सत्संग मनोरंजन के लिए नहीं, मनोमंथन के लिए

 

इंदौर, . भगवान की कथा हमेशा श्रेष्ठ और प्रेरक ही होती है, लेकिन सच्चा आनंद उसे ही मिलेगा जिसके मन में श्रद्धा और विश्वास हो। हम अपने आंगन को मेहमानों के लिए साफ-सुथरा रखते हैं, उसी तरह भगवान भी वहीं निवास करते हैं, जिनके मन-मंदिर में शुद्धता और निर्मलता होती है। विडंबना है कि हमारी नई पीढ़ी तो ठीक, बुजुर्ग लोग भी वेदों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते, जबकि वेदों में मानव मात्र के कल्याण के लिए अनेक मंत्र भरे पड़े हैं। भागवत इन वेदों का ही सार है। लोग सत्संग में भी मनोरंजन को ढूंढते हैं, जबकि सत्संग मनोमंथन और मनोभंजन के लिए होता है।

वृंदावन धाम से आई साध्वी कृष्णानंद ने आज अग्रवाल संगठन नवलखा क्षेत्र की मेजबानी में 25 कालोनियों की भागीदारी में आनंद नगर स्थित आनंद मंगल परिसर में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में नारद चरित्र, कुंती स्तुति एवं शुकदेव आगमन जैसे प्रसंगों की व्याख्या करते हुए उक्त बातें कही। कथा शुभारंभ के पूर्व राजेन्द्र समाधान, राजेश सिंघल, संजय अग्रवाल पशुपति, विकास मित्तल, विपिन गोयल, अनिता गुप्ता, राकेश अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, संतोष मित्तल, आशीष अग्रवाल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। महिला मंडल की ओर से श्रीमती श्यामादेवी अग्रवाल, सीमा बंसल, अनुपमा बद्रुका, अनिता अग्रवाल आदि ने साध्वीजी की अगवानी की। संध्या को आरती में समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम मोमबत्ती, मृदुल अग्रवाल, सुनील अग्रवाल, महेश अग्रवाल, अखिलेश गोयल सहित सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। कथा में मनोहारी भजनों के दौरान अनेक बार महिलाओं ने नाचते-गाते हुए अपनी खुशियां व्यक्त की। संयोजक राजेन्द्र समाधान एवं अशोक मित्तल ने बताया कि कथा स्थल पर भक्तों की सुविधा के लिए निःशुल्क वाहन पार्किंग सहित समुचित प्रबंध किए गए हैं। शुक्रवार 4 मार्च को कथा में सती चरित्र एवं शिव विवाह के प्रसंग होंगे। कथा 8 मार्च तक प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 6 बजे तक होगी।

साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि हम नर्क मिलने के डर से पाप कर्म नहीं करें और चोर पुलिस के डर से चोरी नहीं करे तो यह सज्जनता का प्रमाण नहीं हो सकता। पाप कर्मों से निवृत्ति का भाव हमेशा रहना चाहिए। भारत भूमि संतों और ऋषियों की तपोभूमि रही है। जितने शास्त्र और धर्मग्रंथ हमारे देश में है, उतने कहीं और नहीं होंगे। वेद हमारे सनातन धर्म की जड़ें और मूलाधार हैं, लेकिन दुख की बात है कि अधिकांश लोग, विशेषकर हमारी नई पीढ़ी इन वेदों के बारे में ज्यादा नहीं जानती, जबकि दूसरे धर्मों के लोग अपने-अपने धर्मग्रंथों के बारे में पूरी दिलचस्पी रखते हैं। वेदों की रचना के बाद भी वेदव्यास को लगा कि कलियुग में मानव मात्र के कल्याण के लिए भागवत जैसा ग्रंथ सृजित होना चाहिए। हमारे धर्म और संस्कृति में कोई कमी नहीं हैं, कमी है तो धर्म का पालन करने वालों में है। मन की एकाग्रता और भागवत प्रेम में कमी के कारण ही आज का मनुष्य विचलित और अशांत बना हुआ है। ज्ञान और वैराग्य की चर्चा आती है तो सुनने वालों को नींद आने लगती है। हम सुन तो लेते हैं पर आचरण में नहीं उतारते। आजकल तो भगवान की कथाओं का रूप भी बदल गया है। लोग सत्संग में भी मनोरंजन को ढूंढते हैं, जबकि सत्संग मनोमंथन और मनोभंजन के लिए होता है। सत्संग और भगवान की कथाएं मन को विशुद्ध और पवित्र बनाने के लिए होती है।