करें जीवन सरिता में शिवधारा का प्रवाह”- रीना रवि मालपानी

*“करें जीवन सरिता में शिवधारा का प्रवाह”*

भोलेनाथ को सभी देवताओं ने महादेव की संज्ञा दी है। शिव का श्रंगार, त्याग, ध्यान की उत्कृष्ट पराकाष्ठा देखिए कितने सरल, सुलभ स्वरूप है शम्भूनाथ। शिव के विवाह की सरलता और सच्चाई सभी के लिए प्रेरणास्तोत्र है। प्रभु ने सबके समक्ष स्वयं को अपने असली रूप में प्रत्यक्ष किया है। जहाँ पूरी दुनिया दिखावे से खुश होती है और दिखावे को महत्व देती है, वहीं शिव सरलता और सादगी से सुशोभित होते है। इतने सरल है कि जो भील की अनायास पूजा को ही स्वीकार कर मनोवांछित फल देते है। शिव तो मात्र भाव से ही प्राप्त हो जाते है। प्राप्त को ही पर्याप्त समझने वाले शिव का गुणगान शब्दों से परे है। दुनिया के विष को कंठ में धारण कर भक्ति और ध्यान मार्ग से तनिक भी विचलित नहीं होते। अपने रूप की कितनी उत्कृष्ट व्याख्या करते है और कहते है “सत्यम शिवम सुंदरम”। हर किसी की आराधना को सहर्ष स्वीकार करना फिर चाहे वह पापी हो, राक्षस हो या देवता हो। त्याग के सत्य को जीना और गृहस्थ होकर भी राम नाम में अनवरत रमण करना। उस जगतगुरु त्रिभुवनपति का साधारण सा लगने वाला मंत्र ॐ नमः शिवाय ही कितना ज्यादा प्रभावी है यह केवल भक्त ही अनुभव कर सकता है। ऐसी पूजा-अर्चना जो किसी के लिए भी सुलभ हो यह बात तो शम्भूनाथ ही समझ सकते है।

कपूर की तरह सुंदर गौरवर्ण वाले प्रभु मुर्दे की भस्म से खुद को सजाते है। कंचन के मुकुट के स्थान पर जटाओं से सुशोभित होते है। यही भक्तवत्सल भगवान भागीरथी को जटाओं में स्थान देकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते है। भीतर और बाहर विष को स्थान देकर भी कितना शांत रहा जा सकता है यह शिव सिखाते है। मान-अपमान, यश-अपयश, मोहमाया, काम-क्रोध रूपी विष को छोडकर सिर्फ राम नाम रूपी अमृत का पान करते है। प्रभु होकर भी विरह की वेदना सहते है। पार्वती को भी भक्ति मार्ग के द्वारा ही मिलते है। संसार में रहना और संसार से विरक्त रहना जीवन रूपी क्षीरसागर में केवल विष का पान करना यह शिव का असाधारण गुण है। संहारक रूप में जाने जाना, पर सिर्फ हर समय सहयोगी रूप में प्रत्यक्ष होना यह शिव की विशेषता है। कितने सरल है जिनकी पूजा का कोई मुहूर्त नहीं, कोई विशेष पूजन-अर्चन विधि नहीं, कोई आडंबर नहीं। हर जगह मंदिर उपलब्ध है। कहीं-कहीं सरोवर किनारे, कहीं नदी किनारे तो कहीं शमशान के किनारे। उस अजन्मे, अविनाशी, निराले रूप के धारक शिव की महिमा अपरमपार है। वह ज्योतिस्वरूप और लिंगस्वरूप में सदैव भक्तों के आसपास रहते है। वह शिव जो सदैव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते है। मृत्यु भस्म से शोभित होकर सत्य को सदैव याद दिलाते है। ऐसे भोलेनाथ की आराधना तो जीवन में प्रकाशपुंज सी ज्योति का प्रसार करते है। यदि जीवन सरिता में इन सरल-सुलभ शिव की भक्ति का प्रवाह होता रहेगा तो यह जीवन स्वतः ही सार्थक हो जाएगा।

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*