भ्रष्टाचार जनजीवन का अभिन्न अंग हो गया है। दुर्भाग्य है कि हमने भ्रष्टाचार को सहजता से स्वीकार कर लिया है । आए दिन विभिन्न क्षैत्रों में भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाश में आती है । हम उन्हें सहजता से पढ़ कर भुल जाते है। पेपर लीक होना भी हमारे लिए प्रतिवर्ष होने वाली एक घटना मात्र है जैसे यह कोई त्यौहार हो ? इस तरह भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही इंजीनियरिंग और मेडिकल की महत्वपूर्ण संस्थाओं में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय परिक्षाओं का आयोजन किया जाने लगा । फिर भी आए दिन भ्रष्टाचार की खबरें आती रहती है । मध्यप्रदेश में तो बहुत बड़ा मेडिकल घोटाला पहले ही हो चुका है। पेपर लीक करना या करवाना आम बात है। इसके लिए लाखों रूपए खर्च किए जाते है। इसे रोकने के लिए नीट परीक्षा मेडिकल प्रवेश के लिए आयोजित की जाने लगी। परन्तु भ्रष्टाचार में माहिर लोग इसे भी भ्रष्ट करने में नहीं चुके । एक सप्ताह पूर्व हुई नीट परीक्षा में पेपर लीक करवाया गया । एक जगह साल्व नहीं हुआ तो दूसरी जगह पहुंचा दिया गया। इलेक्ट्रानिक साधन का बहुत अच्छा उपयोग हुआ। राजस्थान पुलिस ने इस इस मामले में जांच शुरू की और कुछ गिरफ्तारी भी हुई, किन्तु दूसरे ही दिन नीट आयोजित करने वाली संस्था एनटीए के डीजी ने फैसला दे दिया कि पेपर लीक नहीं हुआ है । उन्होने पेपर लीक होने की बहुत सरल परिभाषा बता दी। कहां कि पेपर एक ही विद्यार्थी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया गया इसलिए यह लीक नहीं है । उनके अनुसार एक परीक्षार्थी के लिए इलेक्ट्रानिक साधन से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना लीक नहीं माना जा सकता है । यह परिभाषा किसी भी स्थिति में स्वीकार करने योग्य नहीं है । सभी शिक्षित व्यक्ति, जिन्होंने कोई भी परीक्षा दी है, वे जानते है कि प्रश्न पत्र एक निश्चित समय पूर्व परिक्षा कक्ष से बाहर नहीं जा सकता। परीक्षार्थी भी कक्ष के बाहर निश्चित समय से पूर्व नहीं जा सकता। फिर डीजी एनटीए का यह तर्क समझ से परे है। राजस्थान पुलिस जांच कर रही है उसकी जांच पूरी होने के पहले ही डीजी एनटीए (नीट आयोजित करने वाली संस्था) ने अपना फैसलासुना दिया कि यह लीक नहीं है। यह सरासर अनुचित है और परिक्षा के मान्य नियमों के विरूद्ध है। यदि हम डीजी साहब की इस सरल परिभाषा को स्वीकार करते है तो प्रत्येक विद्यार्थी को पेपर बाहर भेज कर उसके उत्तर इलेक्ट्रानिक साधन द्वारा प्राप्त करने की अनुमति दी जा सकती है । यह गंभीर चिंतन का विषय है ।
भारत के कानून में बहुत परिवर्तन की आवश्यकता है। अधिकतर कानून अंग्रेजों के जमाने के बने हुए है । वे अपराधियों को उचित सजा नहीं देते और बच निकलने के बहुत सारे रास्ते में उनमें है। यद्यपि सायबर क्राईम पर नया कानून हमारे यहां बना है परन्तु हमारा यह मानना है कि प्रत्येक अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान होना चाहिए। निर्णय तेज गति से होना चाहिए और सख्त सजा दी जाना चाहिए। परिक्षा में भ्रष्टाचार बहुत ही गंभीर अपराध है। यह देश की शिक्षा पद्धति का विनाश करता है। योग्य विद्यार्थियों के साथ अन्याय करता है। वैसे भी हमारी शिक्षा व्यवस्था का स्तर कई कारणों से बहुत ही गिरा हुआ है ऐसे में परीक्षा में भ्रष्टाचार क्षमा करने योग्य अपराध नहीं है ।
इलेक्ट्रानिक साधनों ने भ्रष्टाचार को बहुत सरल बना दिया है। अत: इसे रोकने के लिए विशेष सख्त कानून बनाकर कठोर सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। हमारी देश के जनमानस को भी जागरूक होना चाहिए। हम लोग किसी भी अक्षम्य अपराध के प्रति अपना विरोध दर्ज नहीं कराते। अनुचित साधनों से प्राप्त सफलता को भी समाज स्वीकार कर लेता है । लाखों रूपयों का लेनदेन होता है। इतना पैसा कहां से आता है इसकी जांच भी नहीं की जाती है । इसलिए यह आवश्यक है कि भ्रष्टाचार से प्राप्त सफलता का तिरस्कार किया जाना चाहिए। ईमानदार विद्यार्थियों या व्यक्तियो का नुकसान ना हो ऐसी व्यवस्था कानून में की जाना चाहिए।
वर्तमान प्रकरण में उचित जांच की जाकर पता लगाया जाना चाहिए कि क्याबहुत विस्तृत स्तर पर पेपर लीक हुआ है । उचित तो यह होगा कि न्याय पालिका स्वयं संज्ञान लेकर इस प्रकरण की जांच उनके स्वंय के आदेशानुसार करवाए और अपराधियों को सजा दें ।
भारत सरकार को भी इस विषय पर गंभीरता से विचार कर ऐसी व्यवस्था लागू करें कि भ्रष्टाचार के द्वारा अनुचित लाभ नहीं लिया जा सकें और योग्य विद्यार्थियों को ही प्रवेश मिलें ।
प्रो. डी.के. शर्मा
रतलाम मो. ७९९९४९९९८०