इंदौर,। विडंबना है कि आज हमारे परिवारों में प्रेम, सदभाव और आपसी विश्वास में निरंतर कमी आ रही है। हमारी नई पौध धर्म और संस्कृति के साथ धर्म ग्रंथों से भी दूर होती जा रही है। घर-घर में महाभारत चल रही है। इस हालात में धर्म ग्रंथ ही हमारे परिवारों को जोड़कर घर-परिवारों आनंद की पुनर्स्थापना कर सकते हैं। यदि वास्तव में हमें शक्तिशाली औऱ खुशहाल बनना है तो परमात्मा से जुड़ना जरूरी है। आध्यात्मिकता के प्रवेश के बाद ही समृद्धि और खुशहाली आएगी। जब तक मन निर्मल नहीं होगा, तब तक आध्यात्मिकता का प्रवेश संभव नहीं है। भागवत जैसे कालजयी धर्म ग्रंथ ही इस विषमता को दूर कर सकते है।
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने आज गीता भवन सत्संग सभागृह में शहर के 30 से अधिक धार्मिक, सामाजिक संगठनों की मेजबानी में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ के शुभारंभ सत्र में उक्त प्रेरक बातें कहीं। कथा शुभारंभ के पहले गीता भवन परिसर में रिमझिम फुहारों के बीच भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई। शोभायात्रा में साध्वी कृष्णानंद सहित अनेक साधु-संत भी शामिल थे। व्यासपीठ का पूजन आयोजन समिति की ओर से प्रेमचंद गोयल, किशोर गोयल, श्याम अग्रवाल, गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, वापी गुजरात से आए विजय भाई शास्त्री आदि ने किया।
महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने मधुराष्टकम भजन के साथ कथा का शुभारंभ करते हुए कहा कि यह संयोग ही है कि सावन माह में हमें गीता भवन जैसे तीर्थ स्थल पर भागवत ज्ञान यज्ञ के साथ सवा लाख रूद्राक्ष से निर्मित शिवलिंग के दर्शनों का सौभाग्य भी मिल रहा है। उन्होंने भागवत की महत्ता बताते हुए कहा कि जब एक भाई अपना मुकुट दूसरे के सिर पर लगाने लगे तो समझ लीजिए कि वहां रामायण शुरू हो गई है। आजकल ऐसे परिवार बहुत कम देखने-सुनने को मिलते हैं, जहां भाईयों के बीच प्रेम और सदभाव का वातावरण हो। इसी तरह जब एक भाई दूसरे के सिर पर रखा मुकुट छीनने का प्रयास करे तो समझ लीजिए कि वहां महाभारत शुरू हो गई है और जब संत और सज्जनों की शरणागति नजर आए तो समझ लीजिए कि वहां भागवत हो रही है। यह विडंबना है कि आजकल परिवारों में आपस में प्रेम और सदभाव में निरंतर कमी आ रही है। वर्तमान में समृद्धि और खुशहाली का रास्ता आध्यात्म के पथ से होकर मिल सकता है। अध्यात्म वहीं प्रवेश करेगा, जहां मन की निर्मलता और पवित्रता होगी। परमात्मा से जुड़ने के लिए भी अध्यात्म का पथ जरूरी है। हर कोई खुशहाल तो होना चाहता है, लेकिन यह खुशहाली केवल आराधना, पूजा या प्रार्थना करने से ही नहीं मिलेगी। इसके लिए हमें धर्म गंर्थों का आश्रय और भागवत जैसे कालजयी ग्रंथ की शरण में आना होगा।