धर्म का काम अधर्म के माध्यम से और सच का प्रचार झूठ के रास्ते से नहीं होना चाहिए – आचार्य सुधांशु

विश्व जागृति मिशन के इंदौर मंडल की मेजबानी में मना गुरू पूर्णिमा महोत्सव – सभी समाजों की ओर से नागरिक अभिनंदन

इंदौर । दुनिया का नियम है, पतन के रास्ते पर चलना आसान होता है, लेकिन उन्नति के मार्ग पर चलना कठिन। घर-परिवार में धर्म और भक्ति का माहौल बनाकर रखेंगे तो हमारी नई पीढ़ी भी संस्कारित होगी। हमने धार्मिक संदेशों को भी मनोरंजन का साधन बना लिया है। हम कितने ही उपदेश और संदेश दें, जब तक अंदर से पत्थर नहीं हटाएंगे, बाहर कुछ सुधार नहीं हो पाएगा। धर्म का काम अधर्म के माध्यम से और सच का प्रचार झूठ के रास्ते से नहीं होना चाहिए। नकली करेंसी भी तभी चलती है, जब असली प्रचलन में हो। हमारे भावों और विचारों में दूसरों के प्रति शुभता और शुचिता का सोच होना चाहिए। हम आंखों से भला देखें, कानों से श्रेष्ठ सुने और शरीर के प्रत्येक अंग से ऐसा कुछ करें कि जिनसे भी मिले, वे प्रसन्न हो जाएं। जीवन के आनंद के मार्ग और मंजिल को भूलने वालों को सदगुरू ही अपना लक्ष्य याद दिलाते हैं। बहकते हुए कदमों को जो थाम सके, धर्म, संस्कृति और सेवा की ओर मोड़ सके – वही सच्चे गुरू हो सकते हैं। अंधियारे मन मंदिर में दीप जलाने का काम करते हैं सदगुरू।

          ये दिव्य विचार हैं प्रख्यात संत और विश्व जागृति मिशन के संस्थापक आचार्य सुधांशुजी महाराज के, जो उन्होंने माणिक बाग रोड स्थित गुरू अमरदास हाल पर मिशन के इंदौर मंडल के तत्वावधान में आयोजित गुरू पूर्णिमा के मुख्य महोत्सव में उपस्थित भक्तों के सैलाब को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर मिशन के इंदौर मंडल की ओर से आचार्य सुधांशुजी महाराज का नागरिक अभिनंदन भी किया गया। सांसद शंकर लालवानी, जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, विधायक मालिनी गौड़, जीतू पटवारी, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता ने भी आचार्यश्री का स्वागत कर उनके शुभाशीष प्राप्त किए। मिशन की ओर से राजेन्द्र अग्रवाल, कृष्णमुरारी शर्मा, दिलीप बड़ोले, विजय पांडे, किशोर गुप्ता, घनश्याम पटेल, राजीव पांडे, राजेश विजयवर्गीय, अनिल शर्मा बंटी एवं ओम सोलंकी ने गुरू पूर्णिमा के निमित्त आचार्यश्री को होल्कर रियासतकालीन साफा, गणेश प्रतिमा एवं दुपट्टा भेंटकर उनका पाद पूजन किया। शहर काजी डॉ. इशरत अली की ओर से उनके दो नुमाइंदो, सिख समाज प्रताप नगर एवं गुरू अमरदास हाल की प्रबंध समिति के सिख भाईयों, प्रजापत समाज, सेन समाज, सूर्यवंशी समाज सहित शहर के लगभग सभी समाजों के प्रतिनिधियों ने आचार्यश्री का स्वागत किया। महोत्सव के मुख्य यजमान ललित शर्मा दम्पति ने भी आचार्यश्री का सम्मान किया। चंडीगढ़, दिल्ली, उज्जैन, मंदसौर एवं आसपास के अन्य शहरों से आए श्रद्धालुओं ने भी सुधांशुजी महाराज की अगवानी की। विश्व जागृति मिशन के अ.भा. प्रधान देवराज कटारिया का भी सम्मान किया गया। गुरूवंदना स्वरूप आचार्य अनिल झा, डॉली शर्मा, के.एम. शर्मा एवं अन्य भक्तों ने मनोहारी भजन सुनाकर करीब तीन घंटे तक चली गुरू पूजा के दौरान माहौल को श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण बनाए रखा।

          आचार्यश्री ने कहा कि आज की इस बेला में चिंतन करें कि हम कहां थे और कहां तक पहुंच गए, हमें क्या होना था और हम क्या हो गए, हम आज ऐसे हैं तो क्यों है और जो हो सकते थे, वो क्यो नहीं हो सके।  हमें स्वयं के बारे में भी सोचना चाहिए। यह भी याद करें कि हमने पहली बार कब झूठ बोला था। भगवान से हमेशा प्रार्थना करते रहें कि यदि मैं कहीं गिर जाऊं तो मुझे फिर से उठने की ताकत जरूर देना। भगवान ने हमें इतना सुंदर शरीर देकर मनुष्य जन्म दिया है, लेकिन हम दुनिया की ओर ज्यादा देख रहे हैं। शरीर के जो दो-दो अंग हैं, कान, आंख, हाथ और पैर इनमें से एक से हम दुनिया को देखें और दूसरे से भगवान को, लेकिन हमारा ज्यादा ध्यान दुनिया की ओर ही बना रहता है। आज हमने गुरू मंत्र लिया है तो यह याद रखें कि हमारे अंधियारे मन मंदिर में दीप जलाने का काम सदगुरू ही करते हैँ। जीवन में कई बार भटकाव आते हैं और हम आनंद के मार्ग एवं मंजिल को भूलकर कहीं और भटक जाते हैं, तब सदगुरू ही हमें अपने लक्ष्य की याद दिलाते हैं। गुरू से जुड़कर रहेंगे तो जीवन में अनुशासन, संयम, ऊर्जा और आगे बढ़ने के रास्ते भी खुलते चले जाएंगे।

          आचार्यश्री ने एक मंत्र के माध्यम से सभी साधकों और शिष्यों के मंगल, आरोग्य, आर्थिक समृद्धि, सुख, शांति का आशीष देते हुए ध्यान साधना भी करवाई। उन्होंने शिष्यों का आव्हान किया कि आज से अपने जीवन में ऐसा बदलाव लाएं कि हम किसी की निंदा या चुगली नहीं करेंगे और अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों का पूरी निष्ठा के साथ पालन करेंगे। उज्जैन से आए ख्यात कवि अशोक भाटी ने आचार्यश्री पर आधारित कविता सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध बनाए रखा। इस दौरान तीन हजार से अधिक भक्तों ने कतारबद्ध होकर आचार्यश्री का पाद पूजन कर उनके शुभाशीष प्राप्त किए।