इंदौर, । सृष्टि का सबसे बड़ा कर्ताधर्ता परमात्मा है, लेकिन अहंकार के चलते हम स्वयं को ही कर्ता मान बैठे हैं। अहंकार की प्रधानता के कारण ही हम स्वयं को परमात्मा से भी श्रेष्ठ या ऊपर होने का भ्रम पाले हुए हैं। जीवन में प्रति क्षण सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि जिस तरह हम अपने जीवन की बागडोर परमात्मा के हाथों सौंपकर स्वयं को सुरक्षित मान लेते हैं, वैसे ही अपने अहंकार को भी परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। मानव में देवत्व का भाव जिस दिन आ जाएगा, उस दिन हमारी सभी विषमताएं भी खत्म हो जाएंगी। यह देवत्व स्थायी होना चाहिए।
राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या के न्यासी एवं महामंडलेश्वर युग पुरुष स्वामी परमानंद गिरि ने अखंड परम धाम सेवा समिति के तत्वावधान में पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर आयोजित सत्संग, ध्यान एवं योग शिविर में संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक बातें कही। सत्संग शुभारंभ के पूर्व सांसद शंकर लालवानी ने गुरूदेव से आशीर्वाद प्राप्त कर उनका इंदौर के नागरिकों की ओर से स्वागत किया। इस अवसर पर समाजसेवी राजीव अग्रवाल, हरीश राजानी, उदय जायसवाल, हरि अग्रवाल, भूषण अरोरा, तिलकराज ठक्कर, विनोद जुनेजा आदि ने गुरूदेव का स्वागत किया।
युगपुरुष ने कहा कि हम सबके अंतर्मन में देवत्व मौजूद है, लेकिन जिस तरह गर्म पानी थोड़ी देर में ठंडा हो जाता है, उसी तरह हमारा देवत्व भी कुछ समय के लिए जागृत होकर फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ता है। परमात्मा को जीवन में उतारना है तो देवत्व का भाव स्थायी होना चाहिए। यह तभी संभव है जब जितनी पवित्रता देवताओं में है, उतनी ही हमारे जीवन में भी आना चाहिए। यदि हम अपने अहंकार को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दें तो अहंकार भी समाप्त हो जाएगा। हालांकि यह एक-दो दिन में खत्म होने वाली समस्या नहीं है, इसके लिए समय लगता है। जिस दिन हमारा ‘मैं’ और ‘मेरा’ खत्म हो जाएंगे, उस दिन हमारी सभी समस्याएं भी खत्म हो जाएंगी। मानव में देवत्व आना एक बड़ी साधना है। भगवान के प्रति हमारा इतनी श्रद्धा होना चाहिए कि वे बुरा भी करें तो हम यह मान लें कि वे हमारा इससे भी ज्यादा भला करना चाहते हैं।