राग दरबारी प्रो.डी.के.शर्मा
हमने कभी सोचा नहीं की राग दरबारी का अर्थ क्या है, किन्तु पिछले एक वर्ष में देश में घटित घटनाओं ने इस पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। पुराने जमाने में राजा, महाराजाओं, जागीरदार आदि को दरबार कहते थे। दरबार की एक विशेष आदत थी कि जो कह दिया सो कर दिया, फिर बदलना नहीं। प्राण जाए पर वचन न जाई। इसमें उचित अनुचित के लिए कोई गुंजाईश नहीं थी। मुंह से निकला शब्द प्रतिष्ठा बन जाती थी। ऐसा ही पिछले दो साल में हमारे देश में भी हुआ है। मोदी दरबार ने ही यह किया है। नए प्रकरण से ही प्रारंभ करते हैं – नीट पेपर लीक
नीट पेपर लीक हुआ इसमें कोई शक नहीं। सभी न्यूज चैनल प्रमाण सहित दिखा रहे हैं कि पेपर लीक हुआ और परीक्षा केन्द्रों पर भी धांधली हुई, कई व्यक्ति गिरफ्तार भी हुए, किन्तु मोदी के शिक्षा मंत्री है कि मानते ही नहीं। प्रमाण लाख हो परन्तु दरबार ने जो कह दिया सो कह दिया। नकल नहीं हुई तो नहीं हुई। अपनी बात पर अड़े रहना ही राग दरबारी है। बच्चे तो दूसरे के मर रहे हैं। लाखों बच्चे परेशान हो रहे हैं परंतु दरबार को इससे क्या। इससे अधिक अड़ियल दरबार और क्या हो सकते हैं? मोदी तो खुद बड़े दरबार हो गए हैं। वे अपने ही मन की बात करते हैं, नागरिकों के मन की नहीं सुनते। बड़े दरबार जो हैं। उनके दरबारी भी उनकी नकल करते हैं।
मोदी दरबार कई अवसरों पर गुमसुम बैठे रहते हैं। बड़े और महत्वपूर्ण समस्याओं पर मुंह नहीं खोलते। आम नागरिकों के कष्ट असुविधा से उनको कुछ लेना देना नहीं। समस्या के तुरन्त निदान में मोदी सरकार पूरी तरह असफल रही है। किसान आंदोलन को ही लें। साल भर तक यूपी से लेकर पंजाब तक बंद रहा। सड़क पर घर बन गए, पूरी-पूरी बस्ती बनाकर किसान ऐश करते रहे। लोगों का एक गांव से दूसरे गांव जाना भी कठिन हो गया था। अवसरवादी चालाक औछी राजनीति करने वालों ने भी अवसर को खुब भुनाया; किन्तु मोदी दरबार को कुछ फर्क नहीं पड़ा। सालभर तक लाखों लोगों के परेशान होने के बाद कृषि कानून वापस लिया। यह महीने- दो महीने में भी हो सकता था। किन्तु दरबार ऐसा कैसे कर सकते हैं। वो दरबार ही क्या जो किसी की बात माने। सत्ता का अहम किसे नहीं होता। सत्ता पचाना आसान नहीं होता। सत्ता पाई कोऊ मद नाही?
मणिपुर को ही ले। लंबे समय से मणिपुर जल रहा है। लोग मारे जा रहे हैं। महिलाएं निर्वस्त्र कर घुमाई जा रही है, वहां का आम जीवन हिंसा की आग में जल रहा है, परन्तु मोदी दरबार ने उफ नहीं किया। समस्या का हल करने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किया। वहां के वो लोग जो हिंसा नहीं चाहते वे कैसे रह रहे होंगे इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता, दया नहीं आती। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। परन्तु दरबार को इससे क्या? मणिपुर पर मुंह भी नहीं खोलेंगे। मोदी दरबार की एक आदत पर आप ध्यान दीजिए- आदत नहीं सोची समझी चाल है। पत्रकारों से कभी बात नहीं करते; केवल न्यूज चैनल पर प्रायोजित साक्षात्कार देते हैं। उदारता का आवरण परन्तु मन बहुत अनुदार।
कर्मचारियों की पेंशन के प्रकरण पर भी मोदी दरबार मुंह फुलाएं बैठे हैं। अटल के अमानवीय निर्णय को पलटने के लिए मोदी दरबार तैयार नहीं। 10 वर्ष यूपीए सरकार रही परन्तु उसने भी इस निर्णय को नहीं पलटा। आज चुनाव में वोट पाने के लिए राहुल दरबार नारा देते हैं कि जीते तो पुरानी पेंशन लागू कर देंगे। सत्ता में थे तब क्यों नहीं किया? एमएलए, एमपी दो-दो, चार-चार पेंशन लेते हैं। दूसरी सुविधाएं अलग। वो बंद क्यों नहीं की जाती। पेंशन नहीं मिलेगी तो बुढ़ापे में जीवन कैसे चलाएंगे। वर्तमान में युवाओं को रोजगार मिलने में बहुत कठिनाई होती है। वे स्वयं का खर्चा भी नहीं उठा सकते, मां-बाप का क्या उठाएंगे। परन्तु मोदी दरबार को इन मानवीय संवेदनाओं से कुछ लेना देना नहीं। दरबार जो हैं, किसी की बात मान ली, किसी पर दया कर दी, तो दरबार ही क्या। 80 करोड़ लोगों को वोट के लिए मुफ्त राशन दे रहे हैं। उनमें से अधिकतर मोदी दरबार को वोट नहीं देते। मुफ्त राशन व्यवस्था देश के लिए अभिशाप है। इससे लोग आलसी हो रहे हैं। गांव में लोग ओटले पर पड़े रहते हैं, परन्तु काम करने नहीं जाते।
पुनः, भगवान सभी दरबारों को सद्बुद्धि प्रदान करें।