वरिष्ठ कवि जनेश्वर के काव्य संग्रह ‘रोशनी की तरेड़’का विमोचन हुआ
रतलाम। कविता वक्त की नब्ज़ पर हाथ रखती है। हर विसंगति पर उंगली उठाती है और हर बार मनुष्यता की बात करती है। वही कविता सार्थक और प्रभावी होती है जो मनुष्य के जीवन संघर्षों और उसके संवेदनाओं से एकाकार होती है। कवि जनेश्वर की कविताएं भी आम आदमी के हक़ की बात करती हैं और विसंगतियां का प्रतिकार करती हैं। उक्त विचार वरिष्ठ कवि एवं भोपाल से आए रचनाकार श्री वसंत सकरगाए ने वरिष्ठ कवि श्री जनेश्वर के काव्य संग्रह “रोशनी की तरेड़” के विमोचन अवसर पर व्यक्त किए।
जनवादी लेखक संघ, जन नाट्य मंच, जलेसं उर्दू विंग एवं युगबोध द्वारा आयोजित समारोह में काव्य संग्रह पर अपना समीक्षात्मक आलेख पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि वामपंथी चेतना के अग्रणी कवि जनेश्वर का अनुभव संसार जितना विस्तृत है उनका कवि जीवनमूल्यों के प्रति उतना ही प्रतिबद्ध है। यही वज़ह है कि जनेश्वर दृश्य और आँख के बीच की ‘रोशनी की तरेड़’ को बहुत सूक्ष्मता से देखते हैं। वे राजनीति के फैलाए भ्रमों-पड़यंत्रों को तितरबितर करते हुए हालात का व्यापक और पारदर्शी निरीक्षण करते हैं और इस तरह आदमी के श्रम की आदरपरक स्थापना करते हैं। उन्होंने कहा कि कवि सिर्फ़ वह नहीं देखता है जो उसकी आंखों के सामने होता है। कवि जो दिख रहा है उसके पीछे जाकर हक़ीक़त की पड़ताल करता है और उसे अपने बिम्बों के ज़रिए सामने रखता है। एक सार्थक कविता वही होती है जिसके पीछे के दृश्य हर पाठक को अपने अपने अलग आयाम से देखने के लिए विवश करें। इस दृष्टि से जनेश्वर की कविताएं महत्वपूर्ण साबित होती हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि अनुवादक प्रो. रतन चौहान ने कहा कि कवि नफ़रतों की दुनिया में भी प्यार का पैग़ाम देता है। उन्होंने ब्रेख्त का ज़िक्र करते हुए कहा ” क्या ज़ुल्मतों के दौर के भी गीत गाए जाएंगे, हां, ज़ुल्मतों के दौर के ही गीत गाए जाएंगे।” श्री चौहान ने कहा कि कवि अपनी रचनाओं के ज़रिए न सिर्फ बिगड़े हुए दौर की व्याख्या करता है बल्कि वह इस दौर में भी जीवन के अंतर्संबंधों और मानवीय मूल्यों की रक्षा को रेखांकित करता है ।उन्होंने कवि जनेश्वर की कविताओं की समकालीन कवियों के साथ तुलना करते हुए कहा कि ये कविताएं मौजूदा दौर के कवियों के साथ कदमताल करती नज़र आती है। इन कविताओं में मानवीय रिश्तों और संबंधों में आती दरारों को भरा गया है।
कवि जनेश्वर ने अपनी महत्वपूर्ण कविताओं का पाठ किया । उन्होंने अपनी कविता में कहा,”श्रम के बेटे-बेटियाँ सभी/हाथ बाँध कर कमर झुका कर/शीश नवाकर नहीं खड़े हैं/राजमार्ग पर तने खड़े हैं/ चढ़ी त्योरियों पर झलक रहे/झर रहे स्वेद की आभा में/तनी मुट्ठियाँ दमक रही है।”
विमोचन समारोह में रमेश शर्मा, रणजीत सिंह राठौर, सिद्दीक़ रतलामी, युसूफ़ जावेदी, श्याम माहेश्वरी, मांगीलाल नगावत, शांतिलाल मालवीय, विष्णु बैरागी, डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित , संजय परसाई , पद्माकर पागे , श्रेणिक बाफना,प्रकाश मिश्रा , डॉ शोभना तिवारी, मोहन परमार,लक्ष्मण पाठक, प्रकाश हेमावत, प्रणयेश जैन , मदन यादव, रामचंद्र फुहार, अकरम शेरानी, मुकेश सोनी , सलीम पठान, रितेश मेहता, नरेंद्र अग्रवाल सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे । कार्यक्रम का संचालन आशीष दशोत्तर ने किया तथा आभार ओमप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किया।