महापुरुषों के बताए मार्ग पर चलकर ही हमें जीवन का सही लक्ष्य प्राप्त होगा

इंदौर, । महापुरुष जहां भी अवतार लेकर अपनी कर्म साधना करते हैं, वह गांव, गली, और शहर भी कृतार्थ हो जाते हैं। महापुरुष वही हो सकते हैं, जिन्हें कुछ भी नहीं चाहिए। हम जब भी मंदिर जाते हैं, भगवान से हमेशा कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं। मांगते भी ऐसा हैं कि पूरे गांव का ही हमें चाहिए। दूसरी ओर संत और महापुरुष कभी किसी चीज की कामना नहीं करते। महापुरुषों के बताए मार्ग पर चलकर ही हमें अपने जीवन का सही लक्ष्य प्राप्त होगा। स्वामी रामचरण महाराज ऐसे ही समर्पित, त्यागी और सेवाभावी भजनानंदी महापुरुष थे।

ये प्रेरक विचार हैं  रामस्नेही संप्रदाय के बालयोगी संत तोताराम महाराज के, जो उन्होंने आज छत्रीबाग रामद्वारा पर अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के मूलाचार्य स्वामी रामचरण महाराज के 302वें जन्म जयंती महोत्सव के समापन प्रसंग पर उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। रामद्वारा परिवार के रामसहाय विजयवर्गीय ने बताया कि इस अवसर पर महाराजश्री के प्रवचनों के बाद चित्र पूजन,  वाणीजी के ग्रंथ पूजन, छंद-भुजंगी, गुरु महिमा नाम प्रताप, जय-जय जयवंती, लावणी एवं सामूहिक आरती जैसे विभिन्न आयोजन भी हुए। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने रामद्वारा परिसर में स्वामी रामचरण महाराज की पालकी यात्रा पूरे जोश और उत्साह के साथ निकाली। पुरुषों ने गुलाबी साफा पहनकर पालकी की अगवानी की। इस अवसर पर समाजसेवी गिरधर नेमा, रामनिवास मोढ़, सुरेश काकाणी, श्याम भूतड़ा, वासुदेव सोलंकी एवं रामकृष्ण सेठिया सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। इस दौरान रामद्वारा परिसर प्रभु श्रीराम एवं स्वामी रामचरण महाराज के जयघोष से गूंजता रहा। अनेक श्रद्धालुओं ने पालकी का पूजन कर स्वामीजी के प्रति पुष्पांजलि समर्पित की। महोत्सव का शुभारंभ स्वामीजी के चित्र पूजन से हुआ।

संत बालयोगी तोताराम महाराज ने कहा कि स्वामी रामचरण महाराज ऐसे तपोनिष्ट संत थे, जिन्होंने श्मशान में जाकर भी भजन संकीर्तन किए ताकि लोगों का डर दूर हो सके। उन्होंने जीवन भर कभी किसी से कुछ नहीं मांगा। उनका जीवन निष्काम योगी जैसा था। हम मंदिर जाकर हर दिन भगवान से कुछ न कुछ मांगते ही रहते हैं, लेकिन स्वामी रामचरण महाराज ने आनंद और मौज को ही अपनी सबसे बड़ी पूंजी मानकर जीवन भर लोगों को धर्म और संस्कृति के साथ राम नाम से जोड़ा। उनका निष्काम जीवन त्याग और संयम का अनूठा उदाहरण होता है। हमारे जीवन में तृष्णा कभी खत्म नहीं होती, बल्कि जैसे-जैसे मांग की पूर्ति होती जाती है, वैसे-वैसे तृष्णा भी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जाती है। स्वामी रामचरण महाराज ने जीवन में हमेशा समाज और जरुरतमंद लोगों को दिया ही दिया, लिया कुछ भी नहीं। ऐसे निस्पृह संत के जन्म जयंती महोत्सव पर हम सबको यही प्रार्थना करना चाहिए कि हमारा जीवन हमेशा मंगलमय और कामनाओं से रहित बना रहे।