हनीमुन के प्रारंभ में पत्नी सोनम द्वारा पति राजा की निर्मम हत्या अकल्पनीय तो है ही साथ ही यह हत्या कई सामाजिक और व्यक्तिगत प्रश्न भी प्रस्तुत कर रही है। इस हत्या की जितनी भी निंदा की जाए कम है और हत्यारी सोनम को जितनी भी सजा दी जाए कम ही होगी। हमारा उद्देश्य व्यक्तिगत और पारिवारिक त्रासदी के साथ ही सामाजिक विघटन पर भी विचार करना है। पत्नी ने निर्दयता से पति की हत्या की उसके बारे में सोचने से ही मन में सिहरन पैदा हो जाती है; असहनीय कंपकंपी अनुभव होती है। इंजीनियर अतुल सुभाष का प्रकरण भी याद आता है जिसने पत्नी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर ली थी। पति-पत्नी के संबंधों में बढ़ती विषमता मन में बहुत चिंता उत्पन्न करती है। समाज कर्णधारों, उपदेशकों और माता-पिता को चिंता करनी चाहिए। उन्हें यह विचार करना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं बढ़ क्यों रही है।
पहले विश्लेषण पत्नी सोनम द्वारा पति राजा की हत्या विवाह के एक सप्ताह के अंदर ही करने का विश्लेषण करें। सोनम ने अपने पति की हत्या अपने पड़ौसी राज की मदद से की। उजागर यह हुआ कि सोनम के उसी पड़ौसी राज से प्रेम संबंध थे। सोनम पढ़ी-लिखी होकर अच्छी नौकरी कर रही थी। उसको विवाह करने से मना कर देना चाहिए था, मना क्यों नहीं किया? बहुत हृदय विदारक है यह सोचना कि पत्नी ने विवाह के बाद बहुत कम समय में पति की हत्या कर दी। जिस तरह की हिम्मत और निर्दयता सोनम ने दिखाई उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। पूरी संभावना है कि अब उसे फांसी होगी या आजीवन कारावास। हत्या का दंड सभी जानते हैं फिर भी सोनम ने अपने पति की हत्या कर दी। प्रश्न कई उपस्थित होते हैं। सोनम ने राजा से शादी कर से मना क्यों नहीं किया? सोनम को क्यों पति राजा की हत्या ही विवाह बंधन से मुक्ति पाने का एकमात्र मार्ग समझ में आया?
वर्तमान आधुनिक समाज में प्रेम प्रसंग बहुत अधिक होने लगे हैं। इनमें से अधिकतर में लड़के – लड़की के सामाजिक और शैक्षणिक स्तर में बहुत अंतर होता है। यह आकर्षण वास्तव में शारीरिक होता है। इसे दोनों बहुत आत्मीय संबंध मान लेते हैं। यह होता शारीरिक है लेकिन मन को दुषित कर देता है। इसी के परिणाम स्वरूप सोनम विवाह के तुरंत बाद अपने पति की हत्या कर देती है। पति की हत्या करने में उसकी आत्मा कांपती भी नहीं। कोर्ट में सोनम और उसके साथियों का जो भी फैसला हो हमारा प्रयास इस समस्या को सामाजिक दृष्टिकोण से विश्लेषण का है।
वर्तमान युग में नारी शिक्षा और स्वतंत्रता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जा रहा है। महिलाएं अनेक क्षेत्र में अद्भुत कार्य कर रही है, किन्तु पारिवारिक और सामाजिक विच्छेद और विभाजन की घटनाएं निरंतर बढ़ रही है। ऐसी घटनाओं से उत्पन्न त्रासदी परिवारों को हमेशा के लिए दुःखी और बर्बाद कर देती है। इन घटनाओं का कारण महिलाओं की निर्ममता और निर्दयता दिखाई देती है। ऐसा परिवर्तन क्यों हुआ कि प्रेम, दया और करूणा की प्रतिमूर्ति मानी जाने वाली महिला इतनी विकराल एवं निर्दय हो गई। क्या यह परिवर्तन आधुनिकता और समानता के नाम पर मिली आजादी का परिणाम है? विवेकहीनता भी एक कारण हो सकता है। किताबी शिक्षा बढ़ रही है और विवेक कम हो रहा है। विवेक उचित पारिवारिक एवं सामाजिक शिक्षा का परिणाम है। विवेक उचित अनुचित समझने की शक्ति है। शिक्षा की कमी से जितना नुकसान हो सकता है उससे कई गुना अधिक हानि विवेक कम होने या न होने से हो सकता है। अंग्रेजी की एक बहुत सुंदर कहावत कहती है – विवेक वीरता का श्रेष्ठ भाग है। आज का युवा बहादुर तो हो जाता रहा है परन्तु विवेक खोता जा रहा है। महिलाओं पर यह कहावत अधिक सटीक है। महिलाओं की सबसे महत्वपूर्ण पूंजी उसकी अस्मिता मानी जाती है। किन्तु वर्तमान समाज में जो हो रहा है उसे सभी जागरूक नागरिक समझते हैं। इस समस्या का विश्लेषण करने और समाधान ढूंढने की आवश्यकता है।
प्रेम-दया और करूणा की प्रतिमूर्ति मानी जाने वाली महिला को क्या हो गया है। समाज में जो निर्दय और जहरीली घटनाएं हो रही है उसका समाधान निकालना सरल नहीं है। माता-पिता भी इसका समाधान नहीं ढूंढ पा रहे हैं। उचित परवरिश नहीं होने से भी विकट समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। माता-पिता और बच्चों के मध्य सहज संवाद की कमी भी दिखाई देती है। परिवार का वातावरण ऐसा सहज होना चाहिए कि बच्चे अपने मन की बात सहजता से बता सकें। बच्चों में उचित अनुचित का विवेक उत्पन्न करना माता – पिता का कर्तव्य है। यद्यपि देखने में यह आ रहा है कि संतान माता-पिता की सलाह और शिक्षा को मानने को तैयार नहीं है। जो सामाजिक विष सोशल मीडिया फैला रहा है उसका कोई उपचार दिखाई नहीं देता। युवा विवेक खोता जा रहा है। सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता भी आज की युवा पीढ़ी नहीं करती। अधिकतर अपना सामाजिक और पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने को तैयार नहीं हैं। वे यह चिंता नहीं करते कि उनके किसी काम से माता-पिता और समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जिस सरलता से सोनम ने अपने पति को मार दिया वह कंपकंपा देती है। सभी रिश्तों का अवमूल्यन और विघटन हो रहा है। यह विघटन आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत घातक है। मन में सुख और आनंद नहीं तो सब निरर्थक। हमारी शिक्षा प्रणाली दूषित है। बच्चों को केवल पैसा कमाने की शिक्षा दी जाती है। उन्हें माता-पिता यह नहीं समझाते कि सुख सरल और सौम्य जीवन व्यतित करने में हैं। धन से सुख नहीं खरीदा जा सकता। मां और पत्नी घर की आधार होती हैं। वे चाहे तो जीवन की विषमताओं का समाधान सरलता से निकाल सकती हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें समझ और उदारता से परिवार को चलाना पड़ेगा। परन्तु वर्तमान में सबकुछ उल्टा हो रहा है। बहु आते ही सास-ससुर को अनावश्यक बोझ समझती है। वह चिंता भी नहीं करती कि उसके व्यवहार से पति के मन को कितना कष्ट होता होगा। शारीरिक सुख दे दिया तो कर्तव्य का निर्वाह हो गया यह भ्रम है। यह समझ नहीं है कि सुख मन की शांति से उत्पन्न होता है। उदारता और प्रेम की प्रतिमूर्ति महिला को अब क्या हो गया है। इसका उत्तर ढूंढना होगा अन्यथा जीवन में विषमता बढ़ती ही जाएगी।