कृष्ण की तरह आज के राजा भी अपने राजभवन के दरवाजे सुदामाओं के लिए खोल दें -प्रणवानंद

इंदौर, । कृष्ण जैसे राजा और सुदामा जैसे मित्र इस कलियुग में दुर्लभ ही हैं, लेकिन यह भी सच है कि भगवान का कोई सखा कभी गरीब नहीं रह सकता। भक्ति और धर्म एक दूसरे के पर्याय और पूरक हैं। कृष्ण और सुदामा की मैत्री राजा और प्रजा के मिलन की प्रतीक है। हमारे आधुनिक शासकों को भी ऐसी मित्रता से सबक लेना चाहिए और अपने आसपास के सुदामाओं के लिए अपने राज महल के दरवाजे खोल देना चाहिए। मित्रों के प्रति आत्मीयता और सम्मान का भाव होना चाहिए।

       अखंड प्रणव एवं योग वेदांत न्यास के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामीश्री प्रणवानंद सरस्वती ने आज गीता भवन सत्संग सभागृह में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में कृष्ण-सुदामा मिलन, नवयोगेश्वर संवाद एवं भागवत पूजन प्रसंगों के दौरान व्यक्त किए। गत 6 जुलाई से गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष्य में चल रहे इस ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ आज गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, सीए महेश गुप्ता, दिनेश तिवारी, राजेन्द्र माहेश्वरी, सविता रंजन चक्रवर्ती, प्रशंसा चक्रवर्ती, श्रीमती कांता अग्रवाल, मनोज कुमार गुप्ता, प्रदीप अग्रवाल आदि द्वारा व्यासपीठ पूजन के साथ हुआ। महामंडलेश्वरजी ने समापन बेला में गीता भवन ट्रस्ट एवं आयोजन समिति तथा भक्त मंडल के सदस्यों के प्रति मंगल भाव व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कृष्ण और सुदामा की मैत्री में की स्वार्थ नहीं था। कलियुग में सच्चे मित्र मिलना मुश्किल है। मित्रता विश्वास और रिश्तों की पवित्रता पर निर्भर होती है।

       कथा के समापन अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती का सम्मान भी किया गया। उन्होंने कहा कि भागवत कथा मनुष्य को सत्य की राह पर प्रवृत्त कर उसकी कमियों से मुक्ति दिलाती है। कथा में तो हम पूरे सप्ताह बैठ लिए, अब कथा को भी अपने अंदर अंतर्मन में बिठाने की जरूरत है।