अन्नपूर्णा आश्रम परिसर में दिव्य रामकथा महोत्सव में हुआ भरत मिलाप- सैन्य योद्धाओं का हुआ सम्मान
इंदौर, । हम केवल मूर्ति पूजने और गिड़गिड़ाने वाले सनातनी नहीं हैं। सारा संसार अपनी निष्ठाओं में जीता है, लेकिन हमारे भारत को पता नहीं क्या हो गया है कि न भाषा, न वेश और न तरीका और न ही गौरव। देश में एकता, अखंडता और सौहार्द्र की जिम्मेदारी हमारी माताओं पर ही है। गुड़ी पड़वा पर सारा इंदौर भगवा पताकाओं से सजना चाहिए, ताकि प्राचीन संस्कृति का यह गौरव पूरी दुनिया देख सके। करवाचौथ की पूजा भी सभी सुहागनें किसी एक जगह पर एकत्र होकर मनाएं, तभी संसार देखेगा कि सनातन परंपरा का कितना अदभुत दर्शन यहां दिखाई दे रहा है। राम अदभुत मंत्र और शब्द है। अंतःकरण तभी पवित्र होगा जब राम का नाम हमारे अंतर्मन में बैठ जाएगा। निर्मल चित्त वालों को बाहर की प्रतिकूलताएं व्यथित नहीं करती। राम का नाम जगत के चिंतन की श्रृंखला को तोड़ने वाला अस्त्र है। होश ही पुण्य है और बेहोशी ही पाप है। ईर्ष्या, द्वेष और संदेह से भरे चित्त में कचरे को लेकर कौन जीवित रह सकता है। जो जागृत होकर होश में आ जाएगा, वह जीवन की कृतार्थता को प्राप्त कर लेगा। रामकथा अंतर्मन की गांठों को खोलती है, इसीलिए अपने रोम-रोम में राम को बिठाएं।
ये प्रेरक विचार हैं दीदी मां के नाम से लोकप्रिय साध्वी राष्ट्रसंत ऋतम्भरा देवी के, जो उन्होंने आज अन्नपूर्णा आश्रम ट्रस्ट एवं वात्सल्य सेवा समिति के तत्वावधान में अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में चल रहे श्रीराम कथा महोत्सव के दिव्य आयोजन में उपस्थित जन सैलाब को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि के सानिध्य में आयोजन समिति के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, संजय बांकड़ा, श्याम सिंघल, किशोर गोयल, आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संचालन किशोर गोयल एवं साध्वी सत्यप्रिया ने किया।
कथा के समापन अवसर पर देश के उन जाबांज सैन्य योद्धाओं का सम्मान किया गया, जिन्होंने देश के दुश्मनों से विभिन्न युद्धों में लोहा लिया और देश की अस्मिता को अक्षुण्य बनाए रखा। इन सैन्य योद्धाओं के सम्मान का दृश्य भक्ति भाव के साथ देश प्रेम की भी प्रेरणा देने वाला साबित हुआ जब तिरंगा फहराते हुए इन सैनिकों ने अपने राष्ट्रप्रेम को भी कथा स्थल पर व्यक्त किया। भारत माता की जय के बीच इन योद्धाओँ का आत्मीय सम्मान स्वयं दीदी मां, अध्यक्ष विनोद अग्रवाल और अन्य अतिथियों ने किया।
दीदी मां ने कथा में भगवान के राम के वनगमन और वनवास काल के भरत मिलाप सहित विभिन्न प्रसंगों की प्रभावी व्याख्या करते हुए कहा कि हमारे देश की महिलाएं संस्कार और संस्कृति की संवाहक हैं। हमारे पास शस्त्र भी है और शास्त्र भी। हम प्रेम और श्रद्धा, ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और चिंतन से भरे ग्रंथों के देशवासी हैं। हमारी सभ्यता पूरे संसार में वंदनीय है, लेकिन जहां परंपरा का सम्मान नहीं होता, वहां सब कुछ बिखर जाता है। हम अपने बच्चों के जन्मदिन होटलों में मना रहे हैं, माताओं को छोटे बच्चों से अंग्रेजी में बात करना अच्छा लगता है। विदेशों में बसे हिन्दुओं को देखें तो वे वहां भी मंदिर बनाकर रह रहे हैं और छुट्टी के दिन अपनी साड़ी के पल्लू से मंदिरों में सफाई करते हैं। हमने भगवान की पूजा-अर्चना के लिए भी नौकर रख छोड़े हैं। मंदिरों में देवी-देवताओं के चित्र कचरे के ढेर में पड़े रहते हैं। हमारी श्रद्धा खंडित नहीं सुदृढ़ होना चाहिए। राजा दशरथ के मृत्यु प्रसंग पर उन्होंने कहा कि मृत्यु के समय हृदय में छुपाया हुआ पाप ही सामने आता है। मनुष्य जीवनभर मृत्यु को धन्य बनाने के लिए सुकृत एवं पुण्य कर्म करता है, लेकिन जब वृत्ति बिगड़ती है तो सब नष्ट हो जाता है। भरत मिलाप प्रसंग पर दीदी मां ने कहा कि दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जहां 14 वर्ष तक पादुकाओं ने शासन किया हो। भरत जैसा तपस्वी, स्नेही और रामभक्त और कोई नहीं हो सकता। जैसे सुंदरकांड के पाठ होते हैं, वैसे ही अयोध्या कांड के पाठ भी होना चाहिए ताकि हमारे बच्चों को पता चले कि संबंध और रिश्ते क्या होते हैँ।
साध्वीजी ने कहा कि भारत में सबसे खूबसूरत परिधान साड़ी है। कितनी सुंदर कल्पना है साड़ी में नारी, नारी में साड़ी। अपने आंचल से स्वयं और संतानों का माथा ढंकने, मंदिर के प्रसाद को साड़ी के पल्लू में बांधने, नन्हे बच्चे को साड़ी का पल्लू पकड़कर चलना सिखाने, घर की चाबी को पल्लू में बांधकर रखने जैसे काम तो साड़ी के हैं ही, मंदिर की देहरी को साड़ी के पल्लू से साफ कर उसकी धूल को माथे पर लगाने और बड़ी बुजुर्गों के सामने सिर पर पल्लू ढंकने जैसे काम जब हमारी देवियां करती हैं तो लगता है कि सारे संसार का शील भारत की महिलाओं के माथे पर उतर आया है। देश में सबसे श्रेष्ठ परिधान साड़ी ही हो सकता है। मैं फैशन का विरोध नहीं करती, लेकिन साड़ी की बात सबसे भारी है। मैं दुनियाभर में घूमती हूं। अन्य देशों के लोग अपनी प्रार्थना के समय कितना ही बड़ा काम हो छोड़ देते हैं, लेकिन सनातनी न तो माथे पर कुमकुम-चंदन लगाते हैं और न ही पूजा-अर्चना के नियम का पालन करते हैं। ऊंचा पायजामा पहनकर लोग जब मॉल में जा सकते हैं तो हम धोती पहनकर क्यों नहीं जा सकते। आधुनिक होना चाहिए, लेकिन पाश्चात्य नहीं होना चाहिए। हमारे सिख भाईयों से सीखना चाहिए कि वे अपने केशों से भी गुरुद्वारों की सफाई कर लेते हैं।
दीदी मां ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म के संदंर्भ में कहा कि जिन्होंने नहीं देखी हो, वे जरूर देखें। मुझे देश के बेटियों से बहुत आशाएं हैं, लेकिन बंगाल और केरल में अभी भी तांडव चल रहा है। हम इस सत्य को देखकर भी मौन क्यों है। शिवाजी के चरित्र को देखें जिन्होंने अपनी मां के कहने पर सिंहगढ़ के किले पर फिरंगियों का ध्वज हटाकर भगवा ध्वज फहरा दिया। हमने कभी किसी अन्य धर्म स्थल पर एक पत्थर नहीं फेंका, लेकिन कश्मीर में जैसे पाप हुआ है, वैसा संसार में शायद ही कहीं हुआ हो। हम सभ्यता और संस्कृति के पक्षधर हैं। हमने कभी किसी पर अत्याचार नहीं किए।