मानवीय अवतार में श्रीराम की मार्मिक स्थिति” – रीना रवि मालपानी

 

कहते है कर्मो का फल इंसान को हमेशा भोगना पड़ता है। यही बात प्रभु ने मनुष्य अवतार लेकर हर समय सिद्ध की है। श्रीराम जोकि विष्णु के अवतार थे और जो विष्णु स्वरूप में भुजंग पर शयन करते है, योगनिद्रा में चले जाते है, पर जब वह मनुष्य रूप में अवतार लेते है तो हर समय वज्र का आघात हो ऐसी मानसिक परिस्थितियों का सामना करते है। वह श्रीराम जो राजतिलक के उद्घोष से सजने वाले थे पर नियति की विडम्बना देखिए वह वन की ओर गमन करने चले गए। जिन सुकोमल राजकुमार के यहाँ माणिक, आभूषण, धन्य-धान की कोई कमी नहीं थी वे वन में भटककर अपना जीवन व्यतीत करते है। पत्नी के हरण होने पर नामी वंश से संबंध रखने वाले श्रीराम किसी सगे-संबंधी के पास न जाकर अपने साथ जरूरतमंदों को लेकर अपने लक्ष्य को पूर्ण करते है।

ब्रह्म स्वरूप श्रीराम प्रत्येक समय धैर्य का अनूठा पाठ सिखाते है। राजवंश के संसाधनों की पूर्णता के बावजूद भी लंका पर विजयप्राप्ति के लिए अपने लिए धीरे-धीरे संसाधन जुटाते है और विजयप्राप्ति की ओर अग्रसर होते है। जिस लक्ष्य को प्रभु क्षण में प्राप्त कर सकते थे उसकी पूर्णता के लिए छोटे-छोटे कदम बढ़ाते है। दुखद मनोस्थिति का सामना भी करते है जब लक्ष्मण मूर्छित हो जाते है। कितना कठिन क्षण रहा होगा, सोचा होगा घर जाकर परिवारवालों को क्या जवाब दूंगा। पत्नी का हरण हो गया और भाई मूर्छित अवस्था में है। कितनी विकट स्थिति प्रभु ने झेली होगी। इतना ही नहीं हर क्षण अपनी पत्नी को समाज के मापदण्डों पर तोलना, वेदना तो प्रभु को भी बहुत होती होगी। जब प्राणों से प्यारी जानकीजी की परीक्षा ली होगी। कितना हृदय विदारक क्षण होगा जब अपनी गर्भस्थ पत्नी को वन में छोड़ा होगा। सामान्यतः जब स्त्री गर्भवती होती है तो उसे पूर्ण सहयोग प्रदान किया जाता है। जो करुणानिधान भगवान हर समय अपने भक्तों की पुकार पर कृपा करते है उनको भी मानवीय अवतार में निष्ठुर पति और पिता का रूप धारण करना पड़ता है।

क्या कष्टदायक मार्मिक स्थिति होगी प्रभु की जब उन्होने जगतजननी सीता को ऐसी हालत में वन में छोड़ा। अपनी ही संतान का चेहरा न देख पाना, उसको गोद में न ले पाना, पत्नी का सहयोग न कर पाना इत्यादि। समाजहित और राजवंश के मापदण्डों की पूर्णता में श्रीराम की क्या मानसिक स्थिति हुई होगी। श्रीराम के जीवन का विश्लेषण हमें यह याद दिलाता है की मानवजीवन सहज नहीं है। यह हर समय परीक्षा की ओर धकेलता है।आपका मर्म किसी और के द्वारा समझा जाना आसान नहीं है। हर पल आपको स्वयं से लड़कर जितना होगा। यश-अपयश का समान रूप से सामना करना होगा। बस आपका धैर्य ही आपकी जीत सुनिश्चित कर सकेगा।

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*