आज समाज को अपना नजरिया बदलने की जरुरत – ऋतम्भराजी

आज समाज को अपना नजरिया बदलने की जरुरत – ऋतम्भराजी

इंदौर,  बुद्धि तो बहुत है, लेकिन यदि सदगुण नहीं हैं तो ऐसी बुद्धि व्यक्ति को राक्षस बना देती है। वाणी तो सबके पास है, लेकिन चित में पवित्रता नहीं है तो वही वाणी गाली भी बन जाती है। शब्द मारक भी है, तारक भी। हमें प्राप्तियां देखने की नहीं, बल्कि जो छूट गया है उसे देखने की आदत है। हम कांटे देखते हैं, पुष्प नहीं। हमारी दृष्टि वहां जाती है, जहां अनुकूलता नहीं है। आज जरुरत है समाज को अपना नजरिया बदलने की। नजर बदलेगी तो नजारे भी बदल जाएंगे। आज दुर्भाग्य की बात है कि अनेक ऐसे विज्ञापन भी दिखाए जा रहे हैं जिनमें माताओं की पवित्रता और गरिमा को लांछित किया जा रहा है। उससे भी ज्यादा गंभीर मुद्दा यह है कि ऐसे विज्ञापनों में सिंदूर लगाने वाली महिलाओं को ही क्यों, और बुर्का पहनने वाली महिलाओं को क्यों नहीं दिखाया जाता है। मेरे भारत की बेटियां आज जमीन से लेकर अंतरिक्ष तक और समुद्र से लेकर आकाश तक अपनी प्रतिभा का परचम फहरा रही हैं। मुझे जवाब चाहिए कि किसी साध्वी को कथा में यह जिक्र क्यों करना पड़ रहा है। यह हमारे स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ है। देवियों को चाहिए कि वे ऐसे विज्ञापनों से हमारे सम्मान पर होने वाले आघात को रोकने का हरसंभव प्रयास करें। हिन्दू स्त्री विज्ञापन की वस्तु नहीं होना चाहिए। हमारी माताओं में अपने वात्सल्य से त्रिदेवों को भी शिशु बनाने का सामर्थ्य है। सत्य का पक्षधर बनना भी जरूरी है। हम धर्मभीरू नहीं, धर्मवीर और धर्मयोद्धा बने।

          ये प्रेरक और ओजस्वी विचार हैं दीदी मां के नाम से लोकप्रिय राष्ट्रसंत साध्वी ऋतम्भरा देवी के, जो उन्होंने आज अन्नपूर्णा आश्रम परिसर में चल रहे श्रीराम कथा महोत्सव के दूसरे दिन शिव-पार्वती विवाह प्रसंग के दौरान विभिन्न संदर्भों में व्यक्त किए। कथा में आज शिव विवाह प्रसंग का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया और शिवजी की बारात भी पूरे लाव-लश्कर के साथ निकाली गई। इस दौरान सैकड़ों भक्तों ने नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। प्रारंभ में अन्नपूर्णा आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरि के सानिध्य में आयोजन समिति के अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, महामंत्री संजय बांकड़ा, प्रमुख संयोजक रूपकुमार माहेश्वरी एवं कवि मुकेश मोलवा, कोषाध्यक्ष श्याम सिंघल, प्रमुख समन्वयक किशोर गोयल, समाजसेवी पी.डी. अग्रवाल कांट्रेक्टर, विहिप के उपाध्यक्ष हुकमचंद सांवला, गिरधारीलाल गर्ग, टीकमचंद गर्ग, राजेश गर्ग केटी, गोलू शुक्ला आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। विधायक आकाश विजयवर्गीय ने भी कथा श्रवण की और भजनों पर नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में आसपास के तीर्थस्थलों के साधु-संत भी आए हुए हैं। सैकड़ों भक्तों ने कथा स्थल पर बनाए गए मानस मंडप की परिक्रमा भी की। भक्तों की सुविधा के लिए रियायती मूल्य पर स्वल्पाहार एवं भोजन की व्यवस्था तो है ही, शीतल पेयजल, साफ-सफाई, सुरक्षा, प्राथमिक चिकित्सा निःशुल्क वाहन पार्किंग, सुविधा घर आदि के समुचित प्रबंध भी किए गए हैं।

साध्वी ऋतम्भराजी ने ‘श्री राम कृपालु भजमन’ भजन के साथ कथा का शुभारंभ करते हुए ने कहा कि पानी की एक बूंद सीप में चली जाती है तो मोती बन जाती है। गहने और सम्पत्ति से ज्यादा महत्वपूर्ण संग होता है। मित्रों को चुनते समय सतर्क रहें। संग, कुसंग एवं सत्संग-तीनों ही जीवन को बदलत देते हैं। कृष्ण, नारायण और श्री हरि के नाम की कैंची सारे बंधनों को काट देती है। जीवन में पलायन करने से काम नहीं चलेगा। व्यक्ति हिमालय तो चला जाता है पर आंतरिक चित्त की व्यथाएं भी साथ ले जाता है। वहां भी जगत भीतर फंसा बैठा रहता है। रूपांतरण तब संभव होता है, जब श्रेष्ठ की प्राप्ति होती है। कोहिनूर का हीरा हथेली पर धर देंगे तो हाथ का कंकर-पत्थऱ कब छूट जाएगा, पता भी नहीं चलेगा। पके हुए नारियल को उसकी खोल से छुड़ाना नहीं पड़ता, खुद छूट जाता है, लेकिन कच्चे नारियल को छुड़ाने के लिए बड़ी मशक्कत करना होती है। हमारी प्यास बहुत गहरी है। जन्मों-जन्में से हम प्यासे हैं। सब कुछ पाने के बाद भी लगता है बहुत कुछ बाकी है। ओस का पानी हमारी प्यास नहीं बुझा सकता। सांसारिक प्रेम की प्यास कभी नहीं बुझती। गोस्वामी तुलसीदास मुर्दे को नाव और सर्प को रस्सी बनाकर अपनी पत्नी से मिलने पहुंच गए थे। यदि पत्नी रत्ना ने उन्हें बाहों में बांध लिया होता तो कहानी खत्म हो जाती, तुलसी की लेखनी से रामकथा रूपी महासागर प्रकट नहीं हो पाता।

          दीदी मां ने कहा कि रामचरित मानस धर्म की ध्वजा की संवाहक है। स्त्री की महिमा बांध लेने में नहीं, मुक्त करने में है। क्षुद्र लालसाओं से पति को मुक्त कर देना चाहिए। सीमा पर खड़ा सैनिक किसी मां का लाल, पत्नी का सिंदूर और बहन की राखी है तो इस शूरता के पीछे उनका बलिदान और त्याग है। माताओं की बहुत महिमा और गरिमा है। मुझे शिकायत है उन विज्ञापनों से, जिनमें डेढ़ सौ रुपए के कच्छे की मार्केटिंग के लिए सिंदूर लगी महिलाओं को लांछित और अपमानित किया जा रहा है।ऐसे विज्ञापनों में केवल सिंदूर लगी महिलाएं ही क्यों, बुर्केवाली महिलाएं क्यों नहीं दिखाते। हमारी मातृशक्ति की महिमा और गरिमा असीम है। मुझे जवाब चाहिए कि किसी साध्वी को कथा में यह जिक्र क्यों करना पड़ रहा है। यह हमारी मातृशक्ति के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ है। भारत को भारत बनाकर रखें। देवियों को चाहिए कि वे ऐसे विज्ञापनों से हमारे सम्मान पर लगने वाली चोंट का हरसंभव प्रतिकार करें। हिन्दू स्त्री विज्ञापन की वस्तु नहीं होना चाहिए। हम गलत चीज पर चुप क्यों है। सत्य का पक्षधर बनना भी जरूरी है। हमें धर्मभीरू नहीं धर्मवीर और धर्मयोद्धा बनना होगा।