आहत मन की मरम्मत –डॉ. रीना रवि मालपानी

लघुकथा

सीता स्वभाव से ही बहुत सरल थी। पता नहीं क्यूँ सब पर जल्दी से विश्वास कर लेती थी। अभी तक केवल वह पढ़ाई और कैरियर में ही संलग्न थी। जब गृहस्थ जीवन में प्रविष्ट हुई तो बहुत से नए-नए अनुभवों से साक्षात्कार हुआ। कभी-कभी कुछ जीवन में बहुत अच्छे के लिए होता है। नई जगह नए लोगों से अपनत्व हुआ। सीता की अच्छाई थी की वह घर आए मेहमानों का सत्कार आदरभाव से किया करती थी। आसपास के पड़ोसियों ने उसकी इसी बात का अनोखे तरीके से विश्लेषण शुरू कर दिया। दुनिया वालों को अच्छाई को बुराई में परिवर्तित करना बहुत अच्छे से आता है। सीता और राघव अभी भी अपने कैरियर को लेकर प्रयासरत थे तो उन्होने परिवार बढ़ाने के बारे में कुछ समय बाद का निर्णय लिया। वे दोनों एक दूसरे को समझने में कुछ समय देना चाहते थे, पर लोगों का अतिरिक्त मूल्यांकन कहाँ समाप्त होता है। कभी सीता को शारीरिक अस्वस्थ बताया गया, तो कभी राघव पर टीका-टिप्पणी हुई। कई बार अपनों से एवं अत्यधिक अपनत्व के कारण भी मन को चोट पहुँची। पूर्ण सहयोग देने के बाद भी कई बार परिस्थितिवश लोगों से उपेक्षित व्यवहार भी मिला। कई बार लोगों की घटिया सोच ने उनके व्यक्तित्व का आईना दिखा दिया।

जब कुछ समय पश्चात सीता और राघव को बेवजह की टीका-टिप्पणी का ज्ञान हुआ तो उनका मन बहुत आहत हुआ, पर पिता की सीख थी की आगे बढ़ने और खुश रहने के लिए सभी प्रकार की परिस्थितियों से तालमेल बैठाना सीखना होगा, यदि स्वयं का लक्ष्य निश्चित है तो कभी भी मन को व्यथित नहीं होने देना चाहिए। जब श्रीराम ने मानवरूप धारण किया तो हर समय उन्हें विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उन्होने हर समय परिस्थितियों का बदलता रूप देखा, पर पूर्ण संयम और धैर्य से वह निरंतर प्रयासरत रहें। ईश्वर को भी मानव अवतार में यश और अपयश का सामना करना पड़ा। पिता के कथन से सीता के आहत मन की मरम्मत हो गई। अब मन में कोई बोझ नहीं था। वह तो अपनी परिस्थितियों के अनुरूप आगे बढ़ने को प्रयासरत थी।

इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है की अकारण किसी की टीका-टिप्पणी कर उसके मन को आहत न करें, क्योंकि अगर आहत मन की मरम्मत हो जाती है तो जीवन एक नई दिशा भी प्राप्त कर सकता है और इसके विपरीत यदि कोई इंसान बिखर जाए और नकारात्मकता और अवसाद का शिकार हो जाए तो उसकी पूरी जिंदगी खराब हो सकती है। तो फिर क्यों हम अपनी ऊर्जा किसी के मन को आहत करने में ही खर्च करते है। मनुष्ययोनि तो इस उद्देश्य को लेकर कदापि प्रदान नहीं की गई है।

डॉ. रीना रवि मालपानी कवयित्री एवं लेखिका