जीवन में सफलता के लिए अहंकारी नहीं, संस्कारी बनें

इंदौर । कलियुग का व्यक्ति या तो लोभ से प्रेरित होकर या भय से मंदिर जाता है। भगवान से हमेशा कुछ न कुछ मांगते रहना हमारा स्वभाव है। मंदिर जाना है तो अहंकार को बाहर रखकर जाना होगा। अंहकारी व्यक्ति स्वयं को परमात्मा से भी बड़ा मानने का भ्रम पाले रहता है। जीवन में यदि सफलताएं प्राप्त करना है तो अहंकारी नहीं, संस्कारी बनें। आज का व्यक्ति धन को प्रधानता देने वाला बन गया है, जबकि उसे धर्म को सबसे ऊपर रखना चाहिए। धन की रक्षा हमे करना पड़ती है, लेकिन धर्म हमारी रक्षा करता है।

ये दिव्य और प्रेरक विचार हैं वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद की शिष्या साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने आज समीपस्थ ग्राम दूधिया में पावर हाउस के पास चल रहे भागवत ज्ञान महोत्सव में सती प्रसंग पर व्यक्त किए। कथा में आज शिव-पार्वती विवाह का उत्सव भी समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग केटी, विष्णु बिंदल, श्याम मोमबत्ती, राजेश बंसल पम्प, बंटू भाई, सुरेश, राजेश एवं ग्रामवासियों की सहभागिता में धूमधाम से मनाया गया। कथा 8 अप्रैल तक प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 6.30 बजे तक होगी। मंगलवार को कथा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है, जिस पर हम गुमान कर सकें। हमें जो प्रतिभा मिली है वह ईश्वर से मिली है न कि हमारे पुरुषार्थ से। इसी तरह जो कीर्ति और प्रतिष्ठा हमें मिली है, वह समाज से मिली है। अहंकार का नशा मदिरापान जैसा होता है। नशा करने वाले को छोड़कर सबको पता होता है कि वह नशे में है। अहंकारी व्यक्ति झुककर नहीं चलता। उसे पता ही नहीं चलता कि वह कब पतन के रास्ते पर चल पड़ा है।

महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने भी अपने आशीर्वचन में कहा कि क्षणभर का सत्संग भी मनुष्य का कल्याण कर सकता है। स्वयं भगवान शंकर ने भी कहा है कि एक क्षण का सत्संग भी जीवन की दशा और दिशा बदल देता है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि एक क्षण के सत्संग की तुलना स्वर्ग से भी नहीं की जा सकती और मोक्ष से भी नहीं।