“अब जमाने की चुनौती”
2023 मे भाजपा से सीधी टक्कर
रितेश मेहता,ग्वालियर
किसी फिल्मी स्क्रिप्ट की तर्ज पर खट्टे-मीठे अनुभव और मनमुटाव कि सुर्ख़ियों के बीच मध्य प्रदेश कांग्रेस की शायद अब तक कि सबसे परिपक्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने मिशन -23 के लिए कमर कस ली है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाथ के निर्देश पर आज दिग्गी राजा ने ग्वालियर चंबल संभाग की कांग्रेसी सियासी बिछात पर पहली बार खुलकर अपने पैर पसारे । कारण था, संभाग के कांग्रेसी नेताओं की बैठक का। अध्यक्षता की दिग्गी राजा ने, बैठक में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह, संभाग के कांग्रेसी विधायक और आठ जिलों के शहर- ग्रामीण अध्यक्ष पूर्व विधायक,पूर्व सांसद व अन्य पदाधिकारी मौजूदगी। अब दिग्गी राजा के समक्ष ग्वालियर चंबल संभाग में पैर जमाने की चुनौती है।
दरअसल बात चाहे स्वर्गीय माधवराव सिंधिया के दौर की हो या महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रविष्टि तक दिग्गी राजा या मध्य प्रदेश कांग्रेस के किसी अन्य नेता को ग्वालियर चंबल संभाग में राजनीतिक नियुक्तियों और सत्ता में रहते हुए अफसरों की नियुक्तियों में सिंधिया की सहमति जरूरी थी। आलम यह था कि तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष यादव के जमाने में भी राजा और महाराजा के बीच तकरार 10 जनपद के हस्तक्षेप के बाद शांत हुई थी । इसी समय कांग्रेस के इतिहास में शायद पहली और आखरी बार ऐसा वाकया हुआ कि वर्ष 2007 में सिंधिया के कट्टर समर्थक और तत्कालीन मंदसौर जिला कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश काला ने मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव नारायण सामी से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह के भानपुरा दौरे की शिकायत की थी। इसी क्रम में राजा और महाराजा के बीच चले आ रहे हैं, टेरिटोरियल वार 2018 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आया। जब संगठनात्मक मजबूती के लिए पार्टी द्वारा दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में गठित समन्वय समिति ने प्रदेश के 53 में से 41 जिलों में “संगत में पंगत” कार्यक्रम किया। लेकिन सिंधिया की वजह से पार्टी के कार्यक्रम भी ग्वालियर चंबल संभाग में आहूत नहीं हो सके। इसे सिंधिया का दबदबा नहीं कहा जा सकता,यह पंद्रह साल बाद सत्तासीन होने के लिए कमलनाथ के परिपक्व निर्णय के तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन दो वर्ष पूर्व सिंधिया द्वारा कांग्रेस छोड़े जाने के बाद अब बदले सियासी समीकरणों में दिग्गी राजा का आज से अधिकृत तौर पर समस्त पदाधिकारियों की बैठक लेने के अपने सियासी मायने हैं।
बताया जाता है कि कांग्रेस में रहते हुए सिंधिया हर बार रस्सा- कशी में अपने कम से कम पचास समर्थकों को टिकट दिलावा लेते थे । लेकिन महाराज की भाजपा में प्रविष्टि के बाद काडर बेस्ड पार्टी में विधायकों के संख्या बल का महत्व सिर्फ विधानसभा में फ्लोर टेस्टिंग और राज्यपाल के समक्ष बहुमत का दावा करते वक्त ही होता है। या विपक्षी असंतुष्ट बाहुबली नेता के समर्थक विधायको के संख्या बल पर । वहीं भाजपा में मुख्यमंत्री खासकर मध्यप्रदेश के नाम पर नागपुर की मोहर ही महत्वपूर्ण है । ऐसे में नए राजनीतिक परिवेश में जिस सूझबूझ और राजनीतिक परिपक्वता के साथ सिंधिया ने अपनी नई राजनीतिक पारी जमाई है ,उसके मद्देनजर निकट भविष्य में उनसे किसी राजनीतिक चुक की उम्मीद नहीं की जा सकती। जैसा कि दिग्विजय सिंह के आरोपों से जुड़े सवालों पर सिंधिया कई बार कह चुके हैं कि वे उनकी टिप्पणियों पर कोई जवाब नहीं देंगे। ऐसे में दिग्विजय सिंह की पार्टी कि ओर से ग्वालियर-चंबल संभाग में सक्रियता का जवाब सत्तारूढ़ भाजपा सिंधिया को आगे कर देती है या अपने काडर बेस्ड पार्टी की पहचान को बरकरार रखते हुए सामूहिक रणनीति बनाती है।
लेकिन चंबल संभाग में दिग्विजय की जमीनी स्तर पर सक्रियता से सत्तासीन भाजपा नेतृत्व की पेशानी पर बल पड़ना लाजमी है। क्योकि जिस हिसाब से पिछले पांच साल में दिग्गी राजा ने खुद का सनातनी हिन्दू रूप उभरा है और सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर ने जातिगत राजनीति के गढ़ चंबल संभाग में खुलकर पैर पसारे है ।
चंबल की माटी में मुकाबला ना सिर्फ दिलचस्प होगा बल्कि हो सकता है 2023 में एक श्यामला हिल्स का रास्ता भी यहीं से तय हो
।