-प्रो. देवेन्द्र कुमार शर्मा, रतलाम
राम मंदिर पर ध्वज स्थापित होने के साथ ही राम मंदिर सम्पूर्णता को प्राप्त हो गया, किन्तु राम मंदिर के निर्माण के प्रति विरोध के स्वर थम नहीं रहे। राम मंदिर पर ध्वजारोहण के साथ ही विरोध के स्वर पुन: मुखर हो गए। कई मुसलमान नेताओं ने स्पष्ट रूप से राम मंदिर के निर्माण का विरोध किया। वे अभी भी मानते है कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण मुसलमानों के साथ अन्याय है। यद्यपि यह सर्वविदित है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद ही राम मंदिर का निर्माण संभव हो सका है। धार्मिक घृणा पर आधारित पाकिस्तान ने भी राम मंदिर पर ध्वजारोहण का विरोध किया है और संयुक्त राष्ट्र में शिकायत की है। वैसे भारत में भी राजनीति करने वाले कुछ हिंदू व्यक्ति हैं जिन्हें राम मंदिर का निर्माण सुहाता नहीं है, कारण – उनकी राजनीति मुसलमानों के वोट पर ही आधारित है। अल्पसंख्यक समर्थन से ही उनकी राजनीति जीवित है।
दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक व सांस्कृतिक विचारधारा को नकारा गया है। सबको याद है कि सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के कार्यक्रम में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जाने से जवाहरलाल नेहरु ने मना किया था। शायद भारत ही दुनिया का एकमात्र देश है जहां बहुसंख्यक मान्यताओं को नकारा जाता रहा है। अंग्रेज सरकार की नीति ही विभाजन करो और राज करो रही है, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही बहुसंख्यक जनमानस की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं को नकारे जाने का औचित्य समझ से परे है। राम मंदिर का निर्माण सदियों से चले आ रहे अन्याय का प्रतिकार है। इसके निर्माण से भारत के मूल निवासी बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को संतुष्टि प्राप्त हुई है। राम मंदिर निर्माण ने हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले रामभक्त हिंदुओं को आत्मिक, आध्यात्मिक शांति और संतुष्टि प्रदान की है। किंतु कुछ मुसलमान नेता इसके विरोध में उठ खडे हुए है, उनका अस्तित्व ही हिंदू विरोध पर टिका हुआ है।
हिंदू धर्म बहुत प्राचीन है। यह एक धर्म ही नहीं बहुत विशाल और सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत है। राम मंदिर इसी सांस्कृतिक सम्पन्नता का प्रतीक है। राम की पूजा- आराधना भारत के साथ ही साथ दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों में सदियों तक की जाती रही है। इंडोनेशिया में तो अभी भी प्रतिदिन पूरे वर्ष रामायण कथा का मंचन नियमित रूप से होता है। इसमें सभी कलाकार मुसलमान ही होते है। इंडोनेशिया के निवासी मानते है कि यद्यपि परिस्थितयों से उनका धर्म बदल गया किंतु राम उनके पूर्वज और आराध्य हैं। वे उन्हें नहीं भूल सकते। वे उनकी राम विरासत पर गर्व करते हैं। दुर्भाग्य से भारत में राम मंदिर के औचित्य पर सवाल उठाए जाते हैं। यह बहुत ही अनुचित है। राम मंदिर के औचित्य पर सवाल उठाने वाले कुछ अल्पसंख्यक व्यक्तियों को यह खेल बंद कर देना चाहिए। दुर्भाग्य से भारत ही एकमात्र देश है जहां अल्पसंख्यक अपने अधिकारों को बहुसंख्यक नागरिकों से अधिक महत्वपूर्ण मानते है। इसमें उन्हें कुछ राजनीति के शातिर खिलाडियों का सहयोग भी प्राप्त होता है। यद्यपि गांधी राम-राम करते थे किन्तु उनके प्रिय चेले जवाहरलाल हिंदू धर्म विरोधी थे। सौभाग्य से अब हिंदू धर्म की अस्मिता के पुर्नजागरण का समय आया है, हिंदुओं को इसका सही सदउपयोग कर हिंदू संस्कृति को व्यवस्थित रूप से देश में स्थापित करना चाहिए।
संविधान की दृष्टि से विचार करे तो भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है।यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के बहुमत का धर्म हिंदू धर्म है। प्रजातंत्र का आधार बहुमत ही होता है। इसलिए बहुमत के धर्म की अवहेलना व अवमानना नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से भारत में यह होता आ रहा है। जवाहरलाल नेहरू हिंदू धर्म विरोधी थे, कहते है कि उन्होंने तत्कालीन गर्वनर जनरल माउंट बेटन से कहा था कि वे मुसलमान है। वैसे देश में इसी तथ्य को मानते है। दुर्भाग्य से भारत में राजनीति करने वाले अधिकतर हिंदू ही रहे हैं, परंतु उन्होंने अपने धर्म की चिंता नहीं की, इसी कारण हिंदू धर्म की अवमानना होती रही। यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदू सबसे अधिक उदार और सहिष्णु होते हैं, वे कभी भी किसी अन्य धर्म का विरोध नहीं करते। वे सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते है किंतु उनकी सदाशयता का हमेशा दुरूपयोग किया गया।
सर्वविदित है कि मंदिरों के पुर्ननिर्माण से आर्थिक विकास भी बहुत हुआ है। इसका लाभ सभी वर्ग-धर्म के लोगों को हुआ है, इसलिए राम मंदिर के निर्माण का विरोध बहुत अनुचित है। यह भी याद रखना चाहिए कि विदेशी आक्रमणकारियों और आक्रांताओं के द्वारा किए गए अत्याचार और अन्याय के प्रतीक को नष्ट करने का अधिकार प्रत्येक देश को होता है। यह कहने का अधिकार देश के बहुमत को होता है। यह भी याद रखना चाहिए कि भारत का हिंदू बहुमत बहुत उदार है। हिंदू सभी धर्म को आदर के साथ देखते हैं, इसलिए अल्पसंख्यकों को भी हिंदू बहुमत के सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।


