इंदौर, । मनुष्य को सबसे बड़ा भय मृत्यु का होता है। मृत्यु रूपी दंश हमे हर पल डसता रहता है। यह दंश ही हमें सदकर्मों से विमुख बनाता है। मनुष्य जन्म अत्यंत दुर्लभ है। परामात्म की कृपा से ही हमें मनुष्य के रूप में जन्म मिला है इसलिए हम सबके जीवन में हर दिन, हर पल नूतन विचारों का निर्झर बहते रहना चाहिए। इसका बोध केवल भागवत ग्रंथ से ही हो सकता है। भागवत वह ग्रंथ है जो मौत के मोक्ष में बदल देता है। विद्वानों ने इसे ऐसा कल्पवृक्ष कहा है, जिसकी छाया में हम भूले से भी चले जाएं तो हमारे सभी शुभ संकल्प साकार हो उठेंगे।
ये दिव्य विचार हैं मालवा माटी के युवा संत भागवत मर्मज्ञ पं. अर्जुन गौतम के जो उन्होंने आज लालाराम नगर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर के पास आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव के शुभारंभ संत्र में उपस्थित भक्तों को भागवत की महत्ता बताते हुए व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व नवरतन बाग स्थित बारह पत्थर हनुमान मंदिर से बैंड-बाजों सहित भागवतजी की शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें मातृशक्ति ने राजपुताना शैली में परंपरागत परिधान पहनकर भागवतजी को मस्तक पर धारण किया, वहीं पुरुषों ने भी शौर्य के प्रतिक शस्त्रों को हाथ में लेकर रामनवमी पर्व को सार्थक बनाया। शोभायात्रा में भजन एवं गरबा मंडलियां भी शामिल रहीं। मार्ग में अनेक मंचों से पुष्प वर्षा कर भक्तों का स्वागत किया गया। कथा स्थल पहुंचने पर संयोजक दीपेन्द्रसिंह सौलंकी के साथ गोलू शुक्ला, जितेन्द्र चौधरी, राजेश उदावत, चंद्रभानसिंह सौलंकी, गोविंदसिंह परिहार, पप्पू ठाकुर एवं पूजा शर्मा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
युवा संत ने कहा कि रामनवमी जैसे महापर्व के दिन भागवत ज्ञान यज्ञ का आयोजन एक अनुकरणीय प्रयास है। हम सबका जीवन भी उस परीक्षित की तरह है, जिसे सात दिनों तक मौत का भय सताता रहा, लेकिन भागवत श्रवण के बाद आठवें दिन उसका यह भय और भ्रम दूर हो गया। हम ज्ञान, धन, पद और सौंदर्य के अभिमान में जीवन भर बोझ ढोते हैं, लेकिन अपनी वास्तविक क्षमता से अनभिज्ञ ही रहते हैं। मनुष्य जन्म की सबसे बड़ी सार्थकता यही है कि हम दूसरों के लिए भी जीना सीखें और इंसानियत का भाव रखें।।