अंतर्मन के अंधकार को दूर करते हैं महावीर
– उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. के आशीर्वचन
इंदौर । कितनी ही आग बरसाएं और वर्षा कर लें, आकाश का कुछ नहीं बिगड़ता। आकाश को कोई बांध नहीं सकता। आत्मा भी न जलती है, न भीगती है और न ही मरती है। परमात्मा का धर्म भाषाओं में बंधा हुआ नहीं है। परमात्मा कभी सत्य से जुदा नहीं हो सकते। हमारे पास ज्ञान तो बहुत है लेकिन यदि श्रद्धा नहीं है तो ऐसा ज्ञान किसी काम का नहीं। हम यदि सत्य से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो महावीर की शासन पद्धति को समझना होगा। महावीर अंतर्मन के अंधकार को दूर करते हैं। भारतीय संस्कृति देव आधारित हैं, दानव आधारित नहीं, इसलिए अपने परिवार में भय नहीं, श्रद्धा का भाव पैदा करें।
ये प्रेरक विचार हैं उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि म.सा. के, जो उन्होंने आज सुबह एरोड्रम रोड स्थित महावीर बाग में चल रहे चातुर्मास महोत्सव की धर्मसभा मंे महावीर स्वामी की शासन गाथा सुनाते हुए व्यक्त किए। यह गाथा 90 दिनों तक चलेगी और इंदौर में पहली बार इसका आयोजन हो रहा है। प्रारंभ में प.पू. तीर्थेश ऋषि म.सा. एवं दक्षिण ज्योति महासती आदर्श ज्योति म.सा. ने भी अपने विचार रखे। इस दौरान चातुर्मास समिति की ओर से संयोजक अचल चौधरी, रमेश भंडारी, प्रकाश भटेवरा, संतोष जैन मामा, जिनेश्वर जैन, अशोक मंडलिक आदि ने सभी संतों की अगवानी की।
प.पू. प्रवीण ऋषि म.सा. ने कहा कि महावीर का कर्म सिद्धांत इसलिए है कि हमारे कर्मों का क्षय करने के लिए जो पुरूषार्थ किया जाए, वही धर्म है। सुख और दुख देने की जिम्मेदारी ईश्वर की नहीं है। हमारा भविष्य देव नहीं, हम स्वयं लिखते हैं। हम ही लेखक, हम ही वाचक, हम ही पाठक और हम ही सुधार करने वाले हैं। महावीर का शासन हमारे कर्मों को सुधार करने की ओर प्रवृत्त करता है। महावीर का सबसे बड़ा उद्यम पोल खोलने का है। हम दूसरों के पास जाकर पोल का ढोल बजाते हैं लेकिन महावीर उसी के सामने उसी की पोल खोलते है। एक तरह से यह उसके अंतर्मन का अंधकार दूर करने का काम है। महावीर जनता की भाषा में बोलते हैं। जो जनता की भाषा बोलता है, वही जनार्दन होता है। हम सत्य को खोजते हैं लेकिन स्वीकार नहीं करते। सत्य को स्वीकार करना सबसे कठिन काम है। सत्य की खोज हम दूसरों मंे करते हैं जबकि यह तो हमें स्वयं अपने अंदर करना चाहिए। दूसरों के घर में धन की खोज करने वाले को चोर कहते हैं और अपने घर में सत्य की खोज करने वाले को श्रीमंत कहा जाता है। हम धनवान हो जाएं, ज्ञानी बन जाएं, लेकिन यदि श्रद्धा नहीं होगी तो शीष झुकेगा नहीं। धन मिले या न मिले, किसी की श्रद्धा का पात्र बने बिना मरना ठीक नहीं है। हमारी संस्कृति देव आधारित है। जिसके पास जाकर भय से मुक्ति होती है वही देव होता है। अपने घर वालों को हमसे डर नहीं लगना चाहिए। हम लोग घर वालों को ही डराते हैं। कबूतर को दाना और गाय को चारा देने वाले हम लोग यदि घर के सदस्यों को भी अभयदान दे सकें और उन्हें भयमुक्त बनाएं तो यह भी बड़ा काम होगा। संकल्प करें कि घर वालों को डराकर नहीं, श्रद्धा से जोड़कर रखेंगे।
नवकार महामंत्र की तैयारियां – रविवार 1 अगस्त को वैश्विक स्तर पर हो रहे नवकार महामंत्र के 1.21 करोड़ जाप के सामूहिक अनुष्ठान की व्यापक तैयारियां जारी हैं।