स्टेटस की महिमा —- डॉ. रीना रवि मालपानी

व्यंग्य

कृष्णव ने स्टेटस की महिमा पर पूरा शोध किया। जब कृष्णव अपनी उन्नति के सोपानों की ओर अग्रसर था, तो अक्सर  अपनी उपलब्धियों को शेयर किया करता था, पर कई तुनकमिजाजी ईर्ष्यावश कहा करते थे की भला कौन देखता है इतने स्टेटस। अचंभा तो तब हुआ जो यह वाक्य निर्देशित करते थे वही सारे स्टेटस पूर्ण विश्लेषण के साथ देखा करते थे। कृष्णव ने एक और बात जो व्यावहारिक ज्ञान से जानी, जो लोग स्टेटस शेयर किया करते है वह मन के बड़े साफ-सुथरे लोग रहते है, उन्हें कुछ छुपाना नहीं आता। अपनी खुशियों को भी सभी के साथ सांझा किया। कुछ लोग कभी भी स्टेटस नहीं डालते, यानि वे नहीं चाहते की उनके बारे में कुछ भी उनके मित्रों या शुभचिंतकों को पता चले। कुछ लोग सुविचार स्टेटस में शेयर करते है। कृष्णव के अनुसार इन लोगों के सुविचार जीवन में कुछ नए आयामों को जोड़ने में भी सहायक होते है।
कृष्णव की कथनी अनुसार तो कई लोग अपना गुस्सा भी स्टेटस के माध्यम से जाहीर कर देते है, पर यह लोग दिल के सच्चे लोग होते है। मन में कोई बोझ नहीं रखते। जैसी भावना है, स्टेटस में दिखा दी। सब कुछ स्टेटस में डाल कर मन हल्का कर लिया। कुछ लोग जो कभी भी स्टेटस नहीं डालते, वे अपने आप को बड़ा व्यस्त दिखाते है, पर दूसरों के स्टेटस सबसे पहले वहीं झाँकते है। कुछ लोग तो स्टेटस का निरीक्षण भी बारीकी से करते है, जैसे घर कैसा है, सोफा ठीक है या नहीं, कपड़े कैसे पहने है, महँगा-सस्ता वगैरह-वगैरह। शायद वे सामने वाले के निर्मम मन के मनोभावों को नहीं जानते। सबकुछ हर समय अनुकूल, उचित या व्यवस्थित हो यह जरूरी नहीं। हाँ, पर जीवन में कुछ क्षणों में आनंद की अनुभूति जरूर की जा सकती है। कृष्णव की चचेरी बुआ स्टेटस की चीर-फाड़ वाले ऑपरेशन में ज्यादा यकीन रखती थी की इस स्टेटस में यह गायब है, यह मुस्कुरा रहा है, यह दु:खी है इत्यादि-इत्यादि। कृष्णव के एक परम मित्र थे, वे सदैव किसी के सहयोग, अपनत्व और स्नेह का वर्णन स्टेटस में किया करते थे। उनका कथन था क्यों हमेशा बुराइयों को ही लंबी यात्रा करवाई जाए, अच्छाई भी प्रचार-प्रसार के योग्य है। शायद यह अच्छाई किसी और के लिए प्रेरणास्पद सिद्ध हो सकती है।
कृष्णव की सम्माननीय दीदी तो सदैव नौकरी से संबन्धित जानकारी, परीक्षा एवं महत्वपूर्ण जीवनउपयोगी सूचनाएँ स्टेटस में लगाया करती थी। उस पर भी पंचायती राज लागू हो जाया करता था की इसको तो बड़ी चिंता है। बड़ी समाज सेवक है, पर वे अपने उद्देश्य से कतई दूर नहीं हुई। उनका कथन था की यदि कोई मेरे स्टेटस को आत्मसात करके अपना जीवन बदल ले तो मेरा यह स्टेटस शेयर करना भी सार्थक हो जाएगा। कुछ लोग व्यंजन भी स्टेटस में डाल देते है, कभी-कभी इससे नए आइटम की सूची भी मिलती है और खाना बनाने का उत्साह भी बढ़ता है। कृष्णव हँसकर कहता है की लॉकडाउन में लोग अक्सर व्यंजन बनाकर स्टेटस में डालते थे। पता तो था की घर पर कोई खाने के लिए आने वाला तो है नहीं। कृष्णव के अनुसार कई लोग इसे दिखावे का नाम भी देते है। भैया सबको स्वतंत्र अभिवव्यक्ति का हक है। कहीं भी उल्लेखित नहीं है की आप स्टेटस जरूर देखें और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें। कृष्णव कहता है की जब मेरे मौसाजी सरकारी नौकरी में थे और तबादला ऐसी जगह हुआ जो घूमने-फिरने के अनुरूप थी तब तो स्टेटस ने कमाल ही कर दिया। कई रिश्तेदारों ने उनसे संपर्क साधा। तब यह अहसास हुआ की अपनत्व कितना प्रगाढ़ होता है। अब तो स्टेटस जानकारी का महत्वपूर्ण तंत्र था।
कुल मिलाकर भैया सबकी अपनी-अपनी परिभाषा है। कृष्णव की मम्मी जब पेपर में लिखती थी और उसकी न्यूज़ शेयर करती तब भी कई लोग भीतर से परेशान हो जाते। पर कृष्णव का मानना था की जो छपता है वही तो शेयर करती है। कलम की ताकत ने तो कईयों की जिंदगी को बदल दिया, तो फिर क्यों न खुद के सुकून के लिए लिखा जाए और सांझा किया जाए। कुछ लोग स्टेटस देखकर अपनत्व, स्नेह और प्रेम भी लुटाते है। कई लोग मनोबल बढ़ाने और उत्साहवर्धन में भी सहायक होते है। भाभीजी ने एक आइडिया दिया की यदि कुछ लोग किसी के सकारात्मक प्रयास को नहीं देख सकते तो खट-खट करके स्टेटस को आगे बढ़ा दिया करों, पर कृष्णव को यह बात हजम नहीं हुई की भैया किसने तुम्हारे हाथ जोड़े है की फलाने व्यक्ति का स्टेटस देखना जरूरी है। कृष्णव एक आदरणीय मंत्रणा में मुग्ध महिला को भी जानता था, वह हमेशा ताना कसती की आप लोग बहुत स्टेटस डालते है। अरे भैया स्टेटस में कई शुभचिंतक, परिवारजन व सहयोगी भी तो जुड़े है जो हमारी उत्तरोत्तर उन्नति की कामना करते है और भीतर ही भीतर खुश होते है। जब स्टेटस का अतिरिक्त मूल्यांकन होता है तो हमारा जवाब होता है की ईश्वर ने इतनी संपन्नता तो दी है की खुशी से सांझा की जाए। अरे भैया स्टेटस डालना टाइम वेस्ट है तो स्टेटस झांकना भी टाइम वेस्ट ही है।
हर किसी के लिए जिंदगी के अपने-अपने मायने है तो स्टेटस का आंकलन जरूरी नहीं है। अपना-अपना स्वभाव है अपनी-अपनी अभिव्यक्ति का। किसी की अच्छाई और उन्नति को हतोत्साहित करने का प्रयास न करें। कई बार स्टेटस उपयोगी जानकारी, सामने वाली की खैर-खबर, सुविचार के लिए भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अतः जीवन में सदैव सकारात्मक तथ्यों के विश्लेषण को महत्व दे। यदि आपको किसी के स्टेटस उपयोगी नहीं लगते तो अपना बहुमूल्य समय उसको देखने में खर्च न करें और न ही स्टेटस पर चर्चा में समय बर्बाद करें।

              डॉ. रीना रवि मालपानी

            (कवयित्री एवं लेखिका)