ऋषि तीर्थ पर आचार्यश्री प्रसन्न ऋषि म.सा. द्वारा मंगल कलश स्थापना एवं चातुर्मास का शुभारंभ

इंदौर। मनुष्य को अच्छे या बुरे कर्मों की ओर ले जाने का काम उसका मन करता है। मन मनुष्य को मोक्ष की मंजिल तक भी ले जा सकता है और नर्क के द्वार तक भी। मन के विचारों में हम यदि अच्छे भाव लेकर चलेंगे तो धर्म, संस्कार और संस्कृति का पोषण भी कर सकते हैं। चातुर्मास का महापर्व स्वयं के साथ अपने मन को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का सबसे श्रेष्ठ अवसर है।

       ये प्रेरक विचार हैं आचार्य श्री 108 सीमंधर सागर म.सा. के पट्टाचार्य एवं आचार्य श्री कुशाग्रनंदीजी महाराज के परम शिष्य ऋषि तीर्थ प्रणेता आचार्य श्री प्रसन्न ऋषि महाराज म.सा. के, जो उन्हें आज एबी रोड, लसुड़िया परमार स्थित ऋषि तीर्थ पर अपने 26वें पावन वर्षा योग के शुभारंभ प्रसंग पर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। प्रसन्न ऋषि म.सा. की निश्रा में चातुर्मास के लिए मंगल कलश की स्थापना के साथ ही गुरू पूर्णिमा महोत्सव भी मनाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में अहमदाबाद, सूरत, भड़ूच, औरंगाबाद एवं देश के अन्य शहरों से आए भक्तों ने भी भाग लिया। प्रारंभ में श्रीमती सुमन पंचोली ने मंगलाचरण से आचार्यश्री का स्वागत किया। ऋषि तीर्थ के अंकुर पाटनी, दिलीप जैन, प्रमोद पंचोली, आर.डी. जैन, आलोक जैन, राहुल जैन, ऋषभ पाटनी आदि ने दीप प्रज्ज्वलन किया। पाद प्रक्षालन अमित काला एवं ऋषि तीर्थ परिवार के सदस्यों ने किया। मुख्य कलश के लाभार्थी प्रियांक जैन (उदयनगर), ऋषभ पाटनी (अंजनी नगर),  सन्मति गोधा (सुखदेवनगर), जितेन्द्र कुमार जयकुमार (गोयल नगर) बने। गुरू पूजा के लाभार्थी आलोक जैन, राहुल जैन बने। संगीतकार करण पाटोदी एवं उनकी टीम ने मनोहारी भक्ति गीत प्रस्तुत किए। स्वामी वात्सल्य का सौजन्य अंकुर-पिंकी पाटनी परिवार का रहा। संचालन ऋषभ पाटनी ने किया और आभार माना राजकुमार जैन ने।

       आचार्यश्री ने कहा कि चातुर्मास की स्थापना अहिंसा परमोधर्म को सार्थक करने के लिए की जाती है। इन चार माह की अवधि में कोई भी साधु-संत विहार नहीं करते बल्कि एक ही जगह रहकर प्रभु की भक्ति में स्वयं को समर्पित बनाए रखते हैं। हम सबके जीवन में गुरू का सर्वाधिक महत्व माना गया है। कहावत है – जिनका कोई गुरू नहीं, उनका जीवन कभी शुरू नहीं…। गुरू पूर्णिमा एक ऐसा महापर्व है, जब हम अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की यात्रा प्रारंभ करते हैं। ऋषि तीर्थ पर आचार्य श्री के नियमित प्रवचन होंगे।