आलेख – प्रो. डी.के. शर्मा, रतलाम
रिश्तेदारी में एक विवाह तय हुआ पता चला लड़की ने विवाह के लिए कुछ शर्ते रखी। उन शर्तों में एक यह भी थी कि वह अपना कुत्ता भी साथ लाएगी। अंग्रेजी में एक कहावत है – love me, love my dog also. इसकी जानकारी ने सोचने- विचारने – लिखने का एक नया विषय प्रदान किया। यह विचार आया कि इस तरह की शर्त के साथ विवाह जीवन और समाज पर प्रभाव क्या? इस घटना से मन में कई विचार आए विवाह पूर्व शर्तों का अर्थ क्या और भावी जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। इसी तरह की कई घटनाएं याद आ गई।
थोड़ा पीछे चले और याद करें कि विवाह कैसे होते थे और यह प्रगाढ़ रिश्ता कैसे निभाया जाता था। कुछ वर्षों पूर्व तक माता-पिता रिश्तेदार विवाह तय करते थे। इस संबंध को बहुत गंभीरता और पवित्रता के साथ निभाया जाता था। बड़े-बड़े संयुक्त परिवार होते थे और आने वाली बहु को उस व्यवस्था में स्वयं को समाहित करना पड़ता था। तब धन का इतना महत्व नहीं था। स्वयं ने गरीबी देखी माता पिता बहुत गरीब थे, किन्तु माता को इसकी गरीबी की शिकायत करते कभी नहीं सुना। दोनों के बीच में अद्भुत समन्वय याद आता है। अब समय बदल गया है। अर्थ प्रधान युग है और प्रत्येक व्यक्ति अपने सुख के बारे में विचार करता है। अब सुख का अर्थ बदल गया है। पुराने जमाने की सुख शांति निरर्थक हो गई है। अब शर्तों में सुख तलाशते हैं। वस्तुओं को सुख का साधन मानते हैं। विचार करें कि क्या शर्तों के साथ विवाह करने से सुख मिलना निश्चित है? वास्तव में अब व्यक्तिगत आकांक्षा-इच्छा अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। शर्ते लड़के भी रखते हैं और कई वस्तुओं की मांग ससुराल वालों से करते हैं। इस तरह की मानसिकता का प्रभाव क्या? यही हमारे विश्लेषण का विषय है।
चूंकि आदिकाल से परम्परा यही है कि लड़की को विवाह के बाद पूरे जीवन ससुराल में बिताना पड़ता है। पूराने जमाने में ससुराल में लड़कियों को प्रताड़ना भी मिलती थी। इसमें सास का योगदान प्रमुख होता था। महिला ही महिला को प्रताड़ित करती थी। अनेक प्रकार के कठोर बंधन बहु पर लगा दिए जाते थे। अब समय बदल गया है और कन्याएं विवाह के लिए शर्ते रखने लगी हैं। विवाह एक मानसिक, शारीरिक और सामाजिक आवश्यकता है। अतः विवाह तो सबको करना होता है, शर्ते चाहे जो भी हो। पुराने जमाने में रिश्ता सामाजिक सरोकार होता था। समान स्तर के परिवारों में विवाह तय किए जाते थे। तब लड़के – लड़की से पूछा भी नहीं जाता था। फिर समय आया लड़कों का निर्णय महत्वपूर्ण होने लगा। अब लड़कियों की बारी है, अब लड़कियां ही तय करती हैं। अब रिश्ता तय करने में लड़की का निर्णय अंतिम होता है। वे ही विवाह के बाद के जीवन की शर्तें तय करती हैं। अधिकतर यह देखने में आता है कि वे शर्त रखती हैं कि ससुराल वालों से संबंध नहीं रखूंगी, साथ रहने का तो सवाल ही नहीं उठता। आजकल लड़कियों को घर का काम करना अनुचित बोझ लगता है। एक महिला को केवल सब्जी काटने के लिए नौकर की आवश्यकता थी, अन्य काम के लिए नौकर थे ही। साथ में केवल पति और बच्चा था। यहां तक देखने में आया है कि पति-पत्नी ही साथ रहते हों तो भी चाय नाश्ता बनाकर नहीं दी जाती, खाना तो दूर की बात है। आजकल ऐसी अनेक कहानियां जानकारी में आती है। शायद यह सब जीवन के प्रति बदलते हुए दृष्टिकोण के कारण हो रहा है। समय परिवर्तनशील है।
विचार करें, जीवन का उद्देश्य क्या? जीवन के प्रति दृष्टिकोण क्या? सभी सफल और सुखी होना चाहते हैं। सुखी तो सभी होना चाहते हैं, सफलता का प्रश्न उन्हीं के लिए है जो जीवन के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण रखते हैं। आजकल लड़के का पद और पैसा देखा जाता है। इस दृष्टिकोण का आधार यह भ्रम है कि पद और पैसा सुख प्रदान करेगा। इस भ्रम के कई दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं। विवाह एक-दूसरे के प्रति समर्पण, सहयोग के लिए होता है। हमने कई प्रकरण देखे हैं जिनमें बेटा एक ही शहर में रहते हुए अपने पिता से मिलने नहीं जा पाता। ऐसे एक से अधिक दुःखी परेशान पिता से चर्चा होती है। उनकी दशा देख हृदय व्यथित हो जाता है। लड़की यह भुल जाती है कि उसके स्वयं के माता-पिता के घर भी उस जैसी ही कोई आने वाली है और फिर जब उसका बच्चा बड़ा होगा तब क्या? वास्तव में यह दुर्व्यवहार इस भ्रम पर आधारित है कि हम बुरा करे तो भी हमारे साथ अच्छा ही होगा। ऐसा नहीं होता। प्रकृति में न्याय की अलग ही व्यवस्था है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं। बुढ़ापा तो सबको आना है, आज कल लड़कियां यह भुल जाती हैं। मांग और शर्तों पर आधारित विवाह संबंध के बहुत अधिक समय तक चलने की संभावना नहीं होती, चले भी तो मजबूरी में। जिस सुख और आनन्द के लिए विवाह किया जाता है वह प्राप्त नहीं होता। ऐसे प्रकरण भी जानकारी में हैं, जिसमें बहु अकेली सास को भी साथ रखना नहीं चाहती। एक और दुःखद प्रकरण – एक लड़के की शादी हुई। परिवार में अकेला लड़का व विधवा मां थे। लड़की कॉलेज में व्याख्यता थी। विवाह के बाद गृहप्रवेश के समय लड़की दरवाजे पर अड़गई और लड़के से कहा कि अपनी मां को बाहर निकालो तब अंदर आऊंगी। लड़का दुविधा में फंस गया। हारकर उसने अपनी मां को कहीं चले जाने को कहा। बूढ़ी अम्मा कहां गई कभी पता नहीं चला। मां के घर से चले जाने के बाद विद्वान बहु ने गृहप्रवेश किया। प्रकृति का न्याय अद्भुत होता है। कुछ वर्ष बाद एक दिन खाना खाते समय लड़के के गले में खाने का कोर फस गया और उसकी दुःखद मृत्यु हो गई। प्रकृति का न्याय। एक प्रकरण में विवाह के बाद लड़के को सफेद दाग हो गए। उस समय लड़की गर्भवती हो चुकी थी। उसने सोचा मेरे बच्चे को भी ऐसे दाग हो सकते हैं और उसने अपनी मां के उकसावे पर सात माह का गर्भपात करवा लिया। ऐसा करने के पहले ससुराल में किसी को भी नहीं बताया। परिणाम स्वरूप तलाक हो गया। विचार करना चाहिए कि कोई भी बीमारी कभी भी किसी को भी हो सकती है। थोड़े सी समझ से संबंध बचा रह सकता है।
इस आलेख का उद्देश्य लड़कियों की बुराई करना नहीं। कई प्रकरण सामने आते हैं, जिनमें लड़के पैसे और सामान की मांग करते हैं। कई बार यह मांग कन्या के पिता की क्षमता से भी अधिक होती है। विचार करें कि शर्ते किसी भी पक्ष की तरफ से हो अनुचित है। भारतीय संस्कारों में विवाह कॉन्ट्रेक्ट नहीं है यद्यपि कानून उसे एक कॉन्ट्रेक्ट ही मानता है। यदि विवाह शर्तों के साथ किया जाता है, तो यह ध्यान में आता रहेगा कि कौन सी शर्त पूरी हुई और कौन सी नहीं। इस तरह तो जीवन शर्ते याद रखने और कुछ भी पूरी करवाने में व्यतित हो जाएगा। विवाह का मूल उद्देश्य भुला दिया जाएगा। बिना मानवीय भावनाओं के, शर्तों के साथ, चलने वाला विवाह एक कॉन्ट्रेक्ट ही हो जाता है। इसमें बहुत खींचातानी होती है। बच्चों पर इसका सबसे अधिक दुष्प्रभाव होता है। देखने में आया है कि माता-पिता अपने तनावपूर्ण जीवन का बदला बच्चों से लेते हैं और उनकी अच्छी पिटाई करते हैं। ऐसे वातावरण में बढ़े हुए बच्चे बहुत नकारात्मक मानसिकता के साथ बड़े होंगे। विवाह जीवन का बहुत सार्थक और महत्वपूर्ण भाग होता है। शर्तों के साथ किया विवाह भावनात्मक संतुष्टी प्रदान नहीं करता। शर्त टूटी कि जीवन बिखरने लगता है। यह सोचना गलत है कि पति-पत्नी के बीच में मतभेद का प्रभाव केवल पति-पत्नी पर ही पड़ता है। इस दुष्प्रभाव से अनेक लोग प्रभावित होते हैं।
इस समस्या का समाधान क्या? उत्तर है आपसी समझ और सहनशीलता रिश्तों को लंबी उम्र देते हैं। विवाह बिना शर्तों के किया जाना चाहिए, शर्तें न इधर से, न उधर से। लव मैरिज की अपनी अलग कैटेगिरी है उनके भी सफल होने की कोई गारंटी नहीं। भावनात्मक उद्वेग में किए विवाह भी झमेले में पड़ ही जाते हैं।