इंदौर । कंधे पर बांस, हाथ में बग्गा लेकर कलात्मक अंदाज में हाथ चलाते हुए डिजाइन करने के हुनरमंद 72 वर्षीय मास्टर ऑफ फाइन आर्ट्स कलाकार नसीमुद्दीन पटेल परिवार की 200 साल पुरानी बांस डेकोरेशन परंपरा को सहेज रहे हैं। वे बांस की ज्वेलरी जैसे बूंदे, टॉप्स, हार, कंगन व सजावटी लैम्प पाट, जाफरी, सीढ़ी बनाते हैं। मौलाना अबुल कलाम आजाद, कबीर पुरस्कार से सम्मानित नसीमुद्दीन के अनुसार, बांस ईकोफ्रेंडली प्रोजेक्ट है। उन्होंने स्रातकोत्तर के बाद सरकारी नौकरी ठुकराकर पुश्तैनी काम अपनाया। बीसीडीआई से बांस की कलाकारी सीखी। उनके पिता वसीउद्दीन तख्त व बांस का डेकोरेशन करते थे। वे राजनीतिक आयोजनों के लिए मंच बनाते थे। उनके बेटे रियाजुद्दीन, बेटी नीलोफर, पोते अजीमुद्दीन परंपरा को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। निःशुल्क सिखाते हैं कला नसीमुद्दीन कहते हैं कि आज के दौर में ललित कला आना जरूरी है। वे स्थानीय स्कूली बच्चों को बांस से सजावटी प्रोडक्ट व अन्य सामान बनाना सिखाते हैं। इसके लिए वे कोई शुल्क नहीं लेते।…
सीएम से शोध केंद्र खोलने की करेंगे नसीमुद्दीन प्रदेश बांस उत्पादन कम है l कानपुर, असम से हरा बांस मंगाना महंगा पड़ता इसमें रोजगार की बडी संभावनाएं हैं। नसीमुद्दीन मुख्यमंत्री से मिलकर बांस अनुसंधान और खोलने का आग्रह करने की बात कहते हैं। विदेशियों को पसंद है बांस की ज्वेलरी नसीमुद्दीन के अनुसार, सिंगापुर, दुबई ही नहीं नेपाल, भूटान, जापान आदि कई देशों के लोगों को उनकी बांस की ज्वेलरी पसंद आती है। वे नियमित इसे मंगवाते हैं। इनमें बूंदे, टॉप्स और कंगन मुख्य हैं। परिवार की मंशा है, पुश्तैनी कला के माध्यम से देश का नाम दुनियाभर में हो।…
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