इंदौर । श्रद्धा और विश्वास के बिना भक्ति और साधना-उपासना सार्थक नहीं हो सकते। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो जानकी भारतीय आदर्श नारी का पर्याय। राम और सीता का युगल आज हजारों वर्षों बाद भी भारतीय समाज का आदर्श बना हुआ है। राम हमारी भारतीय संस्कृति और धर्म क्षेत्र के भी आदर्श है। रामकथा वह कथा है जिसमें प्रजा के साथ पशु-पक्षियों तक को प्रेम, स्नेह और करूणा का बंटवारा किया गया है।
प्रज्ञाचक्षु संत स्वामी रामशरणदास के, जो उन्होंने रोबोट चौराहा, बर्फानी धाम के पीछे स्थित गणेश नगर में माता केशरबाई रघुवंशी धर्मशाला परिसर में आयोजित रामकथा महोत्सव में राम-सीता विवाह प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। आज कथा में राम-सीता विववाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। सैकड़ों महिलाओं ने विवाह प्रसंग के दौरान नाचते-गाते हुए उत्सव को आत्मसात किया। संत रामशरणदास नेत्रहीन हैं, लेकिन रामायण की चौपाइयां और सम्पूर्ण रामकथा उन्हें मुखाग्र याद है। वे जब चौपाइयां गाते हैं तो समूचा कथा स्थल भी झूमने लगता है।
संत श्री ने कहा कि भक्ति निष्काम होना चाहिए। भक्ति में स्वार्थ होगा तो फलीभूत नहीं होगी, लेकिन यदि भक्ति निष्काम हुई तो शबरी की तरह भगवान हमारे जूठे बेर भी स्वीकार कर लेंगे। भक्ति में पाखंड और प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन भगवान की कृपा से ही मिला है, उनके नाम का स्मरण ही सच्ची भक्ती है। राम और सीता का विवाह भारतीय समाज का आदर्श विवाह है। न तो राम के व्यक्तित्व में कोई अवगुण है और न ही सीताजी के कृतित्व में कोई दोष। यह निर्दोषता भारतीय इतिहास में कहीं और नहीं मिलती। रामकथा इसलिए भी अमर है कि इसमें ज्ञान, भक्ति, वैराग्य सेवा और समर्पण का अदभुत समन्वय देखने को मिलता है।