सुसंस्कृत और संस्कारी परिवार ही भारत की असली ताकत

इंदौर, । भारत परिवारों का देश है। आज के समय में कुटुम्ब का अत्यंत महत्व है। सुसंस्कृत और संस्कारी परिवार भारत की असली ताकत है, लेकिन वर्तमान में परिवार व्यवस्था छिन्न भिन्न हो रही है। आज नई पीढ़ी में अपराधीकरण बढ़ रहा है। युवा एवं छात्र आत्महत्या की ओर बढने लगे हैं। शुचिता का अभाव है। समाज के हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। भारत के किसी भी प्राचीन ग्रंथ में अनाथालय और वृद्धाश्रम जैसे कोई नाम नहीं है। आज हमें अपने धर्म और परिवार को सुरक्षित रखने की जरूरत है। संयुक्त परिवार को प्रोत्साहित करना होगा। ‘मैं हूं तो हम हैं’ की भावना को मजबूत बनाए बिना हम देश की एकता, अखंडता और समृद्ध परंपराओं को आगे नहीं बढ़ा सकते।

        ये प्रेरक विचार हैं प्रख्यात प्सास्टिक सर्जन और विचारक डॉ. निशांत खरे के, जो उन्होंने जाल सभागृह में श्यामदास जगन्नाथ धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट के तत्वावधान में समाजसेवी स्व. श्यामदास अग्रवाल की पुण्य स्मृति में ‘आज के समय में कुटुम्ब का महत्व’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। प्रारंभ में ट्रस्ट के अध्यक्ष रामदास गोयल, वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकुमार अष्ठाना, डॉ. लोकेश जोशी, सीए अंबिका शरण शास्त्री, सीए ओ.पी. अग्रवाल, सुरेश अग्रवाल आदि ने डॉ. खरे के साथ स्व. श्यामदासजी के चित्र पर पुष्पांजलि समर्पित की। विषय प्रवर्तन करते हुए श्री अष्ठाना ने श्यामदासजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित प्रेरक संस्मरण बताए। उन्होने कहा कि वे एक ऐसे रामभक्त, दानवीर और सरल स्वभाव के धनी थे, जिनसे सुबह कुछ पलों की बात हो जाती थी तो पूरा दिन संवर जाता था। शहर के हित में भी उन्होंने अनेक सेवाकार्य किए। आज भी उनके द्वारा रोपी गई संस्थाएं मानव सेवा के क्षेत्र में समर्पित भाव से कार्यरत है। कार्यक्रम का संचालन किया तरुण मिश्रा ने और आभार माना समाजसेवी नारायण अग्रवाल ने। अतिथि वक्ता को स्मृति चिन्ह भेंट किए ट्रस्ट के अध्यक्ष रामदास गोयल, कृष्णकुमार अष्ठाना, डॉ. लोकेश जोशी एवं अन्य सदस्यों ने। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के धार्मिक, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

मुख्य वक्ता डॉ. खरे ने कहा कि हमारा रास्ता धर्म, मानवीयता और नैतिक मूल्यों के आचरण से प्रभावित है। हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना से चलते हैं। बालकों के लिए परिवार ही पहली पाठशाला होती है। आज समाज से लेकर प्रत्येक क्षेत्र में शुचिता का अभाव हो रहा है। हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। परिवारों में मर्यादाओं का पालन होता था। वर्तमान में परिवार व्यवस्था छिन्न भिन्न हो रही है। हमारी जीवन पद्धति परिवार के सभी सदस्यों को साथ में रहकर पूजा, भोजन, सार्थक चर्चा और मनोरंजन की होना चाहिए। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से राष्ट्र और राष्ट्र से ही विश्व का निर्माण होगा। धर्म और परिवार जब तक सुरक्षित नहीं रहेंगे, तब तक देश भी समृद्ध और शालीन नहीं हो पाएगा। संयुक्त परिवार में रहकर ही हम शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ सकते हैं। हम सबका उत्तरदायित्व है कि हम परिवार और राष्ट्र को बचाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहें।