अहिल्या माता गौशाला पर प्रायोगिक प्रदर्शन की व्यवस्था- आयुर्वेद की दवाओं में कोरोना के बाद बढ़ रहा उपयोग

प्राकृतिक खाद, गाय के घी और अन्य उत्पादों की

बिक्री में लगातार हो रही दो से तीन गुना की वृद्धि

इंदौर,  केशरबाग रोड स्थित अहिल्या माता गोशाला पर जैविक एवं प्राकृतिक खाद, गोमूत्र युक्त फिनाईल, गाय के शुद्ध देशी विनोला घी और पंचगव्य के अन्य उत्पादों के प्रति आम लोगों का रूझान निरंतर बढ़ रहा है। इन सभी उत्पादों में पहले की तुलना में दो से तीन गुना मांग बढ़ गई है। कोरोना काल के बाद वजन कम करने और इम्युनिटी बढ़ाने से लेकर पेट की बीमारियों औऱ विभिन्न तरह के दर्द से मुक्ति में देशी गाय के घी की मांग लगभग तीन गुना बढ़ गई है। आयुर्वेद दवाओ में भी इनका उपयोग हो रहा है। पंचगव्य के प्रति लोगों की बढ़ती रुचि को देखते हुए गौशाला पर इन सभी उत्पादों के प्रायोगिक प्रदर्शन की व्यवस्था भी की जा रही है।

अहिल्या माता गौशाला प्रबंध समिति के अध्यक्ष रवि सेठी, मंत्री पुष्पेन्द्र धनोतिया एवं संयोजक सी.के. अग्रवाल ने बताया कि गोबर से बने उत्पादों की मांग तो पहले से ही थी, लेकिन अब देश की अन्य गौशालाओं के गोबर की मांग विदेशों से भी आने लगी है। कुवैत एवं खाड़ी देशों के वैज्ञानिकों ने इसी माह जयपुर की पिंजरापोल गौशाला को 192 मैट्रिक टन गोबर का आर्डर भेजा है। कुवैत में हुई शोध में वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि खजूर के उत्पादन में गाय के गोबर का प्रयोग बहुत फायदेमंद रहेगा। इस आधार पर देश में पहली बार जयपुर की गौशाला को इतना बड़ा गोबर का आर्डर मिला है। यह गोबर गत 15 जून को कस्टम विभाग की निगरानी में कंटेनर में पैकिंग के बाद मुंबई के लिए कनकपुरा स्टेशन से भेजा जा चुका है। वहां से जहाज से कुवैत भेजा गया है।

उन्होंने बताया कि, स्थानीय अहिल्यामाता गौशाला से भी पंचगव्य के उत्पादों की बिक्री निरंतर बढ़ रही है। गत वर्ष करीब 150 टन जैविक और प्राकृतिक खाद की बिक्री हुई थी, जो इस बार अब तक 320 टन हो चुकी है। इसी तरह गौमूत्रयुक्त फिनाईल की बिक्री 500 लीटर थी, जो अब बढ़कर 1200 लीटर हो गई है। इसी तरह देशी गाय के बिनौला शुद्ध घी की बिक्री 40 लीटर थी, जो अब बढ़कर 100 लीटर से अधिक पहुंच गई है। देशी घी का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में भी बढ़ने लगा है। वजन कम करने, इम्यूनिटी बढ़ाने और पेट की बीमारियों के उपचार में यह घी काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। 10 से 12 वर्ष के बच्चों की नाभि और तलुए की मालिश करने से बच्चों की आंखों की ज्योति बढ़ रही है और अनेक बच्चों के चश्मे भी उतर रहे हैं। दूसरी ओर जैविक खाद के उपयोग से अब बाजार में जैविक सब्जियों का कारोबार एवं उपयोग भी बढ़ने लगा है। वर्तमान में करीब 100 टन जैविक सब्जियां प्रतिदिन बिक रही हैं। इस खाद के प्रयोग से एक एकड़ में पौने दो टन घास का उत्पादन होने लगा है, जो पहले केवल एक टन तक सीमित था। यही नहीं, किसान भी अब एक वर्ष में पांच-पांच फसलें लेने लगे हैं। पहले एक फसल को तैयार होने में 90 दिन लगते थे, जो अब घटकर 70 दिन ही रह गए हैं। कोरोना काल से सबक लेकर आम लोगों में पंचगव्य के प्रति विश्वास भी बढ़ रहा है और इनके चमत्कारिक नतीजे भी सामने आने लगे हैं।

गौशाला के संयोजक सी.के. अग्रवाल ने कहा कि पंचगव्य के सही उपयोग से गौरक्षा को भी बढ़ावा मिल रहा है। प्राकृतिक और गौ आधारित खेती से ही धरती मां स्वस्थ होकर ऊर्जावान और ऊर्वरक हो सकती है। ऐसा हुआ तो हम धरती से मिलने वाली खान-पान की वस्तुओँ को जहरीले रसायनों से मुक्त बनाकर अपने जीवन को बीमारियों से मुक्त बना सकेंगे। अहिल्यामाता गौशाला पर गोबर एवं गौमूत्र के उपयोग से तैयार प्राकृतिक खाद आम लोगों के लिए उपलब्ध कराई जा रही है। इसका प्रायोजित प्रदर्शन भी गौशाला पर देखा जा सकता है। एक टन गोबर की खाद में 5-6 किग्रा नाइट्रोजन, 2-3 किग्रा फास्फोरस, 5 से 10 किग्रा पोटेशियम, 10 से 12 किग्रा केल्शियम, 7 से 8 किग्रा सल्फर, 3.50 से 4.50 किग्रा मैग्निशियम, 300 से 500 ग्राम आयरन, 250 से 500 ग्राम मेग्नीज, 100 से 200 ग्राम जिंक, 25 से 50 ग्राम बोरोन, 20 से 40 ग्राम कापर एवं 5 से 10 ग्राम मोलिडेनम पाया जाता है। इसके अलावा गोबर की खाद में तांबा, लोहा, जस्ता आदि पोषक तत्व भी रहते हैं। इसीलिए गोबर की खाद का उपयोग करने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है, वायु का संचार बढ़ता है, मिट्टी की जलशोखन क्षमता बढ़ती है और पौधों की जड़ों का अच्छा विकास होता है। भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने में भी गोबर का उपयोग फायदेमंद माना गया है। इसी कारण गोबर के खाद की मांग निरंतर बढ़ रही है।

जयपुर स्थित पिंजरापोल गौशाला के अधिकारियों ने बताया कि देश में मवेशियों की संख्या 30 करोड़ से अधिक है, जिनसे रोज 30 लाख टन गोबर मिलता है। इसमें से 30 प्रतिशत गोबर का उपयोग कंडे बनाकर जलाने में किया जा रहा है, जबकि ब्रिटेन में गोबर गैस से हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली बन रही है और चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस दी जा रही है, लेकिन हमारे देश में फिलहाल ऐसा नहीं हो पा रहा है। केन्द्र सरकार इस मामले में जल्द ही वृहद योजना बना रही है।