लघुकथा
प्रायः ऐसा देखा गया है की जिन लोगों की कुछ समय अंतराल के पश्चात स्थानांतरण वाली नौकरी होती है उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना होता है। पहले पूरे मनोयोग से घर की साज-सजावट और फिर सबकुछ समेट लेना। राधा के पति केशव की सरकारी नौकरी भी कुछ ऐसी ही थी। उसके पति के स्थानांतरण का आदेश भी आ गया। राधा भी अपने छोटे बच्चे के साथ स्थानांतरण के समय को लेकर चिंतित थी। सोच रही थी बहुत सी छोटी-छोटी जरूरतें होगी। कोरोना का समय भी चल रहा है। राधा और केशव बिना कारण कुछ भी सहयोग लेनें में संकोच करते थे, पर यह क्या था राधा की पड़ोस वाले भैया और भाभी ने एक स्थानांतरण के एक हफ्ते पहले ही उन्हें हर चिंता से मुक्त कर दिया। राधा समझती थी की हर किसी की अपनी जिम्मेदारियाँ होती है, काम का भी भार होता है। उसने भाभी को बहुत मना किया, पर भाभी तो शायद स्थानांतरण की सारी परिस्थितियों को बहुत अच्छे से समझती थी।
जिस दिन राधा का सामान जाना था उस दिन सुबह से ही भैया और भाभी ने फोन किया की आज सारे दिन की व्यवस्था हमारे घर होगी। जब राधा और केशव सुबह के नाश्ते के लिए गए तो उसमें तो भाभी के स्नेह का स्वाद था। पता नहीं भाभी ने कब से तैयारियां शुरू कर दी थी। कुछ समय बाद चाय-दूध, गरम पानी, बच्चे के लिए बिस्किट, खिचड़ी इत्यादि सब कुछ समय-समय पर उपलब्ध था। केशव ने भैया भाभी को दिन के भोजन में कुछ कम बनाने को कहा क्योंकि की नाश्ता ही इतना ज्यादा स्वादिष्ट था की उन लोगों ने बहुत रुचि से खाया, पर भाभी ने फिर पूरे अपनत्व और प्रेम से भोजन बनाया। उस भोजन में उन्होने बहुत से नए-नए व्यंजनों को भी शामिल किया। उनका कहना था की क्या हम अपनों के लिए एक दिन भी नहीं कर सकते। भैया-भाभी समय-समय पर हमारी जरूरतों का ध्यान रखें हुए थे। शाम की चाय हो या रात का भोजन कहीं भी स्नेह और अपनेपन में कोई कमी नहीं थी। हम सुकून से भोजन कर सकें इसलिए हमारे बच्चे को भी भैया पूरे समय दुलार देते रहें। उन्होने हमारी रात को रहने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था की।
भैया- भाभी ने मानवता की राह को जगमगा दिया था। पूरे दिन के सहयोग और अपनत्व के लिए केशव और राधा मन ही मन उनका धन्यवाद कर रहें थे। आश्चर्य तो तब हुआ जब भैया-भाभी सुबह 5 बजे पुनः चाय बनाकर भी ले आए क्योंकि उनको सवेरे जल्दी अपने गंतव्य स्थान के लिए प्रस्थान करना था। राधा और केशव सोच रहें थे की कैसे पूरे दिन-रात काम करने के बाद भी उन्होने सुबह फिर से हमारा ध्यान रखा। इतना बारीकी से सोचा और चाय देते वक्त यह भी कहा की घर जैसी चाय कहीं नहीं मिलती है। आज राधा और केशव भैया-भाभी के सहयोग, अपनत्व और प्रेम के लिए निःशब्द थे। यह स्थानांतरण इतना सरल होगा, इतना अधिक सहयोग और प्रेम मिलेगा यह तो अकल्पनीय था। वे दोनों मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रहें थे की ईश्वर उन्हें उत्तरोत्तर उन्नति और अच्छा स्वास्थ्य दे।
इस लघुकथा से हमें यह शिक्षा मिलती है की कुछ अनुभव मील का पत्थर साबित होते है। उन्होने अपने अनुभव को दूसरों की खुशी के लिए सहयोग और अपनत्व के लिए उपयोग किया। मानवता की राह में उन्होने अपना कद बहुत ऊँचा कर लिया था। राधा और केशव सदैव हृदय से उनके आभारी रहेंगे और उनकों यह भी एहसास हुआ की ईश्वर समय-समय पर आपकी मदद करने के लिए किसी न किसी को किसी न किसी रूप में भेज ही देता है। राधा सोच रही थी की यदि ऐसे भैया-भाभी होने पर स्थानांतरण कभी किसी के लिए परेशानी का स्वरूप नहीं होगा। भैया-भाभी ने निःस्वार्थ भाव और पूर्ण अपनत्व से राधा और केशव की मदद की, जो की सच में सभी के लिए अनुसरणीय है।
डॉ. रीना रवि मालपानी.
(कवयित्री एवं लेखिका)