिक जीवन को त्यागने का उनका निर्णय 2012 में पक्का हो चुका था। भगवान जैसे भावों के साथ, चलते-चलते लड्डुओं का त्याग करते समय अंतर्मन में केवल वैराग्य का चिंतन था। 2014 की मुकुंद सप्तमी को जब उन्होंने अंतिम रूप से संन्यास लिया, तो वह क्षण केवल परित्याग नहीं, आत्म-जागरण का संकल्प था। उक्त बात अपनी व्याख्यान माला में कहीं।
दिगंबर जैन समाज के सभी समाज जन महिलाएं , पुरुष उपस्थित थे। उक्त जानकारी श्री चंद्रप्रभ दिगम्बर जैन श्रावक संघ रतलाम के संयोजक मांगीलाल जैन ने दी।