पितृ पर्वत स्थित हनुमंत धाम पर नौ दिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ का शुभारंभ आज कलशयात्रा से
इंदौर, । प्रायश्चित अर्थात मन, वचन और कर्म से किसी भी रूप में हुए पाप के शमन की व्यवस्था। यज्ञ की अग्नि में हर तरह के पापकर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म की प्राप्ति आचरण की शुद्धि से ही संभव है। यह शिवशक्ति महायज्ञ संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए ही हो रहा है। शिव विश्वास हैं और शक्ति अर्थात पार्वती श्रद्धा। किसी भी कर्म के लिए शिव के साथ शक्ति भी जरूरी है। श्रृद्धा बहती रहती है, लेकिन विश्वास ठोस होता है। जहां कहीं यज्ञादि जैसे पावन-पुनीत कर्म होते हैं, वहां देवता अवश्य आते हैं। पितृ पर्वत तो साक्षात हनुमानजी का धाम है इसलिए यहां हो रहा यह अनुष्ठान शहर, प्रदेश और राष्ट्र के लिए भी हर दृष्टि से कल्याणकारी होगा।
ये दिव्य विचार हैं श्री श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती के, जो उन्होंने आज सुबह पितृ पर्वत स्थित हनुमंत धाम पर बुधवार से प्रारंभ होने वाले नौ दिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ में शामिल हो रहे 200 यजमानों के प्रायश्चित कर्म की रस्मों के बाद अपने आशीर्वचन में व्यक्त किए। उन्होंने इंदौर के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में सभी साधकों को बधाई देते हुए कहा कि इंदौर का नागरिक होना भी हम सबके लिए अत्यंत गौरव का विषय है। ऐसा सौभाग्य देश में किसी और शहर को नहीं मिला है। प्रारंभ में महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद ने ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ‘भगवन’ के चित्र का पूजन कर शुभारंभ किया। श्री शिवशक्ति साधना समिति की ओर से संयोजक आचार्य पं. उमेश तिवारी, आचार्य पं. राजेश शर्मा, ब्रह्मचारी आचार्य पं. प्रशांत अग्निहोत्री, आचार्य पं. आदर्श शर्मा सहित 11 विद्वानों ने लगभग तीन घंटे चली शास्त्रोक्त क्रियाओं के माध्यम से मुख्य यजमान पुलकित दीपक खंडेलवाल सहित सभी यजमानों से प्रायश्चित विधि संपन्न कराई। इसमें दस तरह के स्नान के बाद दस तरह के दान की रस्में भी शामिल थी। यजमानों ने पंचगव्य, पवित्र नदियों के जल, पंचामृत एवं रजत-स्वर्ण सहित विभिन्न जलों से स्नान भी किया और यज्ञ कुंड की अग्नि की साक्षी में यज्ञोपवीत धारण किए। इस दौरान कार्यक्रम स्थल बार-बार यज्ञदेवता, हनुमानजी और श्री श्रीविद्याधाम के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी गिरिजानंद सरस्वती ‘भगवन’ के जयघोष से गूंजता रहा। म.प्र. ज्योतिष एवं विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक सहित शहर के अनेक विद्वतजन भी उपस्थित थे।
आज भव्य कलश यात्रा- बुधवार को सुबह 9 बजे सभी यजमान एवं अन्य श्रद्धालु भव्य कलश यात्रा में शामिल होंगे। यह यात्रा यज्ञशाला की परिक्रमा कर हनुमानजी की साक्षी में यज्ञ मंडप में प्रवेश करेगी, जहां प्रतिदिन सुबह 9 से 12 एवं दोपहर 3 से 6 बजे तक, दो पारियों में 25 कुंडों पर 200 विद्वान ब्राह्मणों के निर्देशन में सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की मंगल कामना के साथ यह महायज्ञ संपन्न होगा। शनिवार 4 जून को 1100 भक्त यहां पं. राजेश मिश्रा के साथ एक साथ सुंदरकांड का सामूहिक पाठ भी करेंगे तथा 7 जून को प्रख्यात भजन गायक कन्हैया मित्तल की भजन संध्या होगी। यज्ञ में शामिल होने के लिए उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली एवं मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ तथा बुंदेलखंड अंचल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पुण्य लाभ उठाने आए हैं।
यज्ञशाला का आवलोकन- महामंडलेश्वर एवं यज्ञ के प्रेरणास्त्रोत स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने विद्वान आचार्यों के साथ महायज्ञ की यज्ञशाला का भी अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि प्रायश्चित कर्म के बाद आपको परमात्मा के नजदीक जाने की पात्रता मिल गई है। यज्ञ के दौरान सभी साधकों को जहां तक संभव हो पूरे 9 दिनों तक यज्ञोपवीत धारण करना चाहिए, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन भी करें, झूठ न बोलें और जमीन पर सोने का मनोबल बनाएं। हमारी पात्रता ठीक होगी तो भगवान भी कृपा की वर्षा करने में देर नहीं लगाएंगे। यज्ञ के संयोजक आचार्य पं. उमेश तिवारी ने कहा कि हमारी भारतीय संस्कृति में यज्ञ ऐसा अनुष्ठान है, जिससे मनुष्य जीवन के चारों पुरुषार्थ प्राप्त होते हैं। धर्म का मार्ग जीवन के संघर्ष को आसान बनाता है। देवताओं की कृपा से हमारा मार्ग तो प्रशस्त होता है, लेकिन उस मार्ग पर चलना हमें ही पड़ेगा। धर्माचरण के माध्यम से ही मानव को मोक्ष या मुक्ति मिलेगी। यज्ञ वह क्रिया है जिसमें व्यक्ति को यश, सम्पत्ति और संतति की प्राप्ति होती है। राजा दशरथ को भी यज्ञ कर्म से ही राम सहित चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।