भारतीय समाज को आज भी हनुमान जैसे निश्छल और निष्काम भक्तों की जरूरत
इंदौर, । हनुमान की भक्ति में न तो पाखंड है और न ही प्रदर्शन। अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के प्रति उनकी सेवा भावना इतनी अखंड और प्रबल है कि उन्हें अपने लक्ष्य के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं। लंका में सीताजी को खोजने के लिए पहुंचे हनुमानजी जब विभीषण के घर के बाहर पहुंचते हैं तो दरवाजे पर राम और आंगन में तुलसी का मंडप देखकर उन्हें पता चल जाता है कि यह किसी राम भक्त का ही घर हो सकता है। हनुमानजी भक्ति के पर्याय हैं। भारतीय समाज को आज भी हनुमान जैसे निश्छल और निष्काम भक्तों की जरूरत है।
झांसी से आई मानस कोकिला रश्मिदेवी शास्त्री ने कैट रोड, हवा बंगला स्थित हरिधाम आश्रम पर पीठाधीश्वर महंत शुकदेवदास महाराज के सानिध्य में चल रही हनुमत कथा के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ ने मुकेश बृजवासी, सुधीर अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। बड़ी संख्या में भक्तों ने आरती में भाग लिया।
मानस कोकिला रश्मिदेवी शास्त्री ने कहा कि भगवान ने स्वयं कहा है कि मेरा भक्त और प्रेमी किसी भी जाति या संप्रदाय का हो, मैं उसके घर जाने में संकोच नहीं करता। यही बात गीता में भी भगवान कृष्ण ने कही है। भगवान भक्त के जात-पात और धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते। यह सारा भेदभाव हमने कर रखा है। जो भगवान के स्वभाव से परिचित हैं, उन्हें पता है कि भगवान कभी किसी का बुरा नहीं करते। उनके शब्दकोष में किसी का बुरा होता ही नहीं। जीवात्मा तभी दुखी होता है और भगवान को भला-बुरा कहता है जब वह भगवान के स्वभाव से वाकीफ नहीं होता। एक बार यदि भगवान का स्वभाव हमें पता चल जाए तो फिर भक्ति और भजन के सिवाय और कुछ अच्छा लगेगा ही नहीं। हनुमानजी के रोम-रोम में राम बसे हुए हैं। उन्हें सिवाय प्रभु के आदेश के कुछ और नजर आता ही नहीं। भक्ति हो तो ऐसी होना चाहिए। सुंदरकांड के माध्यम से हनुमानजी ने अपने भक्तों के लिए बहुत से सदगुणों का रोपण किया है। श्रद्धापूर्वक किया गया प्रत्येक कर्म भक्ति का ही सूचक होता है।
विनोद गोयल,नगर प्रतिनिधि