धर्म की हानि अधर्मियों से कम, धर्मात्मा होने का दंभ भरने वालों से  ज्यादा हो रही – ऋतंभराजी

अन्नपूर्णा आश्रम के आंगन में धूमधाम से मना राम जन्मोत्सव, समूचा पांडाल नाच उठा

इंदौर, । भगवती अन्नपूर्णा के आंगन में आज शाम साध्वी ऋतम्भरा के श्रीमुख से चल रहे दिव्य रामकथा महोत्सव में जैसे ही प्रभु राम का जन्म प्रसंग आया, समूचा पांडाल नाच उठा। बच्चों से लेकर बुजुर्गों ने भी राम जन्म के उत्सव को नाचते-गाते हुए आत्मसात किया। महिलाओं ने फूलों की टोकनी को मास्तक पर रखकर नवजात राम पर सांकेतिक पुष्प वर्षा की, वहीं युवाओं ने भी अलग-अलग समूहों में नृत्य करते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। साध्वी ऋतम्भरा ने इस अवसर पर कहा कि भगवान को धरती पर आना होता है तो उन्हें भी किसी कोख की जरुरत पड़ती है। भारत नारी मुक्ति और नारी शक्ति का देश है। राम और कृष्ण तभी अवतार लेंगे, जब  कौशल्या-दशरथ और देवकी-वसुदेव जैसे माता-पिता होंगे। बिडंबना है कि आज के बच्चे अपने माता-पिता को भी अपमानित और प्रताड़ित कर रहे हैं। धर्म की हानि दुष्टों से कम और धर्मात्मा होने का दंभ भरने वालों से ज्यादा हो रही है।

        अन्नपूर्णा मंदिर के परिसर में चल रहे श्रीराम कथा महोत्सव में दिनोंदिन भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। कथा शुभारंभ के पूर्व आयोजन समिति के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, प्रमुख संयोजक रूपकिशोर माहेश्वरी, कोषाध्यक्ष श्याम सिंघल, प्रमुख समन्वयक किशोर गोयल,  महंत गिरधारीलाल गर्ग, पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। इस अवसर पर आज के यजमान सत्यनारायण शर्मा दूधवाले, अन्नपूर्णा आश्रम न्यासी मंडल के गोपालदास मित्तल, जगदीश भाई पटेल, सुनील गुप्ता, टीकमचंद गर्ग, वरजिंदरसिंह छाबड़ा, दिनेश मित्तल आदि ने भी दीदी मां का स्वागत किया। कथा समापन अवसर पर अंचल के भील एवं आदिवासी जनजाति समाज के बंधुओं का स्वागत भी किया गया।  संचालन महामंत्री संजय बांकड़ा ने किया। कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से सांय 6 बजे तक हो रही है। कथा स्थल पर रियायती मूल्य पर स्वल्पाहार एवं भोजन सहित अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है।

आज शाम राम जन्मोत्सव के प्रसंग पर साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि संसार का कोई भी अनुष्ठान बिना धर्मपत्नी के परिपूर्ण नहीं होता। राम सद चित्त आनंद के प्रतीक हैं। पति-पत्नी के बीच समादर का भाव होना चाहिए। लोग कहते हैं कि स्त्री की अक्ल एड़ी या चोटी में होती है। स्त्री को अवगुणों की खान भी कहा गया है। ऐसी बातों ने भारत की बेटियों को अपमानित किया है। वह हीनभावना से ग्रस्त संतानों की मानता बनती है। याद रखें कि माता नहीं होती तो हमारा भी जन्म नहीं होता। माता-पिता को शब्दों से अपमानित करने की संस्कृति इस देश में कभी नहीं रही। हीन भावना से ग्रस्त महिलाएं पुरुष की कार्बन कॉपी बनने का प्रयास करती हैं। यही कारण है कि बेटियों को कोख में मारने की प्रवृत्ति बढ़ी। शूरवीर संतानों के कारण ही मां की पहचान बनती है। किसी की माता हो जाना श्रेष्ठ पद है। वे जब माता बनती हैं तो और आदरणीय हो जाती हैं। सनातन धर्म ने नारी को बहुत बड़ा सम्मान दिया है। आज नारी को जड़ता का त्याग कर जड़ से जुड़ने की जरुरत है। याद रखें कि रामकथा सुनने, किसी तीर्थ की यात्रा करने, मंदिर के दर्शन करने इन सब पुण्य कार्यों की प्रेरणा महिला से ही मिलती है। धर्म की हानि अधर्मियों से कम, धर्मात्मा होने का दंभ भरने वालों से ज्यादा हो रही है। धर्म का पाखंड करने वाले मंदिर जाकर भी अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लाते। खुद को मंदिर जाते हैं, लेकिन घर को नर्क बनाकर रख देते हैं।  कर्तव्य के प्रति निष्ठा का भाव होना चाहिए। ऐसे धर्मात्माओं के पास अपने पिता के पास बैठने का समय नहीं है। आजकल पिता-पुत्र के बीच आपस में बहुत कम संवाद होते हैं और मां बीच में सेंडविच बन जाती है। सारे संसार को जीतने वाले संतानों के सामने पराजित हो जाते हैं। कोरोना काल में मनुष्य की कृति ने प्रकृति का सत्यानाश किया है।

        दीदी मां ने इंदौर के सफाई प्रेम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहा कि इंदौर वाले तो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए हैं। सचमुच बड़ा गौरव होता है कि इंदौर ने पांच बार देश में प्रथम जगह बनाई और अब छक्का मारने की तैयारी है। यहां चारों ओर इतनी खूबसूरती है, बहुत प्यारा नगर है यह, यहां के लोगों का आचरण भी जिम्मेदारी भरा है। इंदौर के लोगों ने मां भारती को गौरवान्वित किया है, यह बहुत खुशी की बात है। मेरी करतल ध्वनि है।