अर्जुन की तरह जीवन के कुरुक्षेत्र में  अपने रथ की चाबी श्रीकृष्ण के हाथों सौंप दें- प्रणवानंदजी

इंदौर, । रामायण जीवन जीने और भागवत मृत्यु को मोक्ष में बदलने की कथा है। भागवत भारत भूमि का वह विलक्षण ग्रंथ है, जिसे हजारों बार सुनने के बाद भी भक्ति की प्यास खत्म नहीं होती। भागवत और रामायण जैसे धर्मग्रंथ भारत भूमि की अनमोल धरोहर हैं, जो युगों-युगों तक हमारी प्रेरणा और ऊर्जा के केन्द्र बने रहेंगे। कलिय़ुग में भक्ति के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की प्रवृति बढ़ रही है, लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता। जीवन की महाभारत को जीतना है तो अर्जुन की तरह जीवन के कुरुक्षेत्र में अपने जीवन रुपी रथ की चाबी श्रीकृष्ण के हाथों में सौंप देना चाहिए।

         ये दिव्य विचार हैं अखंड प्रणव एवं योग वेदांत न्यास के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामीश्री प्रणवानंद सरस्वती के, जो उन्होंने आज गीता भवन सत्संग सभागृह में गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में आयोजित सात दिवसीय अनुष्ठान के शुभारंभ सत्र में भागवत ज्ञानयज्ञ के दौरान व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व गीता भवन परिसर में भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई। अनेक श्रद्धालुओं ने भागवतजी को नंगे पैर मस्तक पर धारण किया। भागवतजी की जय जयकार के बीच गीताभवन के राम दरबार मंदिर से प्रारंभ शोभायात्रा सत्संग सभागृह में ज्ञानयज्ञ में बदल गई। व्यासपीठ का पूजन गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, सीए महेश गुप्ता, मनोज कुमार जगदीश प्रसाद गुप्ता, श्रीमती कांता अग्रवाल, सविता रंजन चक्रवर्ती, राजेन्द्र माहेश्वरी, प्रशंसा चक्रवर्ती, दिनेश कुमार तिवारी आदि ने किया। संध्या को आरती में गीताभवन के न्यासी दिनेश मित्तल, मनोहर बाहेती, महेशचंद्र शास्त्री, हरीश जाजू, सत्संग समिति के जेपी फड़िया आदि ने भाग लिया। कथा में गुरुवार 7 जुलाई को कपिल-देवहुति संवाद, 8 को भक्त प्रहलाद एवं ध्रुव चरित्र, 9 को कृष्ण जन्मोत्सव, 10 को बाल लीला एवं गोवर्धन पूजा, 11 को रुकमणि विवाह तथा 12 जुलाई को सुदामा चरित्र के साथ कथा का समापन होगा। 13 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का मुख्य महोत्सव सुबह 10 से 12 बजे तक मनाया जाएगा। कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से सांय 6 बजे तक होगी।

       भागवत की महत्ता बताते हुए महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने कहा कि आज हमारे परिवार बिखर रहे हैं। रिश्तों में दरारें आ रही है। संसार के भौतिक संसाधनों की आपाधापी में मनुष्य भटक रहा है। इसका मुख्य कारण यही है कि हम संस्कारों और संस्कृति से विमुख हो गए हैं। हमारी नई पौध को अब शिक्षा के साथ संस्कारों की भी जरूरत है, जो भागवत, रामायण और गीता जैसे दिव्य धर्मग्रंथों से ही प्राप्त हो सकते हैं। रामायण जीवन की और भागवत मोक्ष की कथा है। भगवान इतने दयालु हैं कि भक्तों की चरण पादुका को भी मस्तक से लगा लेते हैं। उनके शब्दकोश में दुख नाम का कोई शब्द है ही नहीं। सुख और दुख तो हमारे अंतर्मन की उपज है। भक्ति में निष्ठा और समर्पण होना चाहिए।