जिसभक्ति और सेवा में कल्याण का भाव नहीं होगा वह सार्थक नहीं होगी

इंदौर । भक्ति और धर्म एक दूजे के पर्याय एवं पूरक है। भक्ति वही सार्थक होगी, जिसमें सबके कल्याण और भले का भाव होगा। जिस भक्ति या सेवा मे परमार्थ अथवा लोक कल्याण का भाव नहीं होगा, वह भक्ति और सेवा सार्थक नहीं हो सकती।मन, वचन और कर्म से जीव मात्र के प्रति दया, करुणा और स्नेह का मनोरथ ही हमें धर्म और नीति के रास्ते से मोक्ष की मंजिल तक पहुंचा सकता है ।

 मनोरमा गंज स्थित गीता भवन पर गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष में चल रहे आध्यात्मिक अनुष्ठान मैं आज भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में स्वामी प्रणवानंद ने उक्त विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन सुरेश शाहरा , गोपाल दास मित्तल, प्रेमचंद गोयल, कांता अग्रवाल ,गोकुल सिसोदिया, मनोज गुप्ता, प्रहलाद चौकसे आदि ने किया। संतश्री की अगवानी सीए महेश गुप्ता,मनोज गुप्ता ,सविता रंजन चक्रवर्ती, प्रशंसा चक्रवर्ती, दिनेश तिवारी ,राजेंद्र माहेश्वरी ने की। राधे सत्संग महिला मंडल की बहनो ने भजन प्रस्तुत किए । कथा में 9 जुलाई को भक्त प्रहलाद एवं ध्रुव चरित्र की कथा होगी। कथा प्रतिदिन 12 जुलाई तक दोपहर 3 से शाम ७ बजे तक होगी। गुरु पूर्णिमा का मुख्य महोत्सव बुधवार 13 जुलाई को 10 से 12 तक मनाया जाएगा , जिसमें देश भर के भक्त शामिल होंगे।

महामंडलेश्वरजी ने कपिल देवहूति संवाद प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि कलयुग में व्यक्ति धर्म के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन में जुट गया है। अब धर्म नहीं ,अर्थ प्रधान हो गया है। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए व्यक्ति किसी भी स्तर तक जा सकता है। भारत धर्म और संस्कृति की उर्वरा भूमि है। हमारी नई पीढ़ी को भौतिक चकाचौंध से रोकना है तो उन्हें गीता, रामायण और भागवत जैसे धर्म ग्रंथों की शिक्षा देनी चाहिए।एक संस्कारित और समृद्ध राष्ट्र की कल्पना तभी साकार हो पाएगी।