इंदौर । भक्ति करने की कोई उम्र नहीं होती। हमारी भक्ति का श्रीगणेश बचपन में ही हो जाना चाहिए, पचपन में नहीं। वृद्धावस्था में शरीर की इंद्रियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि न तो भगवान के दर्शन ठीक से हो सकते हैं और न ही मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। कोई ग्यारंटी नहीं कि बुढ़ापा आएगा ही। बचपन में डाले गए संस्कारों के बीज से ही श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण होगा, यही हमारे दुर्लभ मनुष्य जीवन का लक्ष्य भी है। राम यदि हमारे रोम-रोम में हैं तो कृष्ण भी इस देश के कण-कण में व्याप्त है। राम और कृष्ण के बिना भारतीय समाज और संस्कृति की कल्पना करना भी संभव नहीं है।
वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वाम भास्करानंद की शिष्या साध्वी कृष्णानंद ने आज ग्राम दूधिया में चैत्र नवरात्रि के उपलक्ष्य में पावर हाउस के पास चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा में संध्या को कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही प्रसंग के अनुसार कृष्ण जन्म हुआ, आलकी की पालकी, जय कन्हैयालाल की और नंद में आनंद भयो जय कन्हैयालाल की जैसे भजनों पर समूचा कथा पांडाल नाच उठा। बच्चों से लेकर बूढ़ों ने भी भजनों पर नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। इसके पूर्व कथा शुभारंभ पर समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग केटी, भैरोलाल नीमड़, कैलाश शर्मा, मोहन पटेल, अशोक भाटिया, बंटू भाई, सुरेश, राजेश एवं रणजीत ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 6.30 बजे तक हो रही है। समापन 8 अप्रैल को होगा।
साध्वी कृष्णानंद ने बालक ध्रुव की भक्ति की व्याख्या करते हुए कहा कि लोग मानते हैं कि भजन और भक्ति करने की उम्र बुढ़ापे में ही शुरू होती है। ऐसे लोग याद रखें कि बुढ़ापा आएगा ही, इसकी कोई ग्यारंटी नहीं होती। फिर, वृद्धावस्था में शरीर के अंग दुर्बल होने लगते हैं। आंखें मोतियाबिंद के कारण और हाथ और पैर कंपकंपाने के कारण भक्ति पूरे मनोयोग से नहीं हो पाती। अनेक तरह के रोग भी घेर लेते हैं। इस स्थिति में भक्ति के संस्कार तो बचपन से ही शुरू हो जाना चाहिए। भक्ति बचपन से होनी चाहिए, पचपन से नहीं। ध्रुव ने पांच वर्ष की उम्र में ही परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया था। सुरुचि और सुनीति, हम सबके जीवन में भी मौजूद है। हम मनमाना आचरण करने में गौरव समझते हैं। शास्त्रों और नीतियों पर चलना पहले भले ही कठिन लगता हो, लेकिन उनका फल मीठा होता है। मनमाना आचरण करेंगे तो कहीं भी सम्मान के पात्र नहीं होंगे। राम और कृष्ण इस देश के आधार स्तंभ है। उनके बिना भारत भूमि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राम हमारे रोम-रोम में हैं तो कृष्ण भी देश के कण-कण में व्याप्त हैं।
अपने आशीर्वचन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने कहा कि यदि हम सबको अपनी दुर्दशा से बचना है तो संगठित होकर रहना होगा। हम सब पहले सनातनी और हिन्दू हैं, उसके बाद ब्राह्मण, क्षत्रिय, गुर्जर, जाट या अन्य कोई। जातियों में बंटकर आपसी प्रतिस्पर्धा में हमने बहुत कुछ खोया है। कश्मीर हो या ईरान हो, हर जगह हिन्दुओं का नरसंहार हुआ है। अब यदि हमें भारत का खोया हुआ गौरव वापस लाना है तो सबसे पहले संगठित होकर रहना होगा। हम सब एक बनें और नेक बने, यही हमारा संकल्प होना चाहिए। खातेगांव से आए राजू मालिया, सौरभ मालिया, दिनेश मंडलोई, कपिल लाठी, गंगाप्रसाद वैष्णव आदि ने प्रारंभ में महामंडलेश्वरजी का स्वागत किया।