जिस दिन हमारी संतानों में मानस, गीता और भागवत के संदेश उतर जाएंगे, भारत भूमि पर राम राज्य भी उतर आएगा

इंदौर, । बांटने में जो आनंद है, वह बंटोरने में नहीं मिलता। जो बंटोरा जाता है वह विषाद और जो बांटा जाता है वह प्रसाद होता है। जो भीतर से सूना, कंगला और खाली होता है वह बाहर से बहुत संग्रह करने वाला होता है, लेकिन जिसका मन भीतर से भरा होता है वह बाहर बांटने वाला होता है। आनंद का विलोम या विपरीत कोई शब्द नहीं है। सफलता उनके जीवन में आती है, जिनकी आंखों में करुणा, हाथों में सेवा, चराचर में आराध्य के दर्शन के भाव होते हैं। चित्त के भावों को जब शब्द नहीं मिलते, तब वे आंखों से व्यक्त होते हैं। हम सब कलियुग के जीवों को भी भगवान राम ने अपने नाम का आश्रय दिया है। रामचरित मानस को हम जिस दिन आचरण में उतार लेंगे और हमारी संतानों के मस्तिष्क में मानस, गीता और भागवत जैसे ग्रंथों के दिव्य संदेश उतर जाएंगे, उस दिन भारत भूमि पर राम राज्य भी उतर आएगा।

प्रख्यात साध्वी और दीदी मां के नाम से लोकप्रिय ऋतम्भरा देवी ने आज अन्नपूर्णा आश्रम परिसर में चल रहे राम कथा महोत्सव में उपस्थित जन सैलाब को संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक एवं ओजस्वी विचार रखे। कथा में आज शाम राम-जानकी विवाह का उत्सव धनुष य़ज्ञ के साथ धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही राम-जानकी विवाह का प्रसंग आया, समूचा पांडाल नाच उठा। हर उम्र के भक्तों ने पुष्प वर्षा कर राम-जानकी बने युगल को फूलों से सराबोर कर दिया। कथा शुभारंभ के पहले आयोजन समिति की ओर से महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि के सानिध्य में अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, श्याम सिंघल, किशोर गोयल, दिनेश मित्तल, कवि मुकेश मोलवा, मनीष बिसानी, अवधेश यादव, मनोज अन्नपूर्णा, मनीष जाखेटिया, नरेश काला, राजेश मित्तल, गोविंद मंत्री, राकेश दांगी आदि ने दीदी मां का स्वागत किया। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन, परम शक्तिपीठ ओंकारेश्वर की साध्वी साक्षी दीदी, अखंड परमधाम आश्रम खंडवा रोड की साध्वी चैतन्य सिंधु, बजरंग दल के सोहन सौलंकी, पूर्व महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा, विहिप के सोहन विश्वकर्मा एवं नंददास दंडोतिया, एकलव्यसिंह गौड़, रमेश धनोतिया, रामदयाल फरक्या आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संचालन संजय बांकड़ा ने किया। अन्नपूर्णा के निर्माणाधीन मंदिर के लिए ब्रह्मलीन प्रकाशचंद्र सिंघल के परिजनों ने 5 लाख रु., मुरारी शाह ने 5 लाख रु. पवन कुमार घमंडी ने एक लाख रु. दान देने की घोषणा की। आज कथा श्रवण करने वालो में अग्रवाल समाज केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष गोविंद सिंघल, पूर्व अध्यक्ष कुलभूषण मित्तल, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता आदि भी शामिल थे।

दीदी मां ने कहा कि किसी भूमि को महान बनाते हैं वहां के नागरिक, जो करुणा और सोहार्द्र से भरे होते हैं। दुनिया के सभी देशों में भारत की महिमा सबसे अनूठी है। हालांकि समस्त ब्रह्मांड के निर्माता प्रभु ही हैं, लेकिन जगत भारत भूमि ऐसी है जहां भगवान अवतार लेते हैं। यह ईश्वरीय सत्ता की अनुकंपा है। सहानुभूति से अच्छा गुण होता है समानता। दया अच्छा गुण तो है लेकिन बार-बार किसी को दया का पात्र बना देना ठीक नहीं है। यदि मन में अतृप्तियां और शिकायतें होंगी तो उसका उसर हमारे व्यक्तित्व को विचलित कर देता है। हम अपने स्वभाव से हट जाएंगे तो यह विचलन स्वाभाविक है। स्वभाव में प्रेम, करूणा, स्नेह के भाव होते हैं पर कुछ क्षणों का क्रोध ब्रेन हेमरेज ला देगा। धर्म से दृष्टि प्राप्त कर लेंगे तो हमारा व्यवहार बहुत सुंदर बन जाएगा। आंखें तालाब नहीं है, फिर भी भर जाती हैं। बुद्धि लोहा नहीं है, फिर भी जंग खा जाती है। होंठ कपड़ा नहीं है फिर भी सिल जाते हैं। कुदरत प्रेमिका नहीं है, फिर भी रूठ जाती है। इंसान मौसम नहीं है फिर भी बदल जाता है, चित्त के भावों को जब शब्द नहीं मिलते तब उनकी अभिव्यक्ति आंखों से होती है।

उन्होंने कहा कि नामकरण संस्कार हमारे देश का अदभुत संस्कार है। आजकल तो गुरूजी के बजाय गूगल गुरु से नाम तलाशने का चलन बढ़ गया है। कई लोग तो घर के सभी सदस्यों के नाम एक जैसे ही रखने लगे हैं, गुरू से पूछते ही नहीं। नाम का व्यक्ति पर कुछ न कुछ प्रभाव तो होता ही है। आभूषण में लगा स्वर्ण पहले भी स्वर्ण था, आज भी स्वर्ण है और कल भी स्वर्ण रहेगा, लेकिन आभूषण का हुलिया बदल जाएगा। हम लोग हर काम को कल पर टालने वाले बनते जा रहे हैं। याद रखें सुबह खिला हुआ फूल शाम को मुरझा जाता है। जिन्हें आज का पता नहीं, वे कल की बात करते हैं। भाग्य की फसल पुरुषार्थ की जमीन पर ही पैदा होगी। जिसने वक्त की कद्र नहीं की, वक्त भी उसकी कद्र नहीं करता। हमारे बुजुर्ग चार पैसा कमाने की बात करते थे। वे चाहते थे कि इन चार में से एक पैसा भोजन के लिए, दूसरा कर्ज उतारने के लिए, तीसरा कर्ज लेने के लिए और चौथा कुए में फेंकने के लिए। इसका मतलब यह हुआ कि पहला पैसा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए, दूसरा पैसा माता-पिता और अन्य लोगें से लिए गए कर्ज को उतारने के लिए, तीसरा पैसा अपने बच्चों को शिक्षित और संस्कारित बनाने के लिए तथा चौथा पैसा दान-पुण्य और सेवा के कार्यों के में खर्च करने के लिए कमाना चाहिए। अपने जीवन काल में हम शुभ कर्मों और सदकर्मों के सेतु बनाकर ही पार लग सकते हैं। हम अपने पति, पत्नी, मित्र, प्रेमी और प्रेमिका को स्वयं चुनते हैं, लेकिन माता-पिता को चुनने का अधिकार हमारा नहीं है। हम इस जन्म में जैसे कर्म करेंगे, अगले जन्म में हमें सदकर्मों की पूंजी से ही माता-पिता मिलेंगे। यश हो या धन, अधिक होंगे तो जहर बन जाएंगे। इज्जत और प्यार मांगने वाला सबसे बड़ा भिखारी होता है, लेकिन रोटी और वस्त्र मांगने वाला भिखारी नहीं होता। हमारे देश की माताओँ को चाहिए कि वे अपनी संतानों को गुरुकुल पद्धति से संस्कार और शिक्षा दें, जिस दिन रामचरित मानस हमारे आचरण में उतर जाएगी, पूरे देश में राम राज्य भी उतर आएगा। हमारे बच्चे तुलसी के पौधे हैं, जो शराब से नहीं, संस्कारों के गंगाजल से सींचे जाना चाहिए।

कार सेवकों का सम्मान- कथा के समापन अवसर पर इंदौर से अयोध्या पहुंचे उन कार सेवकों का सम्मान भी किया गया, जिन्होंने 6 दिसम्बर 1992 को कारसेवा की थी। आयोजन समिति के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल एवं अन्य पदाधिकारियों ने कारसेवकों का सम्मान किया। सभी कार सेवकों ने दीदी मां का स्वागत कर उनसे आशीर्वाद भी प्राप्त किए। सम्मान समारोह का संचालन कवि मुकेश मोलवा ने किया।