म्हारा गांव को रंगीलो गुड्डू।

म्हारा गांव को रंगीलो गुड्डू।

फाग उत्सव होली महोत्सव,
त्योहारी आलेख-:
धर्मेंद्र श्रीवास्तव,
जैसे ही फाग फाल्गुन का माह आरंभ होता है, सेमल और पलाश के पुष्प गिरने लगते हैं, वातावरण में एक मनमोहक सुगंध फैल जाती है और सुगंधित वातावरण से मन चंचल होकर हिलोरे लेने लगता है पिछले 4 दशकों से सरदारपुर नगर में होलीका महोत्सव रंगो का कार्यक्रम देखते ही बनता है,
राग और द्वेष से दूर समस्त महिला पुरुष युवा बुजुर्ग मित्रजन हर्षोल्लास में रंग जाते हैं और यह रंगत आती है, (गुड्डू की नृत्य मुद्रा) की संगत से ऐसा प्रतीत होता है मानो यह त्यौहार केवल और केवल गुड्डू के लिए ही बना है,
यदि गुड्डू ना हो तो यह त्यौहार फीका है
विचित्र वेशभूषा में सजा गुड्डू ऐसा प्रतीत होता है,
मानो होली पर आधारित बनने वाले किसी चलचित्र का कलाकार हो,
वह नृत्य की मुद्राएं, मानो स्वयं नटराज रंगीले अंदाज में सरदारपुर नगर में उतर गए हो,
नव रंगों के रसों से भरा यह त्यौहार भौर से लेकर दोपहर तक परवान चढ़ता है,
और संध्या बेला आने तक नगर के ईस्ट इंडिया कंपनी के समय के कंपनी बाग की ओर रुख करता है,
जहां वनस्थली का सुंदर और मनोहारी दृश्य देखते ही बनता है,
माही के तट पर बसा यह निर्जन स्थान प्रकृति की गोद का सुरम्य अनुभव करवाता है,
गुड्डू अपने हाथों से भोजन बनाने के लिए आतुर हो जाता है,
जितने भी लोग रंगों के इस त्यौहार में सम्मिलित हुए हैं, उन सभी को हाथ जोड़कर भोजन के लिए आमंत्रित करता है,
कभी मांदल की थाप की नृत्य मुद्रा,
कभी फिल्मी गानों पर नृत्य मुद्रा,
यह सारे अंदाज देखते ही बनते हैं,
और वर्ष भर की स्मृति बन जाते हैं,
अगले दृश्य में सभी बगीचे में पहुंचते हैं,
हस्त निर्मित चूल्हा तैयार किया जाता है लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है उस समय भी गुड्डू नाचते गाते सारे कार्यों को करता है, होली महोत्सव को मनाने वाले वह लोग जिन्होंने घर पर कभी इधर की वस्तु उधर नहीं रखी,
वह गुड्डू के साथ मदमस्त होकर,
कोई आटे के पानिये बनाता है,
तो कोई सलाद काटने बैठ जाता है,
तो कोई प्रेम पूर्वक लहसुन को छिलने लग जाता है, तब गुड्डू नृत्य मुद्रा करते हुए इन लोगों के बीच पहुंचकर कहता है,
जल्दी कीजिए अब मुझे दाल बघारने की सवारी आने वाली है,
मुस्कुराते ठिठलाते हुए शुद्ध मूंगफली के तेल से निर्मित विभिन्न प्रकार के मसाले को संग्रहित कर मसखरी दाल बनाने को तैयार हो जाता है जैसे ही तेल गर्म होता है नृत्य और विभिन्न मुख्य मुद्राओं के माध्यम से कभी जीरे तो कभी राई कभी सरसों का झोक लगाने लग जाता है प्रेम और नृत्य मुद्राओं से रची बसी यह दाल इतनी स्वादिष्ट बनती है, कि भोजन करते समय सभी दांतों तले उंगलियां चबाने लग जाते हैं,
स्वादिष्ट इतनी कि वर्ष भर यह स्वाद इस क्षण के आने का इंतजार करता है, भोजन तैयार होने के पश्चात प्रेम पूर्वक गुड्डू सभी को भोजन करवाता है उसी समय गुड्डू की मुख मुद्रा देखते ही बनती है, भाव विभोर होकर दुलारते हुए जैसे की मां अपने बच्चों को भोजन करवाती है,
गुड्डू सभी को भोजन करवाता है,
“ऐसा है हमारा रंगीला गुड्डू”
और ऐसी है उसकी मसखरी दाल।
कुछ ऐसी है सरदारपुर नगर की होली और रंग पंचमी जहां जीवन के नौ रंगो का समावेश है।