सुधरने की इच्छा रखने वालों पर प्रेम की वर्षा होना चाहिए, अविश्वास की नहीं
इंदौर, । बिगड़ा हुआ व्यक्ति यदि सुधरने के लिए आगे आता है तो उस पर प्रेम की वर्षा होना चाहिए, अविश्वास की नहीं। समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ऐसे अवसरों पर तानाकशी करने से बाज नहीं आते और कहते हैं कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अपनी कमाई से दान देने वालों के बारे में भी इसी तरह के ताने सुनने को मिलते हैं। इस प्रवृत्ति से स्वयं को सुधारने की चाह रखने वाले या सदकर्मों के लिए दान देने वालों के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं। कोशिश यही करें कि जब तक दीपक जला सकते हैं जलाते चलें। एक दिन ऐसा भी आएगा जब बिना जलाए भी दीपक की रोशनी लौ बनकर सबको आलोकित करती रहेगी। दूसरों को उठाते-उठाते एक दिन हम स्वयं भी ऊपर उठ सकते है।
ये दिव्य विचार हैं उपाध्यायश्री प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. के, जो उन्होंने आज एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग पर चल रहे चातुर्मास की धर्मसभा में व्यक्त किए। आज भी धर्मसभा में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बड़ी संख्या में साधकों ने भाग लिया। इस अवसर पर मासखमण 32 उपवास की तपस्या करने वाले श्रावक श्री जयेश भाई मेहता का श्री वर्धमान श्वेतांबर स्थानकवासी जैन श्रावक संघ ट्रस्ट एवं चातुर्मास आयोजन समिति की ओर से बहुमान एवं अभिनंदन उपाध्यायश्री की निश्रा में किया गया। महामंत्री रमेश भंडारी, सतीशचंद्र तांतेड, प्रकाश भटेवरा, जिनेश्वर जैन, दीपक जैन टीनू, संतोष जैन मामा, विमल तांतेड़, अनिल भंडारी, किशोर पोरवाल, संजय नाहर, महेंद्र झेलावत, अभय झेलावत, कल्पना पटवा, शांता भामावत आदि ने मासखमण की तपस्या पूर्ण करने वाले जयेशभाई मेहता का अभिनन्दन पत्र के साथ सम्मान किया। श्री नरेंद राठौड़ के 25 उपवास एव सुनील तांतेड़ के 15 उपवास की तपस्या गतिमान है।अभिनंदन पत्र का वाचन सुनीता छजलानी ने किया और संचालन किया जिनेश्वर जैन ने।
उपाध्यायश्री ने अपने आशीर्वचन में कहा कि हम किसी बिगड़े हुए के सुधर जाने पर भरोसा ही नहीं करते। नंदीसेन का उदाहरण देते हुए उपाध्यायश्री ने कहा कि वैश्या के आंगन में पहंुचने वाले वासना के पुजारी थे, धर्म के नहीं। उनको भोग में रहते हुए पुण्य के रास्ते पर लाना बड़ी चुनौती का काम था लेकिन दूसरों को आगे बढ़ाते-बढ़ाते, ऊपर चढ़ाते चढ़ाते और उठाते-उठाते एक दिन स्वयं को भी लाभ अवश्य मिल जाएगा। अतीत से मुक्ति पाकर ही नए रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है। अपनी गलतियों को सहज रूप से स्वीकार करना, गुरूजनों या वरिष्ठों के सामने अपने अपराधबोध को व्यक्त करना और संघ की साक्षी में पाप के प्रति समर्थन का भाव खत्म होना – ये तीन लक्षण हैं जो व्यक्ति को पाप से मुक्ति की ओर ले जाते हैं। जब ये तीनों बातें अमल में आएंगीं तो पाप वापस आपके पास मुड़कर कभी नहीं आएगा। हम सबके घरों मंे भी इस तरह की व्यवस्था होना चाहिए कि हम अपने अपराध या पापबोध का स्वीकारण कर सकें। झूठ बोलना पाप है लेकिन उस झूठ पर गर्व और गौरव करना महापाप है। हमारी प्राचीन संघीय व्यवस्था में ऐसे ही प्रावधान थे। समय रहते हमें पुण्य के रास्ते पर जितना अधिक संभव हो, चलने का प्रयास जरूर कर लेना चाहिए, अन्यथा कल डॉक्टर तीन समय दवा लेने का कहेंगे तो कुछ नहीं कर पाएंगे।