हमारे कर्म श्रेष्ठ होंगे तो साढ़ेसाती और ढैय्या होते हुए भी शनिदेव हम पर कृपा करने में कंजूसी नहीं करेंगे- डॉ विभाश्री

इंदौर, 06 जनवरी ।हमारे मन, वचन और कर्म से किसी भी दूसरे के मन को ठेस या आघात नहीं पहुंचना चाहिए। हम अपने जीवन में कई ऐसे काम करते हैं, जिनके बारे में हमें यह भ्रम होता है कि कोई नहीं देख रहा, जबकि वास्तव में हमारे प्रत्येक कर्म का लेखा-जोखा शनिदेव रखते हैं। हमारी मानसिकता तो कुछ ऐसी हो गई है कि पंडित ही हमारी तरफ से पूजा-पाठ करे और मंत्र जाप भी कर दे। मतलब यह कि दर्द हमारे पेट में हो और दवा कोई दूसरा खा ले। इस तरह की प्रवृत्ति से शनिदेव क्या कोई भी भगवान खुश नहीं हो सकते। आप भले ही शनि मंदिर न जाएं, लेकिन अपने कर्म कुछ इस तरीके से करें कि उनसे किसी का बुरा न हो। हमारे कर्म श्रेष्ठ होंगे तो साढ़ेसाती और ढैय्या होते हुए भी शनिदेव हम पर कृपा करने में कंजूसी नहीं करेंगे।

       औरंगाबाद स्थित शनि आश्रम की संस्थापक, प्रख्यात शनि साधिका  डॉ. विभाश्री  ने गीता भवन में शनि उपासक मंडल एवं संस्था समरस की मेजबानी में चल रहे पांच दिवसीय शनि पुराण महात्यम कथा के समापन अवसर पर उक्त प्रेरक बातें कहीं। गजासीन शनि मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी दादू महाराज के सानिध्य में इस अवसर पर शहर के नागरिकों की ओर से डॉ. विभाश्री का अभिनंदन भी किया गया। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के मंत्री राम ऐरन, सत्संग समिति के संयोजक रामविलास राठी, अरविंद नागपाल, शनि उपासक मंडल के प्रदीप अग्रवाल, राजू भाई मिश्रा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

       डॉ. विभाश्री ने कहा कि नीलांजम समाभासं… इतना छोटा सा शनि महामंत्र है जिसमें शनिदेव की आराधना के सम्पूर्ण भाव मौजूद है। हम या तो इतने व्यस्त हैं या इतने लापरवाह कि अपने लिए शनि के प्रकोप से बचने के लिए पूजा-पाठ भी पंडितों से ही कराना चाहते हैं। दर्द हमें है तो दवाई भी हमें ही लेना पड़ेगी, लेकिन आजकल पंडितों ने भी इसे अपना कारोबार बना लिया है। दरअसल शनि केवल हमारे कर्मों  में श्रेष्ठता और परमार्थ अथवा सेवा का भाव चाहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि हमारे कर्मों से किसी भी अन्य व्यक्ति को आघात नहीं पहुंचे। यदि हमारे कर्मों में सेवा और परमार्थ का भाव है तो भले ही शनि की साढ़ेसाती चल रही हो, शनिदेव हमारा बुरा नहीं करते। यह भ्रांति है कि साढ़ेसाती का मतलब बुरा होना ही है। साढ़ेसाती होते हुए भी अनेक साधकों को शनिदेव की कृपा से लाभ भी मिलता है। शनिदेव हमारे कर्मों का पूरा लेखा-जोखा रखते हैं। हम यदि इस भ्रम में हैं कि गलती भी करें और माफी मांगे या शनि मंदिर में जाकर तेल चढ़ा आएंगे और शनिदेव हमें माफ कर देंगे तो इस भ्रम को दूर कर लेना चाहिए क्योंकि कर्मफल से कोई नहीं बच सकता। हम मंदिर न जाएं, तेल न चढ़ाएं तो भी चलेगा, लेकिन किसी के भी मन को अपने कर्मों से आघात नहीं पहुंचाएं।

महामंडलेश्वर स्वाम दादू महाराज ने कहा कि हम सुबह से रात तक झूठ और छल-कपट का सहारा लेकर अनेक दिहाड़ी मजदूरी करने वालों से सौदेबाजी करते रहते हैं और यह सोचते हैं कि कोई देख नहीं रहा। शनिदेव एकमात्र ऐसे देव हैं, जो समाज में अनुशासन रखते हैं और जिनकी पूजा हम लोग डरकर करते हैं। यदि हमारे कर्म श्रेष्ठ होंगे तो शनि से डरने की कतई जरूरत नहीं है।  संचालन द्वारका चौरसिया एवं रानी अग्रवाल ने किया। अंत में आभार माना संयोजक प्रदीप अग्रवाल ने।