राम का नाम तो सत्य है ही, राम कथा भी परम सत्य ही है – संत रामशरण दास

राम का नाम तो सत्य है ही, राम कथा भी परम सत्य ही है – संत रामशरण दास

 इंदौर,  । सत्य कभी छुपता नहीं, सत्य कभी नष्ट भी नहीं होता और सत्य कभी पराजित भी नहीं हो सकता। राम का नाम तो सत्य है, लेकिन राम की कथा भी परम सत्य है। प्रभु राम को वनवास भेजने के पीछे कैकेयी और मंथरा की भूमिका रही, जिसका परिणाम यह है कि हम आज तक अपने बच्चों के नाम कैकेयी या मंथरा नहीं रखते। राम के वनवास गमन की खबर ने अयोध्यावासियों के मन में उदासी, हताशा और निराशा के भाव बना दिए थे। राम जैसा आज्ञाकारी चरित्र कहीं और नहीं मिलता। अपने राज्याभिषेक को छोड़कर कोई राजा 14 वर्ष के लिए कभी वनवास नहीं गया। यही कारण है कि राम को आज भी घर-घर में पूजा जाता है।

रोबोट चौराहा, बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर में चल रहे रामकथा महोत्सव में मथुरा वृंदावन से आए मानस मर्मज्ञ, प्रज्ञाचक्षु संत स्वामी रामशरणदास ने आज राम वनवास गमन के प्रसंगों की भावपूर्ण व्याख्या करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि राम के राजमहल छोड़कर जंगलों में भटकने के पीछे भी अनेक गूढ़ संदेश छिपे हुए है। राम का चरित्र ही उन्हें भगवान से भी बड़ा बनाता है। देवों के देव महादेव भी उनकी आराधना करते हैं। प्रभु राम ने अपने वनवासकाल में प्राणी मात्र का उद्धार ही किया है। अहिल्या को पाषाण की मूरत से जीवंत करने की क्षमता केवल राम में ही हो सकती है और जटायू जैसे पक्षी को मोक्ष, हनुमानजी के माध्यम से वानर सेना को जोड़ने और गिलहरी के उद्धार के प्रसंग रामकथा के प्रेरक उदाहरण है। प्रभु राम ने समाज के अंतिम छोर पर खड़े केवट और शबरी जैसे लोगें को गले लगाकर उनके दुख-दर्द बांटने का प्रेरक कार्य किया है। आज के राजा भी यदि उनका अंश मात्र भी अनुशरण कर लें तो देश की सूरत ही बदल जाएगी।

संत रामशरणदास ने कहा कि मंथरा के दो अर्थ हैं- पहला जो मन को थर्रा दे और दूसरा जो मंथर गति से चले। मंथरा की बुद्धि को सरस्वती ने पलट दिया था। वैसे तो रामकथा के अनेक प्रसंग भगवान के मनुष्य अवतार से जुड़े होने के कारण सामने आते हैं। मंथरा और कैकेयी के षडयंत्र के कारण रामजी को भले ही वनवास जाना पड़ा, लेकिन यह भी सच है कि राजपाट छोड़कर कोई युवराज जंगलों की खाक छाने तो यह उसकी महानता का ही प्रमाण है। राम जंगल नहीं जाते तो इतने वंदनीय और पूजनीय नहीं होते।