शिव ईश्वर का सत्यम-शिवम-सुंदरम रूप है। शिव वो है जो सहजता एवं सरलता से सुशोभित होते है। वे ऐसे ध्यानमग्न योगीश्वर है जो नीलकंठ बनकर अपने भीतर विष को ग्रहण किए हुए है और भुजंगधारी बनकर विष को बाहर सजाए हुए है। इसके विपरीत भी उमापति की एकाग्रता, शांतचित्त रूप और ध्यान में कहीं भी न्यूनता परिलक्षित नहीं होती। वैभव देने वाले भोलेनाथ स्वयं वैरागी रूप में विराजते है। सृष्टि के कल्याण के लिए शांत भाव और सहजता से विषपान को स्वीकार करते है। शिवतत्व ही सृष्टि का संहारक है। विषपान के पश्चात भी सहर्ष ध्यान साधना में लगे रहना ही शिव की उत्कृष्टता है। जीवन का भी यहीं सत्य है। जीवन तो सुख-दु:ख का विधान ही है। देवाधिदेव महादेव हमें ध्यान में मग्न होकर एकाग्र होने की प्रेरणा देते है। देवाधिदेव महादेव को कोई भी प्रसन्न कर सकता है। शिव की भक्ति तो सदैव ही फलीफूत होती है। पुराणों में उल्लेखित है की मात्र शिव ही एक ऐसे भगवान है जो शीघ्र प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान दे सकते है। उनकी भक्ति तो सांसरिक आडंबर से दूर रहकर विष और कठिन परिस्थितियों के बीच भी स्वयं को शांत और तल्लीन रहने की प्रेरणा देती है। उनकी भक्ति से तो हर मनोकामना की पूर्ति की जा सकती है।
शास्त्रों में उल्लेखित है की शिवरात्रि मनुष्य को पापों और भय से मुक्ति दिलाने वाला परम पावन व्रत है। शिवपुराण के अनुसार तो इसको करने से पापों का क्षय और पुण्यों का उदय होने लगता है। स्कन्द पुराण के अनुसार शिवरात्रि के व्रत, पूजन, जागरण एवं उपवास के प्रभाव से मनुष्य जन्म-मृत्यु के चक्र से दूर हो जाता है। महाशिवरात्री कल्याणमय रात्री मानी जाती है। सभी देवगण भी इस महान रात्रि को महादेव की स्तुति करते है। इस दिन किया गया पूजन, अर्चन, उपवास और जागरण कई यज्ञों के द्वारा अर्जित किए पुण्य से भी अधिक फलदायी होता है। सत्यम-शिवम-सुंदरम से सुशोभित है शिव। शिव अर्थात कल्याण के जनक। तो क्यों न हम इस पावन कल्याणकारी रात्रि में अपने बच्चों को भी शिवतत्व की कृपा से लाभान्वित करें। शिव की कृपा तो उत्तम स्वास्थ्य और हर मनोकामना को सिद्ध करने वाली हो सकती है। शिव की आराधना से बच्चों से एकाग्रता भी बढ़ती है। शिव तो सांसरिक वस्तुओं को तुच्छ मानते है इसलिए वे इनसे विरक्त होकर अन्तर्मन में झाँकने और स्वयं को जानने पर बल देते है। स्वयं के भीतर झाँकना ही शायद हमें कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। जीवन का मूल ध्येय आत्मिक शांति की खोज में ही निहित है।
शिव पूजन न किसी परिस्थिति, वस्तु और व्यक्ति को बंधन में बाँधता है। शिवमानस पूजा में तो मन के द्वारा ही शिव के पूजन अर्चन से शिव की कृपा प्राप्त करने को बताया गया है। महादेव का पूजन किसी भी वस्तु पर केन्द्रित नहीं है। वह केवल भावना प्रधान है। शिव तो मिट्टी के शिवलिंग की पूजा से भी प्रसन्न हो जाते है। जल हो तो वह अर्पित कर दीजिए। यत्र-तत्र उगने वाला आँकड़ा या धतूरा ही अर्पित कर दीजिए। दुग्ध धार अर्पित कर दीजिए। शिव पूजन तो सभी से स्वीकार्य है। यदि आप समर्थ है तो नियम से पूजन अर्चन कीजिए। पुष्प, पंचामृत, बिल्वपत्र अर्पित करके उपवास और जागरण कीजिए, वरना मन ही मन भावों की माला से शिव को ध्याइए। शिव रात्रि में मंत्र जप विशेष फलदायी होता है। यही ध्यान पूजा यदि बच्चे करें तो अनेक व्याधियों और अकस्मात आने वाली समस्याओं से मुक्त हो सकते है। मनुष्ययोनि का मूल उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति में ही निहित है तो क्यों न हम अपने बच्चों को उस महान उद्देश्य की ओर प्रेरित होने में छोटे-छोटे कदम बढ़वाएँ और उन्हें आध्यात्मिक पूँजी से समृद्ध करें।
*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*